दिल्ली पुलिस ने 26 दिसम्बर को जहांगीर पुरी इलाके से अगवा बच्चे की हत्या के मामले को सुलझा लिया है। पुलिस ने इस मामले में दो लोगों को गिरफ्तार किया है। पुलिस के मुताबिक 12 साल के करणदीप का अपहरण फिरौती के लिए किया गया था और पकडे जाने के डर से उसकी हत्या की गई थी।
देखने में मासूम लेकिन हरकत बेहद खौफनाक। पुलिस के शिकंजे में आए इन शातिरों पर आरोप है एक बच्चे के कत्ल का। 20 साल के गुड्डु ने अपने एक साथी के साथ मिलकर जल्द पैसा कमाने की चाहत में 26 दिसम्बर की शाम 12 साल के करणदीप का अपहरण किया था। लेकिन पकडे जाने के डर से दोनों ने उसकी बेरहमी से हत्या कर दी। सोमवार को करणदीप का शव गाजियाबाद के कविनगर इलाके से बरामद हुआ। पुलिस के मुताबिक दोनों का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नही है। दोनों को मौज मस्ती के लिए पैसों की जरूरत थी और इसलिए इन्होंने राजबहादुर के बेटे को अगवा कर लिया।
पुलिस के मुताबिक गुड्डू अपने पिता के साथ राजबहादुर के घर शीशा फिटिंग का काम कर रहा था। जब गुड्डू राजबहादुर से पैसे ले रहा था तभी उसने रची एक खैफनाक साजिश। इस साजिश में गुड्डु ने अपने एक साथी मोहम्मद फहीम को भी शामिल कर लिया। शनिवार को ये लोग करणदीप को बहाने से अपने साथ ले गए। जब बच्चा देर रात तक घर नहीं लौटा तो परिजनों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी। परिजनों ने गुड्डु पर शक जाहिर किया। फिर क्या था। पुलिस ने गुड्डू को हिरासत में लेकर सख्ती से पूछताछ की तो हकीकत सामने आ गई। गुड्डु ने पुलिस को बताया कि उसने करणदीप को फहीम के हवाले कर दिया है।
पैसो की चाहत ने दोनों को इस कदर अंधा बना दिया की गुनाह की राह पर भी इनके कदम नही डगमगाए। इनके गुनाह ने जहां इनकों जेल का रास्ता दिखा दिया वहीं एक मां- बाप से उनका बच्चा हमेशा के लिए छीन लिया।
29 दिसंबर 2009
27 दिसंबर 2009
जौहरी से लूटपाट
.दिल्ली के नजफगढ इलाके में बेखौफ बाइक सवार बदमाशों ने एक जौहरी की लूट के बाद गोली मारकर हत्या कर दी। बदमाश जौहरी की कार समेत उसमें रखे पांच लाख रूपये भी लेकर फरार हो गए। घटना के वक्त रोशन सिंह नाम का जौहरी अपने घर लौट रहा था। क्या दिल्ली... और क्या दिल्ली वाले.... यहां कोई नहीं है सुरक्षित । दिल्ली पुलिस सुस्त है और बदमाश यहां मस्त है । एक बार फिर दिल्ली पुलिस ने दिखा दिया कि वो किस कदर बेबस है । रविवार की शाम करीब छ बजे रोशन सिंह नजफगढ से अपने घर नांगलोई लौट रहे थे । अचानक रनहोला गांव के पास बाइक पर सवार बदमाशों ने उनकी स्विफ्ट कार के सामने बाइक लगा दी । जब तक रोशन कुछ समझ पाते बदमाशों ने उनपर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। जिससे रोशन की मौके पर ही मौत हो गई।
रोशन सिंह की दिल्ली के करोल बाग में ज्वैलरी शॉप है और रविवार को वो नजफगढ से पांच लाख रूपये लेकर लौट रहे थे । नज़फगढ़ के रास्ते में बदमाश हरियाणा नम्बर की बाइक पर सवार होकर आए और वारदात को अंजाम देने के बाद रोशन सिंह की स्विफ्ट कार लेकर फरार हो गए...बदमाशों ने अपनी बाइक को मौका-ए-वारदात पर ही छोड़ दिया। जिस तरह से इस वारदात को अंजाम दिया गया है उससे पुलिस को शक है कि इसमें रोशन का कोई जानकार भी शामिल है।
फिलहाल पुलिस ने लूटपाट और हत्या का मामला दर्ज कर लिया है। लेकिन अभी तक लुटेरों का कोई भी सुराग हाथ नही लग सका है। अब पुलिस के सामने बदमाशों को जल्द गिरफ्तार करने की चुनौती है।
रोशन सिंह की दिल्ली के करोल बाग में ज्वैलरी शॉप है और रविवार को वो नजफगढ से पांच लाख रूपये लेकर लौट रहे थे । नज़फगढ़ के रास्ते में बदमाश हरियाणा नम्बर की बाइक पर सवार होकर आए और वारदात को अंजाम देने के बाद रोशन सिंह की स्विफ्ट कार लेकर फरार हो गए...बदमाशों ने अपनी बाइक को मौका-ए-वारदात पर ही छोड़ दिया। जिस तरह से इस वारदात को अंजाम दिया गया है उससे पुलिस को शक है कि इसमें रोशन का कोई जानकार भी शामिल है।
फिलहाल पुलिस ने लूटपाट और हत्या का मामला दर्ज कर लिया है। लेकिन अभी तक लुटेरों का कोई भी सुराग हाथ नही लग सका है। अब पुलिस के सामने बदमाशों को जल्द गिरफ्तार करने की चुनौती है।
22 दिसंबर 2009
दोस्त का ही अपहरण
दिल्ली पुलिस ने प्रदीप नाम के मानसिक रुप से विक्षिप्त युवक को इलाहाबाद से अपर्हणकर्ताओ से मुक्त करवाया। अपर्हणकर्ताओ ने युवक को छोड़ने के बदले 15 लाख रुपये की मांग की थी। पुलिस की मुताबिक आरोपी राहुल डेढ़ साल शाहपुर जाट इलाकें में किराये के माकन में रहता था।
पहले तो प्रदीप को कुदरत ने मारा...... फिर दोस्त ने दोस्ती में मारा....... प्रदीप मानसिक रुप से विक्षिप्त है....... जिसका फायदा उठा कर राहुल ने उससे दोस्ती कर ली। प्रदीप जहां कही भी राहुल को देखता उसके साथ हो लेता। राहुल को मालुम था... कि प्रदीप के घर लाखों रूपये मकान का किराया आता है।जिसकी वो पिछले कई महीनों से तहकीकात कर रहा था। इसी सिलसले में वो अक्सर प्रदीप के घर के पास चाय की दुकान पर आता रहता.....और वही.प्रदीप से मिलता। जिससे उस पर कोई भी शक नहीं करता.....लेकिन राहुल ने इसी महीने की 10 तारीख को रच डाली एक खतरनाक साजिश।...कि वो प्रदीप को लेकर इलाहाबाद पहुंच गया....और फिर वही से फिरौती की रकम वसूलने के लिए फोन करने लगा।
राहुल हर बार रकम वसूल करने के लिए नए नंबर का इस्तेमाल करता। इतना ही नही वो पुलिस से बचने के लिए जगह भी बदलता रहा।... राहुल को फिरौती रकम में देरी होता देख लगा कि उसका खेल बिगड़ गया । जिसके के लिए राहुल ने फिर से फिरौती के लिए फोन की घंटी बजा दी...। इस बार उसने परिजनों को धमकी दी अगर रकम समय से नही मिली तो वो प्रदीप की किडनी निकाल बेच देगा। .इसके बाद तो पुलिस के भी होश फख्ता हो गये। राहुल हर बार पुलिस को चकमा देता रहा। राहुल आगे आगे तो पुलिस पीछे पीछे। लेकिन आखिरकार राहुल का पुलिस से आखं मिचौली का खेल खत्म हो गया।
पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है। लेकिन अभी वारदात में शामिल तीन बदमाश फरार है।साथ ही पुलिस की मुक्कल्ल तफ्तीश भी अधूरी है।क्या अब दोस्ती में जान देने के बजाए जान लेने का रिवाज़ का चलन हो गया है.... शायद मालूम नहीं।..
पहले तो प्रदीप को कुदरत ने मारा...... फिर दोस्त ने दोस्ती में मारा....... प्रदीप मानसिक रुप से विक्षिप्त है....... जिसका फायदा उठा कर राहुल ने उससे दोस्ती कर ली। प्रदीप जहां कही भी राहुल को देखता उसके साथ हो लेता। राहुल को मालुम था... कि प्रदीप के घर लाखों रूपये मकान का किराया आता है।जिसकी वो पिछले कई महीनों से तहकीकात कर रहा था। इसी सिलसले में वो अक्सर प्रदीप के घर के पास चाय की दुकान पर आता रहता.....और वही.प्रदीप से मिलता। जिससे उस पर कोई भी शक नहीं करता.....लेकिन राहुल ने इसी महीने की 10 तारीख को रच डाली एक खतरनाक साजिश।...कि वो प्रदीप को लेकर इलाहाबाद पहुंच गया....और फिर वही से फिरौती की रकम वसूलने के लिए फोन करने लगा।
राहुल हर बार रकम वसूल करने के लिए नए नंबर का इस्तेमाल करता। इतना ही नही वो पुलिस से बचने के लिए जगह भी बदलता रहा।... राहुल को फिरौती रकम में देरी होता देख लगा कि उसका खेल बिगड़ गया । जिसके के लिए राहुल ने फिर से फिरौती के लिए फोन की घंटी बजा दी...। इस बार उसने परिजनों को धमकी दी अगर रकम समय से नही मिली तो वो प्रदीप की किडनी निकाल बेच देगा। .इसके बाद तो पुलिस के भी होश फख्ता हो गये। राहुल हर बार पुलिस को चकमा देता रहा। राहुल आगे आगे तो पुलिस पीछे पीछे। लेकिन आखिरकार राहुल का पुलिस से आखं मिचौली का खेल खत्म हो गया।
पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है। लेकिन अभी वारदात में शामिल तीन बदमाश फरार है।साथ ही पुलिस की मुक्कल्ल तफ्तीश भी अधूरी है।क्या अब दोस्ती में जान देने के बजाए जान लेने का रिवाज़ का चलन हो गया है.... शायद मालूम नहीं।..
बाघ की खाल तस्कर गिरफ्तार
हरिद्वार पुलिस दुर्लभ प्रजाति के जानवरों की खाल तस्करी करने वाले दो लोगों को गिरफ्तार किया है। पुलिस ने इनके पास से पांच बाघों की खाल बरामद की है। पुलिस के मुताबिक ये गिरोह जानवरों का शिकार कर उन्हें खाल को महंगी कीमत पर बेच दिया करता था। फिलहाल पुलिस को इस गिरोह के कुछ और बदमाशों की तलाश हैउत्तराखंड के घने जंगल भी जानवरों के लिए सुरक्षित नहीं रह गए हैं वन विभाग की लापरवाही के चलते दुर्लभ प्रजाति के बाघों के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है। शिकारी इस कदर बेखौफ है कि एक दो नही बल्कि पांच पांच बाघों को भी मौत के घाट उतारने से भी गुरेज नही करते। हरिद्वार पुलिस के हत्थे चढ़े गढ़वाल के दोनों खाल तस्करों के पास मिली पांच खालें तो कुछ यही बयां करती हैं हैरानी की बात तो ये है कि इन लोगों ने पांच बाघों का शिकार महज दो सप्ताह में वो भी बिना गोली मारे किया था। ताकि इनकी अछी कीमत मिल सके अब पुलिस इस गिरोह के अन्य बदमाशों की तलाश में दबिश दे रही है।
पुलिस के हत्थे चढ़े बाघों के शिकारी कोई आम शिकारी नहीं हैं, ये बखूबी जानते थे की बाघों की कौन सी खाल की कीमत कितनी मिलने वाली है। इसी बात को ध्यान में रखकर ये लोग शिकार करते। ये लोग बाघ को गोली से मरने के बजाये उसे ज़हर देकर मौत के घाट उतारते इसके लिए एक बड़ा पिंजरा और उसमे जहरीला मांस रखा जाता। बाघ जैसे ही उसे खाने आता पिंजरे में बंद तो हो ही जाता साथ ही जहरीला मांस खाने से उसकी मौत भी हो जाती। तस्करों के लिए फायदा इस बात को लेकर था कि बाघ की खाल में कोई छेद भी नही होता।
. पुलिस के हत्थे चढ़े वन्य जीव तस्करों ने जानवरों की सुरक्षा और वन विभाग की कार्यप्रणाली पर ही सवालिया निशान लगा दिया है इसी प्रकार बाघ सरीखे दुर्लभ प्रजाति के जानवरों को आसानी से शिकार बनाया जाता रहेगा तो आने वाले दिनों में उत्तराखंड के जंगलों से बाघों का अस्तितव ही मिट जायेगा
18 दिसंबर 2009
कातिल बेटी
तारीख 29 मई... दिन शुक्रवार.. वक्त... शाम के सात बजे... जगह दिल्ली का पश्चिम विहार इलाका और खबर थी एक महिला के घर में लाश मिलने की। मरने वाली महिला थी पचपन साल की किरण कपूर। पहली नजर में साफ था की महिला की हत्या की गई है। चारों तरफ घर का सामान बिखरा पडा था। घर के हालात देखकर लग रहा था कि लूट के इरादे से आए बदमाशों ने लूट का विरोध करने पर हत्या की है। और फिर घर से गायब कुछ कीमती सामान से बात पुख्ता होती दिख रही थी। वहीं किरण कपूर की बेटी ने इस बात को ये कहकर और भी पुख्ता कर दिया की जिस वक्त मां बेटी घर में मौजूद थी। साक्षी ने पुलिस का बताया कि वह खाना बना रही थी तभी दो बदमाश लूटपाट के इरादे से घर में घुस आए..उनसे डरकर वह छिप गयी। उसने अपनी मां के कमरे से टीवी की तेज आवाज सुनी लेकिन बाहर निकलकर मां की मदद करने की हिम्मत नही जुटा सकी। बाद में साक्षी ने बाहर जाकर देखा तो मां खून में लथपथ मृत पडी थी। शुरूआती दौर में ये बात कुछ लोगों को सही लगी लेकिन तफ्तीश में जुटी पुलिस को साक्षी का बयान गले नही उतर रहा था।
पुलिस की तफ्तीश कई पहुलओं को लेकर आगे बढ रही थी.. मामले की साक्षी अकेली चश्मदीद था साफ था कि पुलिस साक्षी से पूछताछ कर मामले के बेहद करीब पहुंच सकती थी। लेकिन पुलिस उस वक्त चौंक गई जब पता चली कि जो गहने किरण कपूर ने पहन रखे थे वो ज्यों के त्यों है। बस यहीं से पुलिस का माथा ठनक गया। भला ऐसा कैसे हो सकता है कि बदमाश लूटपाट के मकसद से घर में घूसे बाकायदा कीमती सामान ले भी जाए लेकिन जिस महिला का कत्ल करें उसके जैवरात को छुए तक नही। बस यहीं से पुलिस ने साक्षी से दोबारा पुछताछ की। पहले और अब के बयान में विरोधाभास था। साक्षी ने पुलिस को अपने एक दर्जन बॉयफ्रेंड्स के नाम बताए, लेकिन सनी का नाम उसने छिपा लिया। बस, यहीं से पुलिस का शक गहराता गया। पुलिस के शक के दायरे में सन्नी का नाम था। पुलिस के मुताबिक सन्नी साक्षी का ब्वायफ्रेन्ड था लेकिन उसने इसका नाम पुलिस को नही बताया था।
साक्षी ने पुलिस को ये भी बताया था कि लुटेरों ने मां की हत्या की और वह सोफे के पीछे छिपी रही। घर में घुसने और बाहर निकलने के कई रास्ते थे। इसके बावजूद मां पर हमले के दौरान उसने बाहर निकलकर शोर नहीं मचाया। यहां पुलिस का शक और गहरा गया। अब तक पुलिस के सामने ये बात तो साफ हो चुकी थी कि किरण की हत्या लूटपाट के मकसद से तो कतई नही कि गई है। यानि शुरूआती दौर में जो तस्वीर उभरकर सामने आई वो महज एक मनघडंत कहानी है। जब पुलिस ने साक्षी की फोन कॉल डिटेल खंगाली तो तस्वीर और भी साफ हो गई। दरअसल कत्ल के दिन साक्षी और उसके बॉयफ्रेन्ड सन्नी के बीच पूरे नौ बार बात हुई थी। पुलिस ने उससे सनी के बारे में सवाल किया। साक्षी ने शुरुआत में उसके बारे में कोई जानकारी देने से इनकार किया, लेकिन सबूत दिखाने के बाद उसने सनी के साथ अपने संबंध मान लिए। एक ओर तो साक्षी इस बात से साफ इनकार कर रही थी कि इस मर्डर केस में उसका और सनी का हाथ है, वहीं दूसरी ओर पुलिस सनी को ट्रेस कर रही थी। वह शालीमार बाग स्थित अपने घर से लापता था। आखिरकार पुलिस ने सन्नी को शालीमार बाग से गिऱफ्तार कर लिया। सनी ने जल्द ही अपना जुर्म कबूल कर लिया। उसकी निशानदेही पर किरण कपूर के घर से उठाए गए सेलफोन, जूलरी, 16,600 रुपये, टीएफटी स्क्रीन एलजी, स्विस स्टार वॉच और उसके खून सने कपड़े बरामद कर लिए।
किरण कपूर का कत्ल खुद साक्षी ने अपनी बॉयफ्रेन्ड सन्नी के साथ मिलकर किया था। दरअसल किरण को बेटी के चाल चलन पर पहले से ही शक था। उसने बेटी को समझाने की लाख कोशिश की लेकिन कोई फायदा नही हुआ। इसी वजह से साक्षी का घर से आना जाना बन्द कर दिया गया। फिर भी किसी ना किसी तरह वो अपने बॉयफ्रेन्ड को घर पर बुला लेती। वारदात वाले दिन दोनों घर पर ही मौजूद थे जबकि किरण काम के सिलसिले से बाहर गई हुई थी। जब किरण घर लौटी तो बेटी को आपत्तिजनक हालात में देखकर गुस्सा गई। बस इसी बात पर दोनों ने किरण का बेरहमी से कत्ल कर दिया और फिर खुद को बचाने के लिए हत्या को शक्ल दी लूटपाट के बाद हत्या की। आखिरकार असलियत सबके सामने आ गई।..
पुलिस की तफ्तीश कई पहुलओं को लेकर आगे बढ रही थी.. मामले की साक्षी अकेली चश्मदीद था साफ था कि पुलिस साक्षी से पूछताछ कर मामले के बेहद करीब पहुंच सकती थी। लेकिन पुलिस उस वक्त चौंक गई जब पता चली कि जो गहने किरण कपूर ने पहन रखे थे वो ज्यों के त्यों है। बस यहीं से पुलिस का माथा ठनक गया। भला ऐसा कैसे हो सकता है कि बदमाश लूटपाट के मकसद से घर में घूसे बाकायदा कीमती सामान ले भी जाए लेकिन जिस महिला का कत्ल करें उसके जैवरात को छुए तक नही। बस यहीं से पुलिस ने साक्षी से दोबारा पुछताछ की। पहले और अब के बयान में विरोधाभास था। साक्षी ने पुलिस को अपने एक दर्जन बॉयफ्रेंड्स के नाम बताए, लेकिन सनी का नाम उसने छिपा लिया। बस, यहीं से पुलिस का शक गहराता गया। पुलिस के शक के दायरे में सन्नी का नाम था। पुलिस के मुताबिक सन्नी साक्षी का ब्वायफ्रेन्ड था लेकिन उसने इसका नाम पुलिस को नही बताया था।
साक्षी ने पुलिस को ये भी बताया था कि लुटेरों ने मां की हत्या की और वह सोफे के पीछे छिपी रही। घर में घुसने और बाहर निकलने के कई रास्ते थे। इसके बावजूद मां पर हमले के दौरान उसने बाहर निकलकर शोर नहीं मचाया। यहां पुलिस का शक और गहरा गया। अब तक पुलिस के सामने ये बात तो साफ हो चुकी थी कि किरण की हत्या लूटपाट के मकसद से तो कतई नही कि गई है। यानि शुरूआती दौर में जो तस्वीर उभरकर सामने आई वो महज एक मनघडंत कहानी है। जब पुलिस ने साक्षी की फोन कॉल डिटेल खंगाली तो तस्वीर और भी साफ हो गई। दरअसल कत्ल के दिन साक्षी और उसके बॉयफ्रेन्ड सन्नी के बीच पूरे नौ बार बात हुई थी। पुलिस ने उससे सनी के बारे में सवाल किया। साक्षी ने शुरुआत में उसके बारे में कोई जानकारी देने से इनकार किया, लेकिन सबूत दिखाने के बाद उसने सनी के साथ अपने संबंध मान लिए। एक ओर तो साक्षी इस बात से साफ इनकार कर रही थी कि इस मर्डर केस में उसका और सनी का हाथ है, वहीं दूसरी ओर पुलिस सनी को ट्रेस कर रही थी। वह शालीमार बाग स्थित अपने घर से लापता था। आखिरकार पुलिस ने सन्नी को शालीमार बाग से गिऱफ्तार कर लिया। सनी ने जल्द ही अपना जुर्म कबूल कर लिया। उसकी निशानदेही पर किरण कपूर के घर से उठाए गए सेलफोन, जूलरी, 16,600 रुपये, टीएफटी स्क्रीन एलजी, स्विस स्टार वॉच और उसके खून सने कपड़े बरामद कर लिए।
किरण कपूर का कत्ल खुद साक्षी ने अपनी बॉयफ्रेन्ड सन्नी के साथ मिलकर किया था। दरअसल किरण को बेटी के चाल चलन पर पहले से ही शक था। उसने बेटी को समझाने की लाख कोशिश की लेकिन कोई फायदा नही हुआ। इसी वजह से साक्षी का घर से आना जाना बन्द कर दिया गया। फिर भी किसी ना किसी तरह वो अपने बॉयफ्रेन्ड को घर पर बुला लेती। वारदात वाले दिन दोनों घर पर ही मौजूद थे जबकि किरण काम के सिलसिले से बाहर गई हुई थी। जब किरण घर लौटी तो बेटी को आपत्तिजनक हालात में देखकर गुस्सा गई। बस इसी बात पर दोनों ने किरण का बेरहमी से कत्ल कर दिया और फिर खुद को बचाने के लिए हत्या को शक्ल दी लूटपाट के बाद हत्या की। आखिरकार असलियत सबके सामने आ गई।..
17 दिसंबर 2009
फिर लुटी दिल्ली
दिल्ली के लोग लुट जाते हैं और पुलिस तमाशा देखती रह जाती है...पुलिस लोगों को सुरक्षित होने का दावा तो करती है..लेकिन उन दावों में कितना दम होता है, ये सबको मालूम है...बदमाश बेखौफ होकर दिल्ली पुलिस की दावों का हवा निकाल देते हैं....बदमाश दिनदहाड़े वारदात को अंजाम देकर फरार हो जाते हैं...और पुलिस खाक छानती रह जाती है...ताजा मामला है दिल्ली के अशोक विहार का...जहां बाइक सवार बदमाशों ने ज्वैलरी व्यवसायी से एक करोड पचपन लाख रूपये लूट लिए। माना जा रहा है कि दिल्ली में अब तक का ये सबसे बड़ी लूट है.... लुट रही है दिल्ली.. बेखौफ है बदमाश.. नही है पुलिस का डर.. पुलिस है बेबस.. लगातार हो रही लूट की वारदात से व्यापारी वर्ग खौफजदा है। बेखौफ बदमाशों ने इस बार निशाना बनाया दिल्ली के ज्वैलरी व्यवसायी पूर्ण चन्द बंसल को। दरअसल अशोक विहार फेज दो में रहने वाले पूर्ण चंद सुबह तकरीबन नौ बजे घर से बैंक जाने के लिए निकले ...उनके साथ दो बैग में एक करोड पचपन लाख रूपये थे जिन्हें बैंक में जमा करना था....जैसे ही उन्होंने घर के बाहर खड़ी अपनी गाडी में बैग रखा तो दो बाइक पर सवार होकर आए चार बदमाशों ने उनपर पिस्टल सटा दी। जब तक पूर्णचंद कुछ समझ पाते बदमाश बैग लेकर फरार हो चुके थे। पुलिस के मुताबिक पूर्ण चंद का सदर बाजार और अशोक विहार में ज्वैलरी का कारोबार है और कई दिन की कलेक्शन इक्ठठा होने की वजह से वो बैंक में पैसा जमा कराने जा रहे थे। पुलिस को पुछताछ में पता चला है कि बदमाश पहले से ही घर के बाहर घात लगाए थे। वे घर के पास रहने वाले धोबी की दुकान में बैठकर पूर्ण चंद का इंतजार कर रहे थे.... जैसे ही पूर्णचंद घर से बाहर निकले उन्हे निशाना बना लिया। पुलिस को आशंका है कि बदमाशों को पहले से ही पुख्ता जानकारी रही होगी। तभी बदमाशों ने इस वारदात को बेखौफ होकर अंजाम दिया है...पुलिस ने पुछताछ के लिए इस मामले में धोबी समेत तीन लोगों को हिरासत मे लिया है। हालांकि घटना के तुरंत बाद पुलिस ने इलाके की नाकेबंदी कर वहां से गुजर रहे सभी बाइक सवार लोगों की जांच कर रही है। . नार्थ वेस्ट दिल्ली में लूट की ये कोई पहली वारदात नही है...इससे पहले भी बेखौफ बदमाश कई व्यापारियों को अपना शिकार बना चुके है। हालांकि कुछ दिन पहले पुलिस ने बदमाशों को गिरफ्तार कर लूटपाट के कई मामले सुलझाने का दावा किया था,...लेकिन पुलिस का दावों में कितना दम था...इस वारदात के बाद जाहिर हो चुका है....दिन दहाडे हुई इतनी बडी लूट के बाद इलाके के कारोबारी सहमे हुए है।
माता के नाम पर लूट
दिल्ली पुलिस ने एक ऐसे गैंग का पर्दाफाश किया है जो माता के जागरण के नाम पर लोगों के घरों में सेंधमारी करता था। पुलिस ने इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। तीनों बिहार के रहने वाले है और इन दिनों दिल्ली के अलग अलग इलाके में रह रहे थे। पुलिस ने इनके पास से सेंधमारी का काफी सामान बरामद किया है इसी के साथ वारदात में इस्तेमाल किए जाने वाले हथियार भी बरामद किए है। पुलिस ने इनकी गिरफ्तारी से लूट और सेंधमारी की दो दर्जन से ज्यादा वारदातों को सुलझाने का दावा किया है।कहते हैं कि मां के दर जो भी गया वो कभी खाली हाथ नही लौटा। मां अपने बच्चों का ख्याल रखती है और उन्हें खाली हाथ नहीं लौटाती....पर वे दुसरों से कुछ अलग थे... वो माता के दर नहीं बल्कि माता के नाम पर लोगों के दर जाते थे... और वो भी कभी खाली हाथ नही लौटे.... जहां भी गए उनकी झोली में कुछ ना कुछ आ ही जाता... प्यार से नहीं तो लूट कर, डकैती कर....जी हां दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में आए ये तीनों शातिर माता के नाम पर ही लूट और सेंधमारी की वारदात को अंजाम देते थे। पुलिस के मुताबिक ये लोग माता के जागरण की पर्ची के बहाने लोगों के घरों में दान लेने जाते ... और फिर घर में किसी को ना पा उस घर को लूट लेते थे.... जिस घर मे ये लोग जाते... इनकी निगाह घर में रखे सामान पर ही होती थी। जिस घर में कोई नही होता उस घर का ताला तोड़ ये शातिर कीमती सामान लेकर फरार हो जाते। पिछले कई महीनों से दक्षिणी दिल्ली में हो रही सेंधमारी से पुलिस भी तंग आ चुकी थी... पुलिस ने इनकी धरपकड के लिए टीम का गठन किया तो तीनों शातिर पुलिस के शिकंजे में आ गए। इनकी गिरफ्तारी में अहम भूमिका निभाई एक स्कूली छात्र ने.... दरअसल बीस अक्टूबर को गैंग लोधी कॉलोनी के एक मकान में ताला तोडकर सेंधमारी की वारदात को अंजाम दे रहा था...वहीं पास के मकान में एक स्कूली छात्र इन बदमाशों की सारी हरकतें देख रहा था....बच्चे ने इनकी सारी हरकतों को मोबाइल फोन में कैद कर लिया। जब पुलिस ने इनकी तलाश शुरू की तो पुलिस को भी छात्र की क्लीपिंग के बारे में पता चला। क्लिपिंग के आधार पर पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार किए गए तीनों शातिरों के नाम अखिल, सुनिल और अजय है और तीनों मूलरूप से बिहार के रहने वाले है हालांकि इन दिनों ये शातिर दिल्ली के अलग अलग इलाके मे रह रहे थे। पुलिस ने गिरफ्तार बदमाशों के पास से चार लाख से अधिक के सोने के गहने, तीन चाकू, वारदात में इस्तेमाल किये जाने वाले हथियार और एक मोटरसाईकिल भी बरामद की है। अभी इस गैंग के कुछ और बदमाश फरार है जिनकी पुलिस तलाश कर रही है। पुलिस को यकीन है कि इनकी गिरफ्तारी से कुछ और वारदात के मामले सुलझ सकते हैं
14 दिसंबर 2009
एक मासूम पूछ रहा सवाल.... मेरा गुनाह क्या था...
दिल्ली के केशवपुरम इलाके में एक साल के बच्चे की गोली मारकर हत्या कर दी गई। घटना के वक्त बच्चा घर में अपने माता- पिता और बहनों के साथ सो रहा था। गोली बच्चे के सिर में लगी जिससे उसकी अस्पताल में मौत हो गई। पुलिस ने गैरइरादतन हत्या का मामला दर्ज कर लिया है और आरोपी की तलाश कर रही है। एक साल का मासूम इरशाद अब इस दुनिया में नही है.. और ना ही उसकी यादें तस्वीरों में बची है। इरशाद की गोली लगने से मौत हो गई... ग्यारह दिसम्बर की रात इरशाद अपने परिवार के साथ केशवपुरम रेलवे ट्रैक के पास बसी झुग्गी में सो रहा था। रात एक बजे के करीब अचानक वो जोर जोर से रोने लगा...पास ही में सोयी उसकी मां ने जब लाइट जलाकर देखा तो इरशाद के सिर से खून बह रहा था। ये देखकर माता पिता घबरा गए। तुरंत उसे एलएनजेपी अस्पताल ले जाया गया। लेकिन घर वालों को अभी तक नहीं मालूम पड़ा था कि आखिर बच्चे को हुआ क्या... कुछ ही देर में डॉक्टरों ने बच्चे को मृत घोषित कर दिया। पता चला की इरशाद से सिर में गोली लगी है और गोली लगने के वजह से ही उसकी मौत हुई है। अस्पताल से सूचना मिलने के बाद पुलिस अस्पताल पहुंची...पुलिस ने परिजनों से भी पूछताछ की...साथ ही पुलिस उस घर में भी पहुंची जहां बच्चें को गोली लगी थी पुलिस को जांच में पता चला की गोली गत्ते और पॉलिथिन की छत को भेदते हुए बच्चे को जा लगी थी.... पुलिस के मुताबिक हो सकता है किसी ने शादी समारोह के दौरान फायरिंग की हो और नीचे गिरते हुए गोली बच्चे को लग गई। फिलहाल पुलिस ने अज्ञात शख्स के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज कर लिया है . बेहद अजीबो गरीब हालात में हुई मासूम की मौत से इलाके के लोग सन्न है तो पुलिस भी परेशान दिखती है। उसे समझ नही आ रहा कि गोली चलाने वाले शख्स तक वो कैसे पहुंचे।
11 दिसंबर 2009
असली बोतल नकली शराब
एंकर.. अगर आप भी महंगी शराब पीने के शौकीन है तो जरा संभल जाएं। हो सकता है कि आपका ये शौक महंगा पड जाए। राजधानी में ना केवल जहरीली शराब बेची जा रही है। बल्कि महंगी और उमदा किस्म की शराब के नाम पर लोगों को जहर बेचा जा रहा है। दिल्ली पुलिस ने एक ऐसे ही शख्स को गिरफ्तार किया है जो उमदा किस्म शराब की खाली बोतलों में सस्ती शराब भर बाजार में बेच दिया करता था। पुलिस ने जयप्रकाश नाम के इस शख्स के पास से ब्रांडिड किस्म की 108 बोतलें भी बरामद की हैं। शादी-विवाह के मौकों पर आपने खूब जाम छलकाएं होगें...पार्टियों में भी शराब का लुत्फ उठाया होगा..और तो और जहरीली शराब पीकर लोगों को तिल तिल कर मरते हुए भी देखा होगा...। हो सकता है इसके बाद आपने फैसला भी किया हो...शराब से तौबा करने का। अगर कोई आपको उम्दा शराब लाकर दे दे, तो हो सकता है फिर से आपका मन डोल जाए...आप अपनी सोच बदले दे और ये कह उठे कि दो दो पैक लगाने में बुराई ही क्या है। लेकिन आपकी सोच में हम जरा सी दखल देने की हिमाकत कर रहें हैं....आपको आगाह कर रहे हैं कि कहीं महंगी शराब के चक्कर में आप किसी खतरे में ना पड़ जाएं...क्योंकि शराब के नाम पर लोगों को परोसा जा रहा है जहर...शराब के नाम पर बांटी जा रही मौत...मौत बांटने वाले आपके आसपास भी हो सकते हैं...अब जरा इन साहब से मिलिए....पुलिस ने इन्हें कुछ इसी तरह के मामले में गिरफ्तार किया है। पुलिस के मुताबिक जयप्रकाश नाम का ये शख्स लोगों को उमदा किस्म की शराब के नाम पर नकली शराब परोसता था। दरअसल दस दिसम्बर को दिल्ली पुलिस के स्पेशल स्टाफ को सूचना मिली थी कि जहांगीर पुरी इलाके में महंगी शराब की बोतलों मे नकली शराब परोसने का काम चल रहा है। पुलिस ने टीम का गठन कर छापा मारा तो जयप्रकाश नाम का ये शातिर पुलिस के शिकंजे मे आ गया।पुलिस को जयप्रकाश से पूछताछ में जो कुछ पता चला वो चौंकाने वाला है। दरअसल जयप्रकाश फार्म हाउस में होने वाली पार्टी या शादी समारोहों से महंगी शराब की खाली बोतलें उठा लाता था या फिर कबाडियों से बोतले खरीद लाता था। बाद में उन बोतलों में नकली शराब भरकर दोबारा पैकिंग कर शादी, पार्टी में सप्लाई कर देता...पुलिस ने शराब की जो बोतले बरामद की हैं उनकी ओरिजनल बोतल की कीमत दो हजार से तीन हजार रूपये तक है। जबकि ये महज एक हजार रूपये में उसी ब्रांड की नकली शराब मुहैया कराता था। पुलिस ने इसके जहांगीर पुरी के ठिकाने से उमदा किस्म की शराब की 108 बोतलें बरामद की हैं... साथ ही पैकिंग की दो मशीन, रैपर, स्टिकर भी भारी मात्रा में बरामद किये हैं।फिलहाल पुलिस ने एक्साइज एक्ट और आईपीसी की धारा 420,468,471 के मामला दर्ज कर लिया है। पुलिस अब ये पता लगाने में लगी है कि असली और नकली के इस गोरखधंधे में और कौन कौन शामिल है। लेकिन इस घटना ने साफ कर दिया है कि सस्ती शराब ही नही ब्रांडेड शराब भी जहरीली हो सकती है।
09 दिसंबर 2009
फर्जी आईजी पार्ट टू
एक कहावत है बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी। ऐसा ही कुछ इन नटवर लाल के साथ हुआ। एक दिन पूरा कुनबा ही पुलिस के हत्थे चढ गया। आईये आपको बताते है कि कैसे ये लोग पुलिस के शिकंजे में आ गए। फर्जी आईजी बने ज्ञानेद्र ने अपनी जेके नम्बर की जिप्सी पर रैपिड एक्शन फोर्स की प्लेट लगा रखी थी...बल्कि सायरन भी लगा रखा था। इसी सायरन इन्हे पुलिस थाने पहुंचा दिया... दरअसल सायरन बजाते हुए ये लोग नोएडा से गुजर रहे थे... तभी नाके पर तैनात पुलिस कर्मियों ने इन्हें रोक लिया... चैकिंग के दौरान ज्ञानेद्र ने खुद को रैपिड एक्शन फोर्स का आईजी बताया... कुछ पल के लिए तो पुलिसकर्मियों को लगा कि ज्ञानेन्द्र सही बोल रहा है। लेकिन शक होने पर जब आईकार्ड की मांग की गई तो पूरी हकीकत सामने आ गई। जो आईकार्ड उसने पुलिस वालों को दिखाया वो फर्जी था। यही नही उसकी पत्नी और बेटे का आईकार्ड भी फर्जी निकला। पुलिस को समझते देर नही लगी की ये कोई आईजी या सर्कल ऑफिसर नही बल्कि शातिर नटवर लाल है। पुलिस ने जब तीनो से गहराई से पूछताछ की तो कई चौंकाने वाली बाते सामने आई। ज्ञानेन्द्र ने पुलिस को बताया कि उसने ग्रेटर नोएडा में आल इंडिया बैंक रिकवरी रैपिड एक्शन फोर्स नाम से एक रिकवरी कम्पनी खोल रखी है और वो बैंको के लिए पैसा वसूल करने का काम करता है। इसमें उसका बेटा और पत्नी भी बखूबी साथ देते। इसी की आड में ये लोग खुद को रैपिड एक्शन फोर्स का अधिकारी बताकर लोगों को चूना लगाते थे। पुलिस को जांच में पता चला की जिस कम्पनी का नाम आरोपी ने बताया है उस नाम से तो किसी कम्पनी का रजिस्ट्रेशन ही नही हुआ है। पुलिस ने इनके पास से कई तरह के फर्जी दस्तावेज भी बरामद किए है। फिलहाल तीनों के खिलाफ धोखाधडी का मामला दर्ज कर लिया गया है। अब पुलिस ये पता लगाने में जुटी है कि अब तक इन्होंने कितने लोगों को फंसाया है...साथ ही उस बैंक का भी पता किया जा रहा जिसके लिए ये काम करते थे
फर्जी आईजी साहब
पति रैपिड एक्शन फोर्स में आईजी... पत्नी रैपिड एक्शन फोर्स में सर्कल ऑफिसर। अब आप सोचकर देखिए उनका इलाके में क्या रूतबा होगा। आपने सही सोचा जहां से भी वो गुजरेंगे कोई भी एक बार के लिए सलाम करना नही भूलेगा। उन तीनो के साथ भी बिल्कुल ऐसा ही होता। जिस गली से वो गुजरते लोग सल्यूट करना नही भूलते। इलाके का हर बाशिंदा उन्हे बखूबी जानता। रूतबा ऐसा की हर कोई देख-सुनकर हैरान रह जाए। लेकिन रसूकदार रूतबा रखने वाला कुनबा आ गया है नोएडा पुलिस के शिकंजे में। क्या है इस कुनबे की असली हकीकत आईये बताते है। तन पर फौजी वर्दी...लाल बत्ती वाली गाडी और इलाके में खूब चलता हो रौब... भला किसी को और क्या चाहिए। कहानी के हर पहलु से आपको रूबरू कराने से पहले मिलवाते है इस कहानी के किरदारों से.... इनसे मिलिए ये हैं रैपिड एक्शन फोर्स के आईजी साहब....नाम है ज्ञानेद्र प्रकाश तोमर.... चलिए दूसरे किरदार से भी मिल लिजिए...ये हैं रैपिड एक्शन फोर्स की सर्कल ऑफिसर माधुरी तोमर...पूरी तरह वर्दी में चुस्त दुरुस्त...शान वही रुतबा भी वही....और हां आईजी साहब और सर्कल ऑफिसर साहिबा दोनों पति-पत्नी है... अब जरा तीसरे किरदार से भी मिल लिजिए... ये जनाब है शरदीप तोमर.. और ये साहब भी रैपिड एक्शन फोर्स में ही तैनात है...बस फर्क इतना है कि ये कोई आला अधिकारी नहीं बल्कि आईजी साहब के ड्राईवर है। लेकिन इनका भी रूतबा कुछ कम नही ...हो भी तो कैसे लाल बत्ती वाली गाडी जो चलाते है...वो भी आईजी साहब की। लेकिन ये सिर्फ ड्राइवर ही नहीं है बल्कि ये आईजी ज्ञानेन्द्र तोमर के लाडले हैं... अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इन अधिकारियों पर ऐसी कौन सी मुसीबत आन पड़ी कि इन्हें अपने पूरे परिवार के साथ थाने में आना पड़ा आईजी साहब के चेहरे की उडी हवाइयां देखकर अब तक आप ये तो समझ चुके होंगे की, मामला गंभीर है... हैरानी की बात तो ये है कि उनकी मुसीबत किसी बदमाश या चोर उच्चके ने नही बल्कि नोएडा पुलिस ने बढ़ाई है... दरअसल ये रैफ के अधिकारियों का कुनबा नहीं बल्कि नटवरलाल का कुनबा है....जी हां ये हैं रैफ के नकली अधिकारी...पूरा परिवार ही नकली अधिकारी बन लोगों पर रौब गांठता था पुलिस के मुताबिक इन फर्जी अधिकारियों का असली धंधा है...वर्दी का रौब दिखाकर लोगों से बैंक का लोन वसूल करना। जी हां वही काम जो बैंक कई बार अपने गुंडे भेजकर कराता है... लेकिन आखिरकार पुलिस के हत्थे चढ ही गए। किसी भी मामले में ये लोग रैपिड एक्शन फोर्स के अधिकारियों से कम नही थे.... इनके पास बाकायदा एक जिप्सी मिली है जिस पर रैपिड एक्शन फोर्स की प्लेट लगी थी।
08 दिसंबर 2009
मैजिक पेन से ठगी
वो खुबसूरत तो है ही.. लेकिन उसकी आवाज भी उतनी ही रसीली है कि किसी को भी अपने जाल में फंसा ले। वो एक फोन करती है शिकार खुद ब खुद उसके जाल में फंस जाता है। अगर आप के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है तो संभल जाए। हो सकता है हुस्न की मल्लिका के जाल में कहीं आप भी ना फंस जाए। चंद मिनटों में वो कर देगी आपकी जेब पर हाथ साफ। इस खूबसूरत चेहरे को ज़रा गौर से देखिये ! कई प्राइवेट बैंको के नाम पर इस महिला ने जो कुछ किया वो सुन कर शायद आपके पैरो तले की ज़मीन खिसक जाएगी ! ज़रा याद कीजिये कही कुछ दिन पहले आपको कोई फोन कॉल तो नहीं आई। किसी ने मिठी सी आवाज़ में आपसे लोन लेने के लिए कहा ! यही नहीं आपको लुभावने ऑफर भी दिए गए हो ! अगर ऐसा है तो ज़रूर याद कीजिये की कही उस आवाज़ के जाल में फंसकर आपने बैंक के एजेंट को कोई चेक तो नहीं दे डाला ! अगर ऐसा है तो ये आपकी सबसे बड़ी भूल हो सकती है ! इन दिनों लोन दिलाने के नाम पर कई गैंग सक्रिय है जिसने से एक गिरोह की मास्टरमाइंड है ये महिला। जो अपने गुर्गो की मदद से इस फर्जीवाड़े को अंजाम दे रही है। लेकिन हैरानी की बात ये है की अब भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है ये महिला। गाज़ियाबाद पुलिस अभी तक महिला गिरोह के एक बदमाश विक्रमजीत को ही गिरफ्तार कर पाई है। हुस्न और आवाज की इस मल्लिका का नाम है डिम्पी। जीं हां यही नाम है इसका। लोगो को ठगी का शिकार बनाने का इसका तरीका बेहद शातिराना होता है। दरअसल डिम्पी पहले फोन कर लोगों का अच्छे ऑफर का झांसा देकर लोन दिलाने की बात कहती है। और फिर जब लोग इसकी बातों में फंसकर हामी भर देते है तो डिम्पी अपने गिरोह के सदस्यों को भेजकर लोन से संबंधित कागजात और एक चेक जिसपर लोन दिलावाने की फीस का अमाउंट भरा होता था मंगा लेती। लोन के चक्कर में लोग बेफिक्र होकर चेक दे भी देते। लेकिन कुछ दिन बाद जब बैंक एकांउट चेक करते तो एकाउंट मे पैसा होता ही नही। इस जालसाज के चक्कर में लोग अपना सब कुछ लुटा बैठते है। गाजियाबाद पुलिस को लगातार इस तरह की ठगी की शिकायते मिल रही थी। पुलिस को समझते देर नही लगी की इस तरह की वारदात को कोई शातिर गिरोह अंजाम दे रहा है। पुलिस ने छानबीन की तो गिरोह का एक बदमाश पुलिस के शिंकजे मे आ गया। पुलिस ने विक्रमजीत नाम के इस शातिर के पास से दर्जन भर लोन के फार्म और ग्राहकों के फोटो बरामद किए है। साथ ही इसके पास से फर्जी आईकार्ड भी बरामद हुए है। पुलिस अब ये पता लगाने में लगी है कि इस गिरोह ने अब तक कितने लोगों को चूना लगाया है।
झपटमार गिरफ्तार
नोएडा में लगातार हो रही लूटपाट और झपटमारी की घटनाओं ने पुलिस की नाक में दम कर रखा है। पुलिस ने इसी के मद्देनजर झपटमारों के गैंग का पर्दाफाश किया है नोएडा पुलिस ने इस मामले में आधा दर्जन बदमाशों को गिरफ्तार किया है। पुलिस ने बदमाशों के पास से चार कार, तीन बाइक और लूट के तीन मोबाइल फोन भी बरामद किए है। पुलिस गैंग की गिरफ्तारी को बडी कामयाबी मान रही है।लम्बे अर्से से बदमाशों के कारनामों से परेशान नोएडा पुलिस झपटमारों के गिरोह के छ बदमाशों की गिरफ्तारी से राहत महसुस कर रही है। पुलिस गिरफ्त में आए इन बदमाशों ने नोएडा पुलिस के पसीने छुडा रखे थे। पुलिस लम्बे अर्से से इनकी तलाश कर रही थी। दरअसल कुछ समय से नोएडा और आसपास में लूटपाट और झपटमारी की घटनाए आम हो चुकी है। बदमाश बेखौफ होकर वारदात को अंजाम देकर फरार हो जाते है। पुलिस ने इसी के मद्देनजर टीम का गठन किया और एक के बाद एक घटनाओं के अंजाम दे रहे गैंग के आधा दर्जन बदमाशों को धर दबोचा। पुलिस के मुताबिक इनको उस वक्त गिरफ्तार किया गया जब ये लोग नोएड़ा सेक्टर 63 में लूट की वारदात को अंजाम देने की साजिश रच रहे थे। पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली थी कि कुछ लोग नोएडा सेक्टर 63 में बैठे है और किसी वारदात को अंजाम देने की साजिश कर रहे है। पुलिस ने छापा मारा और सभी को धर दबोचा।. छापा मारी में पुलिस के हाथ चार ही बदमाश लग सके। लेकिन पुलिस ने जब इनसे पूछताछ की तो कुछ और लोगों के नाम भी सामने आए। पुलिस ने इनकी निशानदेही पर दो और बदमाशों को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने इनके पास से चार कार, तीन मोटर साईकिल, तीन मोबाइल फोन और वारदात में प्रयोग किया जाना वाला एक चाकु भी बरामद किया है। पुलिस को पूछताछ में पता चला की इस गैंग को अंकित आपरेट कर रहा था और बाकि लोग वारदात को अंजाम देने के लिए उसका साथ देते थे। अंकित सीआईएसएफ में तैनात एक सब-इंस्पेक्टर का बेटा है। नोएडा पुलिस के मुताबिक ये गिरोह आन डिमांड गाडियों की चोरी करता था। यानि पहले गाडी का रंग, मॉडल और कीमत तय होती थी उसके बाद वारदात को अंजाम दिया जाता था। पकडे गए बदमाशों में से विपुल नाम के एक शख्स पर नोएडा पुलिस ने इनाम घोषित कर रखा था। गिरोह के छ बदमाश तो पुलिस के हत्थे चढ गए है लेकिन पुलिस अब इस गिरोह के अन्य बदमाशों की तलाश कर रही है।
27 नवंबर 2009
बेटे का फर्ज
मुझे मेरे पापा से मिलने दो.. ये बात कोई बच्चा कहे तो शायद आपको जरा भी अजीब नही लगेगा लेकिन ये बात कह रहा है एक चालीस साल का आदमी। जिसका हंसता खेलता परिवार है बीवी है बच्चे है वो बार बार यही कहता है कि मुझे पापा है पास जाना है मैं अपने पापा को एक बार देखना चाहता हूं। मुझे ये सब देखकर खुद का बचपन याद आ गया.. दरअसल ये वाक्या उस वक्त का है जब मैं एक न्यूज कवर करने के लिए गया था। जब कुलविंद्र नाम का एक शख्स अपने पिता से मिलने को इतना बेताब था जैसे एक छोटा बच्चा बीन दुध के मां को याद करता है। जब कुलविंद्र की वास्तविकता सामने आई तो कुछ पल के लिए मैं भी हैरान हो गया। दुख ये जानकार हुआ की कुलविंद्र के पिता अब इस दुनिया में नही रहे। और पिछले सात दिन से कुलविंद्र पिता से मिलने की कोशिश कर रहा है। दरअसल 15 साल पहले अपनी बीवी और बेटी के साथ अमेरिका में जा बसे त्रिलोचन की अमेरिका के वर्जिनाया में हुए एक सडक हादसे में मौत हो गई। पिता की लाश सात संमदर पार है और बेटा लगातार वहां जाने की जिद कर रहा है लेकिन वीजा नही मिल रहा है। अब बेटा करे तो क्या करें। ये हकीकत है दिल्ली के वसंत विहार के रहने वाले कुलविंद्र की। कुलविंद्र पिछले सात दिन से अमेरिकी दूतावास के चक्कर लगा रहा है आज कल कभी तो वीजा मिले... पिता की लाश सात दिनों से एक मुर्दा घर में पडी है मां ने जिद लगा रखी है बेटा नही आएगा तो अंतिम संस्कार भी नही होने देगी। बेटा ऐसे दोराहे पर खडा है जहां से उसे कोई रास्ता दिखाई नही दे रहा। दरअसल अमेरिकी दूतावास भी अपने कुछ कायदे कानूनो पर अडा हुआ है। कुलविंद्र के मुताबिक दूतावास का कहना है कि अगर वो अमेरिका गया तो फिर भारत नही लौटेगा इसलिए उसे वीजा नही दिया जा रहा है। पिता के लिए बेटे की तडप और बेटे की तडप क्या होती है आज मैने एक बार फिर अपनी आंखो से देखी है। कौन कहता है कि रिश्तों का प्यार समय के साथ कमजोर हो जाता है कुलविंद्र की कहानी देखकर मुझे पल भर के लिए भी ऐसा अहसास नही हुआ। कुलविंद्र का दर्द उसकी आंखों से साफ झलक रहा था। मेरा बस एक ही सवाल है ऐसे में कुलविंद्र क्या करें मुझे तो इसका जवाब नही सुझ रहा है अगर आप को मिले तो जरूर बता देना।
आपका मित्र
आपका मित्र
08 नवंबर 2009
बेटी का गम
बेटे के लिए सब कुछ कर गुजरने वालो के बारे में आपने खूब सुना होगा, देखा भी होगा। बेटे की चाह में लोग क्या से क्या हो जाते है वो दुनिया की हर रस्म भूल जाते है। उन्हे होती है बस एक बेटे की अदद चाह। लेकिन क्या कभी सुना है एक पिता बेटी के लिए दर-दर भटकता रहे। अगर बेटी नही तो उस पिता को खुद की जिंदगी भी गवारा नही है। दिल दहला देने वाला ये वाक्या है संगरूर के मालेरकोटला इलाके का। मुझे मेरी बेटी लौटा दो-- तुम जो कहोगे मैं करूंगा। मैं हमेशा के लिए तुम्हारी दुनिया से चला जाउंगा। बस तुम मेरी बेटी लौटा दो। वो मेरी बेटी नही--- मेरी जान है। ये दर्दनाक गुहार थी एक पिता की जिसने बेटी के लिए मौत को गले लगा लिया। बेटी को पाने के लिए वो दर-दर भटकता रहा। और जब बेटी ना मिल सकी तो उस बेबस पिता ने जहरीला पदार्थ खाकर खुद को मौत के हवाले कर दिया। भवानीगढ के रहने वाले हैप्पी सिंह की शादी मालेरकोटला गांव की रहने वाली संदीप कौर से हुई थी। दोनो की चार साल की एक बेटी थी लेकिन गांव की पंचायत को संदीप के चरित्र पर शक होने की वजह से उसे गांव से निकाल दिया। संदीप गांव छोडने से पहले अपनी चार साल की बेटी हरमन कौर को भी अपने साथ ले गई। बेटी के जाने के बाद हैप्पी उदास रहने लगा, उसे दिन रात बेटी की याद सताती। एक दिन हैप्पी ने फैसला किया की वो खुद ससुराल जाकर बेटी को वापिस लेकर आएगा। ससुराल में जाने पर हैप्पी ने लाख कोशिश की मगर ससुराल वालों ने हरमन को देने से इनकार कर दिया। हताश हुए हैप्पी ने वहीं पर जहरीला पदार्थ खाकर खुदकुशी कर ली। हालांकि हैप्पी के परिजनों का कहना ही की उसकी हत्या की गई है।
फिलहाल पुलिस हैप्पी की मौत को खुदकुशी का मामला मानकर तफ्तीश कर रही है। पुलिस ने हैप्पी के ससुराल के पांच लोगों के खिलाफ आत्महत्या के लिए मजबूर करने का मामला दर्ज कर लिया है। घटना के बाद से हैप्पी के ससुराल वाले उसकी बेटी हरमन कौर के साथ फरार है पुलिस उनकी तलाश कर रही है। हैप्पी ने बेटी की चाहत में जान दी या फिर उसकी हत्या कर दी गई। ये बात तो जांच के बाद ही साफ हो जाएगी। लेकिन समाज में जिस तरह से पति पत्नी के बीच तकरार की बाते सामने आ रही है उसका खामयाजा बच्चों को भुगतना पडता है। इस मामले में भी चार साल की मासूम बच्ची को पिता से महरूम होना पडा।
फिलहाल पुलिस हैप्पी की मौत को खुदकुशी का मामला मानकर तफ्तीश कर रही है। पुलिस ने हैप्पी के ससुराल के पांच लोगों के खिलाफ आत्महत्या के लिए मजबूर करने का मामला दर्ज कर लिया है। घटना के बाद से हैप्पी के ससुराल वाले उसकी बेटी हरमन कौर के साथ फरार है पुलिस उनकी तलाश कर रही है। हैप्पी ने बेटी की चाहत में जान दी या फिर उसकी हत्या कर दी गई। ये बात तो जांच के बाद ही साफ हो जाएगी। लेकिन समाज में जिस तरह से पति पत्नी के बीच तकरार की बाते सामने आ रही है उसका खामयाजा बच्चों को भुगतना पडता है। इस मामले में भी चार साल की मासूम बच्ची को पिता से महरूम होना पडा।
रिश्तों का खून
ग्रेटर नोएडा में रिश्तों को शर्मसार करने वाला मामला सामने आया है। यहां सगे भाई ने ही अपने बडे भाई की गोली मारकर हत्या कर दी। बताया जा रहा है कि मामला अवैध सम्बंधों का है जिसके चलते इस वारदात को अंजाम दिया गया। घटना में मृतक की पत्नी भी घायल हो गई। घटना के बाद से आरोपी शख्स फरार है। फिलहाल पुलिस उसकी तलाश कर रही है। एक शक और फिर सामने थी लाश--वो लाश थी एक भाई कि-- जिसे अपने छोटे भाई पर शक करने की सजा मिली मौत। खुद सगे भाई ने कर दिया चंद पलों में रिश्तों का खून। सगा भाई ही बन गया भाई का कातिल। रिश्तों को शर्मसार करने वाली ये घटना है ग्रेटर नोएडा के धममानिकपुर गांव की। दरअसल धममानिकपुर गांव में मनोज रावल और उसका बडा भाई अमित रावल रहते। साल भर पहले अमित ने शादी कर ली। भाभी घर में आई तो मनोज की खुशी का ठिकाना नही रहा। वो भाई और भाभी की हर बात मानता जो कुछ वो कहते खुशी-खुशी करता। और फिर धीरे-धीरे मनोज की नजदीकियां अपनी भाभी से बढने लगी। वो भाभी के लिए कुछ भी करने को तैयार होता। अमित हर दिन काम पर निकल जाता वहीं मनोज घर पर ही रहकर भाभी की खिदमत में हाजिर रहता, दिन बीतते गए। अमित जब भी घर लौटता मनोज को अपनी पत्नी के साथ ही पाता। अमित को ये बाते अखरने लगी थी। उसे पसन्द नही था कि मनोज घर पर ही रहे। धीरे-धीरे अमित को शक होने लगा कि मनोज के उसकी पत्नी के साथ अवैध संबंध है इस बात को लेकर उसने मनोज को समझाया भी लेकिन मनोज पर कोई फर्क नही पडा। वहीं दोनों भाईयों के रिश्तों में खटास आ गई। मंगलवार की रात दोनों भाई घर पर बैठकर शराब पी रहे थे। इसी दौरान दोनो भाईयों में कहासुनी हो गई, मनोज अमित से मारपीट करने लगा। आवाज सुनरकर अमित की पत्नी बीच बचाव करने पहुंची तो मनोज ने उसपर गोली चला दी, इसी दौरान मनोज ने तैश में आकर अमित पर भी गोली दाग दी। खून में लथपथ पडे अमित को अस्पताल ले जाया गया जहां उसकी मौत हो गई। जबकि उसकी पत्नी संतोष को गाजियाबाद के यशोदा अस्पताल में भर्ती कराया गया है। इस घटना में संतोष के गर्भ में पल रहे बच्चे की भी मौत हो गई। भाई को गोली मारने के बाद मनोज मौके से फरार हो गया। फिलहाल पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर लिया है और फरार मनोज की तलाश कर रही है पुलिस को उम्मीद है कि मनोज को जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा। हालांकि पुलिस भी मान रही है कि मामला अवैध संबंधों का है। अब पुलिस भले ही सगे भाई के हत्यारे मनोज को गिरफ्तार कर ले। लेकिन रिश्तों को शर्मसार करने वाली इस घटना ने जाहिर कर दिया है कि आज समाज में खून के रिश्ते किस कदर टूटते जा रहे है।
22 अक्तूबर 2009
लो तेंदुआ आ गया----
लो तेंदुआ आ गया----
बाहरी दिल्ली के जिंदपुर गांव में कुछ दिन पहले अचानक एक तेंदुआ दिखने से इलाके में हडकंप मच गया। जैसे ही लोगो को तेंदुए के मिलने का पता चला हर कोई जंगल के इलाके में दौड पडा। दरअसल अलीपुर इलाके के जिंदपुर गांव के एक फार्म हाउस दुआ दिखा तो फार्म हाउस के मालिक ने खुद ही उसकी वीडियों फिल्म बना ली और फिर मामले की जानकारी तुरंत पुलिस को भी दे दी। हमेशा लेट लतीफी का आरोप झेलने वाली दिल्ली पुलिस ने भी पूरे मामले को पूरी गंभीरता से लिया। सूचना मिलने के चंद मिनटों बाद ही पुलिस मौके पर पहुंच गई माने तेंदुए को चुटकियों में पकड कर उसे सलाखों के पीछे पहुंचा देगी। पुलिस के पहुंचने पर हालांकि फार्म हाउस के मालिक ने राहत की सांस ली। लेकिन फार्म हाउस में तेंदुए की मौजूदगी को लेकर वो भी हैरान परेशान थे। चलो फिर क्या था हर कोई तेंदुए की वीडियों को देखने के लिए इतना बेताब मानो कभी तेंदुए को देखा ही नही हो। तेंदुए को देखने के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक तो खुद पुलिस के जवान ही थे। वीडियों देखने के बाद साफ हो गया कि जिस जानवर पर इतना घमासान मचा है वो सही में तेंदुआ है इस बात की तस्दीक वाइलड लाईफ विभाग ने भी कर दी। लेकिन अब जितना अहम तेंदुए को गिरफ्तार करना था उतना ही ये पता लगाना भी की आखिर इस इलाके में तेंदुआ आया तो आया कैसे। चलिए इस पर बात करने से पहले उस घमासान पर बात कर लेते है जब तेंदुए को लेकर मारामारी रही। राजधानी में तेंदुआ आ जाए और मीडिया को खबर ना हो ऐसा कैसे हो सकता है चंद घंटो में ही तेंदुए के मिलने की खबर मीडिया जगत में भी जंगल की आग की तरह फैल गई। दरअसल उस दिन मुझे दोपहर की शिफ्ट में आफिस पहुंचना था लेकिन बाइक पंचर हो जाने की वजह से मैं आफिस लेट हो रहा था इस दौरान में मित्र का फोन भी आ गया कि अलीपुर के जिंदपुर इलाके में एक तेंदुए को देखा गया है मैं ये सुनकर हैरान रह गया फिर भी खबरी खबर कनफर्म कर रहा था तो मामले को हल्के में लेना सही भी नही था। मैंने खबर को आफिस में बताने के बाद खुद बाइक से ही मौके पर पहुंच गया। कुछ देर बाद ही आफिस से गाडी और कैमरामैन भी पहुंच गया। तबतक दिल्ली पुलिस के करीब 50 जवान हथियारों से लैस होकर फार्म हाउस पर पहुंच गए मानो तेंदुए को यूं पकडा। खैर वन विभाग का इन्तजार किया गया और इस तरह दिन के तीन बज चुके थे। फिर शुरू हुआ तेंदुए का तालाशी अभियान वन विभाग, वाइलड लाइफ और दिल्ली पुलिस तीखी नजरों से तेंदुए को तालाश रहे थे। कोई दूर से कोई पास से अचानक तालाश रूकी कुछ पंजों के निशान पर आकर। आखिरकार अंधेरा हो गया तो सर्च आपरेशन को भी रोकना पडा। अगले दिन दोबारा से तालाश शुरू हुई लेकिन पंजो के अलावा नतीजा कुछ नही निकला। अधिकारी तो तालाश में लगे थे ही उनसे कहीं ज्यादा मौके पर मौजूद पत्रकारों की नजरे तेंदुए को तालाश रही थी भला चौबीस घंटे से एक ही तो विजुअल पर चैनल खबर को ठोक बजाकर चला रहे थे। अब कुछ नया भी तो चाहिए था भई आफिस भी तेंदुआ पकडे जाने की बाट जोह रहा था। हर घंटे बाद एक ही सवाल तेंदुआ मिला क्या। लगातार 48 घंटे तक पुलिस प्रशासन के साथ साथ पत्रकार महोदय भी तेंदुए की तालाश करते रहे लेकिन आखिरकार हाथ कुछ नही लगा। तो पत्रकारों को भी अपना बोरिया बिस्तरा समेटना पडा। अब तेंदुआ जितना बिकना था बिक चुका। अधिकतर न्यूज चैनलस् ने लाल गोला लगाकार दर्शको को दिखा ही दिया की देख लो यही है तेंदुआ। आखिरकार 48 घंटे तक चला तेंदुए और प्रशासन का ड्रामा था खूब मजेदार।
बाहरी दिल्ली के जिंदपुर गांव में कुछ दिन पहले अचानक एक तेंदुआ दिखने से इलाके में हडकंप मच गया। जैसे ही लोगो को तेंदुए के मिलने का पता चला हर कोई जंगल के इलाके में दौड पडा। दरअसल अलीपुर इलाके के जिंदपुर गांव के एक फार्म हाउस दुआ दिखा तो फार्म हाउस के मालिक ने खुद ही उसकी वीडियों फिल्म बना ली और फिर मामले की जानकारी तुरंत पुलिस को भी दे दी। हमेशा लेट लतीफी का आरोप झेलने वाली दिल्ली पुलिस ने भी पूरे मामले को पूरी गंभीरता से लिया। सूचना मिलने के चंद मिनटों बाद ही पुलिस मौके पर पहुंच गई माने तेंदुए को चुटकियों में पकड कर उसे सलाखों के पीछे पहुंचा देगी। पुलिस के पहुंचने पर हालांकि फार्म हाउस के मालिक ने राहत की सांस ली। लेकिन फार्म हाउस में तेंदुए की मौजूदगी को लेकर वो भी हैरान परेशान थे। चलो फिर क्या था हर कोई तेंदुए की वीडियों को देखने के लिए इतना बेताब मानो कभी तेंदुए को देखा ही नही हो। तेंदुए को देखने के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक तो खुद पुलिस के जवान ही थे। वीडियों देखने के बाद साफ हो गया कि जिस जानवर पर इतना घमासान मचा है वो सही में तेंदुआ है इस बात की तस्दीक वाइलड लाईफ विभाग ने भी कर दी। लेकिन अब जितना अहम तेंदुए को गिरफ्तार करना था उतना ही ये पता लगाना भी की आखिर इस इलाके में तेंदुआ आया तो आया कैसे। चलिए इस पर बात करने से पहले उस घमासान पर बात कर लेते है जब तेंदुए को लेकर मारामारी रही। राजधानी में तेंदुआ आ जाए और मीडिया को खबर ना हो ऐसा कैसे हो सकता है चंद घंटो में ही तेंदुए के मिलने की खबर मीडिया जगत में भी जंगल की आग की तरह फैल गई। दरअसल उस दिन मुझे दोपहर की शिफ्ट में आफिस पहुंचना था लेकिन बाइक पंचर हो जाने की वजह से मैं आफिस लेट हो रहा था इस दौरान में मित्र का फोन भी आ गया कि अलीपुर के जिंदपुर इलाके में एक तेंदुए को देखा गया है मैं ये सुनकर हैरान रह गया फिर भी खबरी खबर कनफर्म कर रहा था तो मामले को हल्के में लेना सही भी नही था। मैंने खबर को आफिस में बताने के बाद खुद बाइक से ही मौके पर पहुंच गया। कुछ देर बाद ही आफिस से गाडी और कैमरामैन भी पहुंच गया। तबतक दिल्ली पुलिस के करीब 50 जवान हथियारों से लैस होकर फार्म हाउस पर पहुंच गए मानो तेंदुए को यूं पकडा। खैर वन विभाग का इन्तजार किया गया और इस तरह दिन के तीन बज चुके थे। फिर शुरू हुआ तेंदुए का तालाशी अभियान वन विभाग, वाइलड लाइफ और दिल्ली पुलिस तीखी नजरों से तेंदुए को तालाश रहे थे। कोई दूर से कोई पास से अचानक तालाश रूकी कुछ पंजों के निशान पर आकर। आखिरकार अंधेरा हो गया तो सर्च आपरेशन को भी रोकना पडा। अगले दिन दोबारा से तालाश शुरू हुई लेकिन पंजो के अलावा नतीजा कुछ नही निकला। अधिकारी तो तालाश में लगे थे ही उनसे कहीं ज्यादा मौके पर मौजूद पत्रकारों की नजरे तेंदुए को तालाश रही थी भला चौबीस घंटे से एक ही तो विजुअल पर चैनल खबर को ठोक बजाकर चला रहे थे। अब कुछ नया भी तो चाहिए था भई आफिस भी तेंदुआ पकडे जाने की बाट जोह रहा था। हर घंटे बाद एक ही सवाल तेंदुआ मिला क्या। लगातार 48 घंटे तक पुलिस प्रशासन के साथ साथ पत्रकार महोदय भी तेंदुए की तालाश करते रहे लेकिन आखिरकार हाथ कुछ नही लगा। तो पत्रकारों को भी अपना बोरिया बिस्तरा समेटना पडा। अब तेंदुआ जितना बिकना था बिक चुका। अधिकतर न्यूज चैनलस् ने लाल गोला लगाकार दर्शको को दिखा ही दिया की देख लो यही है तेंदुआ। आखिरकार 48 घंटे तक चला तेंदुए और प्रशासन का ड्रामा था खूब मजेदार।
12 सितंबर 2009
बम धमाके और आंसू
एक साल बीत गया-- आंखो के आंसू सूख गए-- फिर भी ना जाने क्यू जवां बेटे की याद नही जाती। ना जाने हर बार क्यूं जिंदा होती है उसकी यादें ये हाल उस बुजुर्ग का है जिसने 13 सिंतम्बर सन 2008 की उस खौफनाक शाम को अपने जवान बेटे को गंवा दिया। दिन शानिवार. समय शाम के 5.30 मिनट ,और 24 मिनट में दिल्ली में पांच धमाके ।थर्रा गई दिल्ली,.... रुक गई सासें,....थम गया आसमा।27लोग हमेशा के लिए –हमेशा के लिए मौत के आगोश में चले गए। 127 घायल हुए.....इन धमाकों में किसी के सिर से बड़ो का साया हटा ....तो किसी के भाई की कलाई सूनी हुई.......किसी को कोख उजड़ी......हादसे के एक साल बीत जाने के बाद भी लोग उस काले दिन को याद कर आज सिहर उठते है।......जिस दिन उनकी दुनिया उजड़ी थी।पहला धमाका करोलबाग की गफ्फार मार्किट में हुआ। यहां बम एक आटों में रखा था। जिसमे एक के बाद एक दो धमाके हुए।दूसरा धमाका दिल्ली का दिल कहे जाने वाले क्नॉट प्लेस में बाराखम्बा मैट्रों स्टेशन के बाहर रखे कूड़ेदान में हुआ।और तीसरा धमाका दिल्ली सबसे पाश इलाका कहे जाने वाले ग्रैटर कैलाश की मार्किट में हुआ। यहां पर बम एक साइकिल के हैंडल में लटके लंच बाक्स में रखा था। दहशत गर्दों ने धमाका करने से पहले मीड़िया को एक मेल भी किया था। जिसमे धमाका करने की बात कि गई थी। लेकिन जब तक पुलिस उस मेल को समझ पाती । तब तक नापाक इरादे लिए आए आतकियों ने वारदात को अंजाम दे दिया था। देखते देखते चारों और काला धुआ....सिर्फ चीख पुकार सुनाई पड़ी रही थी।लोगों अपनी जान बचा कर भाग रहे थे।कुछ लोगों की आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई ...और जो इस धमाके में बच गये ....उन्हें मानों नई जिदंगी मिल गई।इस बम धमाके की जिम्मेदारी इड़ियन मुजाहिद्दीन ने ली।धमाकों की साजिश सरहद पार रची गई थी। साजिश रचने वालों में रियाज बट्टल,...आमिर रजा खान.......अबू अलकामा जैसे आतंकी शामिल थे। इनके 16 साथी अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है।हालाकि पुलिस ने इनको पकड़ने के लिए रखे इनाम को एक लाख से पांच लाख कर दिया है।पुलिस इन को पकड़ने के लिए छापेमारी करती रही। लेकिन उसके हाथ कुछ नही लगा।पुलिस को 19 सितम्बर सन 2008 को.............खुफिया जानकारी मिली की दिल्ली के जामिया इलाके के एक घर में कुछ आतकंवादी छिपे हुए है।मौके पर पहुची पुलिस से उनकी मुठभेड़ हो गई .....जिसमें इड़ियन मुजाहीद्दीन के दो आतकवादी आतिफ.,और मौ साजिद मारे गए। इस मुठभेंड़ ने दिल्ली पुलिस ही बल्कि पूरे मुल्क ने एक वीर सपूत मोहन चंद शर्मा को खो दिया। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 22 मई 2008 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से हूजी के आंतकवादी अदुर रहमान को गिरफ्तार किया। जिससे पूछताछ के बाद पता चला कि उसने जनकपुरी की एक मजिस्द में तीन किलो आरडीएक्स ..5 डेटोनेटर..1 टाईमर छिपा कर रखा हुआ है।इसने बताया कि सरहद पार बैठे नाटा ने राकी नाम के व्यक्ति को 7 किलों आरडीएक्स के साथ दिल्ली में दखिल हो चुका है ।लेकिन आज तक ना तो राकी का पता चला और ना ही आरडीएक्स ।यानी दिल्ली अभी भी बारुद के ढेर पर बैठी है। शायद आज भी खुद को दिल्ली में महफूज महसुस करना खुद के साथ बेमानी होगी।
14 अगस्त 2009
तैयार है हम
स्वतंत्रता दिवस को देखते हुए खुफिया तंत्र को मिली संभावित आतंकी हमलों की जानकारी के मद्देनजर दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था को चाक चौबंद कर दिया गया है।हजारों की संख्या में दिल्ली पुलिस के जवानों और अर्धसैनिक बलों को दिल्ली और दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में तैनात किया गया है। खास कर लाल किले के इर्दगिर्द सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। पुलिस का दावा है कि आतंकियों के नापाक मंसूबो को कामयाब नहीं होने ।आतंकियों के नापाक मंसबो से निपटने के लिए 175 कम्पनियों की लगाया है। लालकिले के आस-पास 12,000हजार जवानों को तैनाती की गई है। किसी भी आतंकी वारदात पर नजर रखने के लिए लाल किले के अंदर और बाहर 100 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।शांति वन से लाल किले तक पहुंचने वाले रास्ते पर हाईटेक किस्म के कैमरे लगाए गए है...जो रात के अंधरे में भी काम करगें। लाल किले को आठ अगस्त से 15 अगस्त तक विदेशी पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया है। लाल किले के प्राचीर और उसके आस पास की बहुंमजिली इमांरतों के साथ नई दिल्ली के वीवीआईपी रुट पर शार्प शूटरों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा गार्डों की तैनाती की गई है ।हवाई हमलों से निपटने के लिए 25 एटी क्राफट के साथ जवानों को लगया गया है। सुरक्षा एजेंसियाँ लगातार लाल किले की सुरक्षा व्यवस्था की जांच कर रही हैं। सुरक्षा को देखते हुए सुरक्षा एजेंसियों ने लाल किले के आस पास की दुकानों को सील कर दिया है। आतंकियों की निशाना दिल्ली पर होता है इसके मद्धेनजर रखते हुए राजधानी को पूरी तरह से छावनी में तब्दील कर दिया गया है। दिल्ली की सीमाओं को 14अगस्त की रात से ही सील कर दिया जाएगा।
10 अगस्त 2009
भरोसे का खून
गुडगांव के एक कॉल सैन्टर में काम करने वाली लडकी ने अपने एक सहकर्मी पर बलात्कार का आरोप लगाया है लडकी का आरोप है की उसके सहयोगी ने पहले तो कोल्ड ड्रिंक में नशीला पदार्थ मिला पिला दिया और बाद में बलात्कार किया। पुलिस ने बलात्कार का मामला दर्ज कर आरोपी प्रशांत राणा को गिरफ्तार कर लिया है। एक बार फिर टुट गया भरोसा-- बिखर गए रिश्ते-- दोस्त ही बन गया हैवान-- अपनी ही दोस्त की अस्मत को कर दिया तार तार-- और उसने कर दिया उस भरोसे का खून -- पुलिस थाने में मौजूद इस शख्स पर इल्जाम है बलात्कार का-- बलात्कार उस लडकी का जो इस पर अपनो से ज्यादा भरोसा करती-- इसे अपना हमदर्द समझती--...प्रशांत राणा नाम का यह शख्स गुडगाँव के एक काँल सेटर मे काम करता है ..प्रशांत पर आरोप है कि उसने अपनी ही आफिस मे काम करने वाली एक लडकी के साथ बलात्कार किया .. वारदात की शिकार लडकी के मुताबिक कंपनी की कैब से प्रशांत राणा उसके घर ज्वाला हेड़ी इलाके में रात के करीब 8 बजे ड्राप किया। बुद्ध विहार का रहनेवाला प्रशांत भी वहीं उतर गया। इसके बाद उसने नशीली चीज मिली हुई कोल्ड ड्कि पिलाई...फिर उसे कहीं अनजान जगह ले जाकर उसके साथ बलात्कार किया। -लड़की किसी तरह वहां से ऑटो से घर लौटी। अगले दिन जब उसे होश आया तो पता चला की उसकी अस्मत लूट चुकी है-- बाद में इसने खुद थाने जाकर मामले की शिकायत पुलिस से की ..लडकी को मेडिकल के लिए अस्पताल भेजा गया जहाँ मेडिकल रिपोर्ट मे उसके साथ बलात्कार की पुष्टि हो गई...इसके बाद पुलिस ने मामला दर्ज कर आरोपी प्रशात राणा को गिरफ्तार कर लिया-- पुलिस गिरफ्त में आने के बाद प्रशांत खुद को बेकसूर बता रहा है इसके मुताबिक ये दोनो की सहमति से हुआ था।बहरहाल आरोपी तो पुलिस की गिरफ्त में आ चुका है मगर इस वारदात ने एक बार फिर महिलाओ की सुरक्षा का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस की कलई खोल दी है।
09 अगस्त 2009
आतंक का साया
लश्कर ए तैयबा के बाद अब हिजबुल मुजाहिदीन ने दिल्ली में अपने आतंकी भेज कदम जमाने शुरू कर दिए हैं।इन आतंकवादियों को सीधे आदेश मिलता है हिजबुल चीफ हाफिज मोहम्मद सईद से।ये खुलासा किया है हिजबुल के दो आतंकवादियों ने जिन्हे दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने ६ अगस्त की रात गिरफ्तार किया।इन आतंकवादियों के निशाने पर दिल्ली में कौन कौन सी जगह थी इस बात की तफ्तीश पुलिस कर रही है।एक तरफ लश्कर का गुर्गा तो दूसरी तरफ हिजबुल मुजाहिदीन के दो एजेंट। दोनों का मकसद एक था ....दिल्ली में तबाही मचाना। भले ही खूंखार आतंकवादी मोहम्मद उमर मदनी सलाखों के पीछे है॥लेकिन उसके गुर्गे और दूसरे आतंकवादी संगठन दिल्ली में आतंक मचाने के लिए अपने नापाक मंसूबों में लगे हैं। दिल्ली मे मौत का खेल खेलने के लिए दो आतंकी तो पहले ही घुस चुके थे। अभी वो दिल्ली की सड़कों के चक्कर ही लगा रहे थे कि स्पेशल सेल ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। स्वतंत्रता दिवस के ठीक पहले ये लोग दिल्ली में भारी तबाही मचाने के मकसद से आए। तबाही कहां और कैसे मचानी है इसका सीधा आदेश इनका खूंखार आका सैयद सलाउद्दीन दे रहा था। पुलिस को सूचना मिली थी कि दो आतंकी दिल्ली में घुस चुके है और स्वतंत्रता दिवस से पहले किसी बडी वारदात को अंजाम देने की फिराक में है। दिल्ली पुलिस के लिए इससे बडा झटका और क्या हो सकता था पुलिस ने तुरंत कार्रवाई शुरू कि और फिर खौफनाक मंसुबो के साथ दिल्ली आए जावेद और आसिफ नाम के दोनो आतंकियों को गिरफ्तार कर लिया। इनकी मंशा दिल्ली के इलाकों से वाकिफ होने का था। लेकिन ये स्पेशल सेल के हत्थे चढ़ गए। पुलिस ने आतंकियों के पास से दो एके 47, दो हैंड ग्रेनेड और कुछ नकली आई कार्ड भी बरामद किये। पुलिस की माने तो ये लोग पिछले कई सालों से ये युवाओं को धर्म के नाम पर भड़का रहे थे। गिरफ्तार किए गए दोनो आतंकियों को अदालत में पेश किया गया। जहां से इन्हे 10 दिन की पुलिस रिमांड में भेज दिया है। पुलिस इस दौरान इनके नेटवर्क और पाकिस्तानी आकाओं के बारे में पूछताछ करेगी।
07 अगस्त 2009
आतंक की साजिश
राजधानी दिल्ली से गुरुवार की रात गिरफ्तार किए गये हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने आतंक की ट्रेनिंग पाकिस्तान से ली थी। पकडे गए दोनो आतंकियों का मकसद 15 अगस्त से ठीक पहले आंतकी वारदात को अंजाम देकर राजधानी में दहशत फैलाना था। 29 जुलाई को ये आतंकी गोरखपुर से होते हुए दिल्ली पहुंचे थे। पाकिस्तान में फिर रची गई आतंक की साजिश-- दिल्ली को बनाया गया निशाना-- लेकिन साजिश हो गई नाकाम और बच गई राजधानी। गिरफ्त में आ गए दहशतगर्द-। इन दहशतगर्दो ने जो कुछ ब्यां किया वो बेहद खतरनाक है। इनका मकसद दिल्ली को एक बार फिर दहला देना था। इसके लिए इन्होने बाकायदा आतंक की ट्रेनिंग भी ली थी। आतंक की ये ट्रेनिंग दी गई पाकिस्तान में-- वहीं रची गई दिल्ली को खून से रंगने की साजिश। पुलिस के मुताबिक इन्होने पाकिस्तान के मुजफ्फराबाद में आतंकी ट्रेनिंग ली थी जावेद और आसिफ इन दोनो को जेहाद के नाम पर आतंक फैलाने के लिए तैयार किया गया था। कुपवाडा का रहने वाला आसिफ 2003 में पाकिस्तान गया वहां उसकी मुलाकात सैय्यद सलाउद्दीन से हुई-- और फिर शुरू हो गई जेहाद के नाम पर आतंक की ट्रेनिंग। दूसरा आतंकी जावेद का भी आतंकी सफर इससे मिलता जुलता है। जावेद 1999 में पाक पहुंचा था जहां उसका भी संपर्क सैय्यद सलाउद्दिन से हुआ । सलाउद्धिन ने इसे भी आतंक फैलाने के लिए तैयार कर लिया। पिछले महिने की 29 तारीख को दोनो की मुलाकात उसने अपने आका सेर सलाउद्धिन से करायी। उसके बाद फर्जी पासपोर्ट के जरिए दोनो को दिल्ली दहलाने के लिए भेजा। दोनों कई बार नेपाल के रास्ते भारत आये । इस बार भी वो नेपाल होकर शाहिद नाम के शख्स से मिलने आए थे।हाल ही में स्पेशल सेल ने लश्कर के आतंकी मोहम्मद उमर मदनी को गिरफ्तार किया था। हिज्बुल के गुर्गो की गिरफ्तारी से साफ है कि राजधानी पर आतंकी साया किस कदर मडंरा रहा है।
02 अगस्त 2009
खौफजदा राजधानी
राजधानी के लोग इन दिनो खौफ के साए में जी रहे है हर वक्त अनहोनी का डर लोगो की परेशानी का सबब बना हुआ है। पिछले 15 दिनो में हुई दर्जन भर से ज्यादा लूट की वारदातो ने दिल्ली पुलिस की नींद हराम कर रखी है। तो व्यापारीयों को खुद की चिंता सताने लगी है बदमाश इस कदर बेखौफ है की जब चाहे किसी भी वारदात को अंजाम देकर फरार हो जाते है पुलिस है कि हाथ ही मलती रह जाती है। 27 जुलाई की बात करें तो राजधानी में बेखौफ बदमाशो ने सरेआम दिन दहाडे बैंक कर्मी से साढे नो लाख की लूट की वारदात को अंजाम दिया। और बैंक कर्मी को गोली मार कर भाग गए। पुलिस ने पूरे मामले को बेहद गंभीरता से लिया और जल्द आरोपियों की गिरफ्तारी की बात कही-- हालांकि पुलिस की कार्यवाही रंग लाई और दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने चार दिन बाद ही बदमाशो को दिल्ली के अलग अलग इलाको से गिफ्तार कर लिया गया साथ ही लूट के पैसे भी बरामद हो गये । पुलिस ने खूब वाहवाही लूटी-- मगर उसके कबाद जो कुछ हुआ उसने पुलिस के सामने एक बार फिर से मुश्बिते ख़डी कर दी। लूट की इस वारदात को सुलझे महज एक दिन ही हुआ था की बेखौफ बदमाशो ने एक ही रात में दिल्ली के दो अलग अलग इलाको में लूट की वारदात को अंजाम दे दिया।हर बार की तरह फिर पुलिस की जांच शुरू हुई-- लेकिन लूटेरो का कोई सुराग हाथ नही लग सका। तभी दिन के वक्त यानि 1 जुलाई को फिर लूटेरो ने बत्रा अस्पताल के कैशियर से साढे बारह लाख रूपये लूट लिए-- लेकिन बदमाशो का कोई सुराग नही मिला। आखिरकार सवाल ये है कि दिन ब दिन बढ रही वारदात के लिए जिम्मेदार है कौन
22 जून 2009
राजधानी में कत्ल
दिल्ली के ईस्ट आँफ कैलाश में 70 साल की बुजुर्ग महिला की हत्या कर दी गई। महिला की दो दिन पुरानी लाश उसी के घर से बरामद हुई। घर में अकेली रहने वाली महिला का नाम बसन्ती था। ये लाश 70 साल की बसन्ती की है जो दिल्ली के सबसे पाश माने जाने वाले इलाके ईस्ट आफ कैलाश में अकेली रहती। लेकिन किसी ने उसकी हत्या कर दी। बसन्ती की लाश उसी के घर से रविवार की रात करीब आठ बजे बरामद हुई। घर से कुछ कीमती सामान भी गायब मिला-- बसन्ती के चार बेटे है फिर भी वो अकेली रहती। घटना का पता उस वक्त चला जब बुजुर्ग का पौता दादी से मिलने पहुँचा तो दरवाजा बन्द था। हेमन्त ने दरवाजा खोलकर देखा तो उसकी दादी की लाश नीचे पडी थी और उसके शरीर पर चोट के निशान थे। बसन्ती को अन्तिम बार दो दिन पहले देखा गया था शव हालत देखकर लगता है किसी ने बसन्ती की दो दिन पहले ही कत्ल कर दिया गया हो।दो दिन तक बसन्ती की लाश घर में पडी रही और किसी को पता नही चला। बसन्ती के चार बेटे है लेकिन उसके पास किसी का भी आना जाना नही रहता था। परिजनों की माने तो बसन्ती के पास काफी पैसा और प्रोपर्टी थी हो सकता है लूट के इरादे से किसी ने कत्ल की इस वारदात को अंजाम दिया हो। जिस तरह से कत्ल की इस वारदात को अंजाम दिया गया है उससे साफ है कि कातिल कोई जानकार रहा होगा। जो भी हो राजधानी में हुई बुजुर्ग की मौत ने सुरक्षा व्यवस्था पर एक बार फिर सवाल खडे कर दिए है।
21 जून 2009
ख़ुद के जाल में शिकारी
वो अपनी बीवी से नफरत करता-- वो नही चाहता कि उसकी बीवी उसके सामने आए--- उसपर नफरत का रंग कुछ इस कदर चढा कि उसनें अपनी पत्नी को हमेशा के लिए दूर करने की ठान ली। 50 हजार में बीवी के कत्ल का सौदा भी कर लिया।मगर नफरत की इस जंग में शिकारी खुद शिकार हो गया। हरिद्वार का बाबूलाल अपने ही बिछाए जाल में फंसकर अपनी जान गंवा बैठा। बाबूलाल का शव 15 जून को हरिद्वार के एक होटल से बरामद हुआ। पुलिस ने प्रवीण और बिट्टू नाम के इन दो लोगों को बाबूलाल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया है। जिस होटल से बाबूलाल का शव मिला वहां उस रात ये तीनों गए थे। होटल के कमरे में तीनों ने खूब शऱाब पी। इसी दौरान उनके बीच कुछ कहासुनी हो गई जिसके बाद प्रवीण और बिट्टू ने बाबूलाल को मारना शुरु कर दिया। शराब के नशे में इन दोनों ने उसे इतना मारा कि उसकी मौत हो गई। इसके बाद ये दोनों भाग गए। अगल दिन जब होटल का वेटर कमरे में आया तो उसने बाबूलाल की ळाश देखी जिसके बाद पुलिस को बुलाया गया। यहां तक ये कहानी शराब के नशे में हुई मारपीट की लगती है लेकिन असल में मामला कुछ और है। पुलिस के मुताबिक बाबूलाल का अपनी बीवी से झगड़ा चल रहा था। इस झगड़े के कारण वो अपनी बीवी को देखना भी पसंद नहीं करता था। एक दिन बाबूलाल ने अपनी पत्नी विनिता को अपने रास्ते से हमेशा के लिए हटाने का फैसला किया। बाबूलाल ने प्रवीण और बिट्टू को 50 हज़ार रुपये में अपनी बीवी के क़त्ल की सुपारी दे दी। बाबूलाल ने एडवांस के रुप में इन दोनों को 20 हज़ार रुपये दिए और काम जल्दी करने को कहा। कर्जदारों के रोज रोज के ताने से परेशान प्रवीण और बिट्टू ने बाबूलाल से पैसे तो ले लिए लेकिन हत्या करने से टालमटोल कर ने लगे। बाबूलाल ने दबाव बढ़ाया तो दोने एक दिन उसके घर विनीता का क़त्ल करने पहुंच तो गए लेकिन उसे देखकर इनका इरादा बदल गया। न जाने क्यों ये दोनों उसकी हत्या नहीं कर पाए और वापस लौट गए। इधऱ बाबूलाल का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। इन पर दबाव बनाने के लिए ही प्रवीण और बिट्टू को बाबूलाल ने होटल में बुलवाया। शराब के नशे में जब दोनों बाबूलाल इनपर गुस्सा दिखाने लगा तो दोनों ने उसी की पिटाई शुरु कर दी जिसमें उसकी जान चली गई। बाबूलाल ने अपनी बीवी के लिए जो गड्ढा खोदा था उसमें वो खुद ही गिर गया। पुलिस ने जब जब सख्ती से पूछताछ की तो प्रवीण और बिट्टू ने अपना जुर्म कबूल कर लिया।बाबूलाल की बीवी के लिए उसकी नफरत ही उसकी मौत की वजह बन गई।
मासूम का दर्द
वहशी दरिंदे मासूम सोनी को हवस का शिकार बनाते रहे--यहां तक की हवस में अंधे होकर वो उसकी मासूमित को भी भूल गए। लेकिन किसी ने भी सोनी की दर्द भरी दास्तां जानने की कोशिश नही की। उसका बचपन कितना दुख भरा था। शायद उनके लिए तो ये मासूम महज एक इस्तेमाल की चीज थी जिसे जब चाहे इस्तेमाल कर ले। सोनी की कहानी में जितना दर्द है उससे कहीं ज्यादा बेबसी और लाचारी है। हर मोड पर बेबस थी लाचार थी -- पहले पिता का साया उठा तो फिर माँ ने भी साथ छोड दिया। कभी अपने बेगाने हो गए तो कभी बेगानों ने ही धोखा दे दिया। पिता की मौत और माँ के साथ छोड देने के बाद सोनी सडक पर आ गई वो सडक किनारे बस स्टैड पर रहने लगी। लेकिन वहां से गुजरने वाले हर शख्स की नजर इस मासूम पर पडी लेकिन किसी का भी हाथ मदद के लिये आगे नही आया। एक दिन मदद का हाथ आया -- तो उसने सोनी की दुनिया ही बदल दी। जिस्म की हवस मिटाने के लिए कुछ दरिंदे सोनी को अपने साथ ले गए।फिर उसके साथ वो किया जिसके बारे में मासूम इस उम्र में जानती तक नही थी। और हर रोज सोनी किसी ना किसी की हवस का शिकार बनने लगी। एक दिन विक्की नाम के लडके का हाथ मदद के लिये आगे आया। सोनी को लगा शायद अब उसकी जिंदगी में नया मोड आने वाला है।वो नर्क से बाहर निकल जाएगी मगर ऐसा नही हुआ--- विक्की सोनी को अपने घर ले आया --उसे शादी के सपने दिखाने लगा -- और फिर हर रोज वहीं होने लगा जिससे बचकर सोनी उस घर में आई थी। विक्की उसे हर रोज अपनी हवस का शिकार बनाने लगा।हर दिन उसके जिस्म से अपनी हवस की भूख मिटाता-- मासूम सोनी बेबस थी वो कुछ ना कर सकी -- बस हर जुल्म को सहती रही। शायद सोनी इसे अपनी किस्मत मान लिया था। जिंदगी के हर मोड पर सोनी बेबस होते हुए भी अपने कदम बढाती रही--- लेकिन अब सवाल खुद का नही उसकी कोख से जन्मे बच्चे का भी है भला बिन ब्याही माँ होने के समाज के ताने के साथ वो जिये तो कैसे जिये।
मासूम पर जुल्म
गुजरात में एक के बाद एक गैंग रेप के सामने आ रहे मामले सरकार के दावो की धज्जिया उडा रहे है... गुजरात सरकार का यह दावा है की, गुजरात में महिलाये दुसरे राज्यों के मुकाबले काफी सुरक्षित है... लेकिन जिस तरह से पहले सूरत, फिर राजकोट और अब अहमदाबाद हफ्ते भर में चार गैंग रैप के चार मामले सामने आये है, उसके बाद गुजरात सरकार के सारे दावे खोकले लग रहे है...इस बार मामला 15 साल की नाबालिग का है जिसे एक वहशी ने इस उम्र मे उसे वासना के जूनुन में माँ बना दिया। ये एक मासूम की दर्द भरी दांस्ता-- उस मासूम की दास्तां जिसने अभी ठीक से दुनिया को देखा भी नही है। लेकिन बेहद घिनौनी और कडवी सच्चाई से ये रू-ब-रू हो चुकी है-- इसकी दुनिया में तो ये और बस इसका बच्चा है---इसकी उम्र महज 15 साल है मगर ये एक बच्चे की माँ है--- गोद मे खेल रहा बच्चा इसी का है। इस हालत के लिए जिम्मेदार है इन्सान की शक्ल में घुम रहे वैहशी दरिंदे--- जिन्होने इसे हर बार अपनी हवस का शिकार बनाया। आरोप है कि विक्की नाम का एक लडका मदद करने के लिए सोनी को अपने घर ले गया और फिर लगातार उसे अपनी हवस का शिकार बनाता रहा। सोनी के साथ हुई घटना का खुलासा उस वक्त हुआ जब उसे तबीयत खराब होने पर सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया। दरअसल विक्की नाम के उस शख्स को मालूम था कि सोनी माँ बनने वाली है वो उसका आबोरशन करवाना चाहता था। लेकिन सोनी के नाबालिग होने की वजह से डाक्टरो ने मना कर दिया। जिसके बाद विक्की उसे अस्पताल में छोड भाग गया। जब सोनी को इस बात का पता चला तो उसने सारी बात डा. को बताई तो मामला पुलिस तक पहुँचा। पुलिस ने विक्की के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है और उसकी तालाश कर रही है। अहमदाबाद जैसे शहर में एक मासूम को वहैशी दरिंदे साल भर तक हवस का शिकार बनाते रहे और पुलिस को इसकी भनक तक ना लग सकी। फिलहाल मामला पुलिस तक पहुँच गया है लेकिन सवाल है कि आखिर पुलिस कब तक आरोपी को गिरफ्तार करती है।
20 जून 2009
मनचलों पर मुसीबत
सूरत में स्कूली छात्रा के साथ गैंग रेप के बाद पुलिस हरकत में आ गई है। पुलिस अब हर संदिग्ध गाड़ी पर नजर रख रही है।स्कूल कालेजो की आसपास सुरक्षा को कडा कर दिया गया है।इसके साथ ही पुलिस मनचलों से भी सख्ती के साथ निपट रही है। पुलिस ने इस कार्यवाही के तहत कुछ मनचलों को हिरासत में भी लिया है। -चलती कार में नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद सूरत पुलिस में हडकंप मचा है। पुलिस अब हर वो उपाय करना चाहती है जिससे फिर कोई ऐसी घटना ना हो। ऐसे ठिकानों पर पुलिस छापेमारी कर रही है जहां मनचले अश्लील हरकत करते है। पिछले दो दिनों से शुरू हुई इस कवायद में अश्लील हरकत करने के आरोप में पुलिस ने दो सौ से ज्यादा मनचलों को रंगेहाथ पकडा है... हर रोज सूरत पुलिस की कुछ टीमें ख़ास तौर पर स्कूल और कालेजो के छात्र- छात्राओं की सुरक्षा के लिए शहर में घूमा करेंगी। स्टूडेंट वैन पर तैनात पुलिसकर्मी स्कुल कालेजो के बाहर पेट्रोलिंग करेगें और आसपास की गतिविधियों पर नजर रखेंगे, पुलिस ने लड़कियो के साथ छेडछाड को रोकने के लिए एक ख़ास सुरक्षा दस्ता भी बनाया है। इसके साथ ही शिक्षण संस्थानों तैनात पुलिसकर्मियो को भी खास प्रशिक्षण दी जा रही है। पुलिस के इस अभियान से लड़कियों को लेकर चितिंत रहने वाले अभिभावक राहत महसूस कर रहे है। हालांकि वो ये भी मान रहे है कि जो कदम पुलिस ने अब उठाया है वो पहले ही उठाने चाहिए थे। ..देर आए दुरूस्त आए की तर्ज पर सूरत पुलिस ने मनचलों के खिलाफ मुहिम तो शुरू कर दी है। मगर ये मुहिम कितनी कारगर साबित होती है ये देखने वाली बात होगी।
19 जून 2009
शर्मसार इंसानियत
उत्तारखंड पुलिस ने एक शख्स को मासूम बच्ची के साथ बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया है। आरोप है कि युवक ने 13 साल की मासूम बच्ची को सहारा देने के नाम पर तीन साल तक बलात्कार करता रहा। बच्ची ने महिला संगठन की मदद से मामले की जानकारी पुलिस को दी जिसके बाद आरोपी शख्स को गिरफ्तार कर लिया गया। नाम मिलका सिहं -- उम्र 40 साल-- गुनाह--- मासूम बच्ची से बलात्कार-- खुद को पाक साफ बताने वाले इस शख्स पर आरोप है 13 साल की मासूम बच्ची के साथ बलात्कार का--- उस बच्ची के साथ जिसे ये सहारा देने के नाम पर अपने घर लाया। और फिर लगातार तीन साल तक उसे अपनी हवस का शिकार बनाता रहा। एक दिन बच्ची मिलका सिहं के जुल्मों से तंग आकर महिला संगठन के पास पहुँची और अपने साथ हुए जुल्मों की जानकारी दी। जिसके बाद पूरा मामला पुलिस तक पहुँचा। पीलीभीत का रहने वाला मिलका सिहं शादीशुदा है।मिलका फौज में तैनात था हालांकि रिटायर से पहले ही उसने अपनी नौकरी छोड दी और व्यापार शुरू कर लिया। मासूम बच्ची मिलका सिहं के गांव की ही रहने वाली है। उसके माँ बाप बचपन में ही गुजर गए।मिलका सिहं सहारा देने के नाम पर घर ले आया लेकिन कुछ दिनों के बाद उसकी नियत खराब हो गई और फिर शुरू हो गया हवस का ये खेल । हालांकि पुलिस गिरफ्त में आने के बाद खुद को पाक साफ बता रहा है। घटना का पता चलते ही इलाके के लोगो का गुस्सा फुट पडा और लोगो ने थाने पर जमकर हंगामा किया। मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने केस दर्ज कर जांच कर रही है। मासूम बच्ची जल्मों की कैद से तो छुट गई मगर अभी भी सहमी हुई है। मिलका सिहं ने ना केवल बच्ची का बलात्कार किया बल्कि भरोसे उस दिवार को भी तोड दिया है जिसकी बुनियाद पर इन्सानी रिश्ते खडे होते है।
दागदार होते रिश्ते
दिल्ली से सटे गाजियाबाद में एक बार फिर रिश्ते दागदार हुए है।पुलिस ने एक महिला को उसके प्रेमी के साथ गिरफ्तार किया है। महिला पर आरोप है कि उसने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या की कोशिश की थी। पुलिस मामले की जांच कर रही है। माम्मा पापा को मारना चाहती है-- मैने देखा है मौत से पहले का मंजर--- जी हाँ इस मासूम के सामने ही इसके पिता को मारने की साजिश रची गई। वो भी खुद इसकी माँ ने--- वजह नाजायज रिश्ते-- यही वजह थी राजेश के कत्ल करने की--- लेकिन ये साजिश नाकाम हो गई। क्षमा और प्रवीण चढ गए गाजियाबाद पुलिस के हत्थे-- क्षमा ने प्रवीण के साथ मिलकर राजेश को मारने की कोशिश की थी। जिस वक्त दोनो नाकाम वारदात को अंजाम दे रहे थे। मासूम अभिषेक ने इन्हे देख लिया। इतने में पडोसी भी मौके आ पहुँचे-- अभिषेक ने उन्हे जो कुछ बताया- सब हैरान रह गए। राजेश नगर निगम मे नौकरी करता-- हंसता खेलता परिवार-- प्रवीण राजेश का छोटा भाई है। सभी साथ रहते लेकिन एक दिन देवर भाभी का रिश्ता बदल गया-- प्रवीण क्षमा को चाहने लगा-- और देखते ही देखते बात नाजायज रिश्ते तक आ पहुँची। दोनो के बीच दिवार था राजेश तो दोनो ने मिलकर राजेश को ही रास्ते से हटाने की तैयारी कर ली। पहले तो राजेश को बेहोश किया और बाद में खुदकुशी का रूप देने के लिए उसे पंखे से लटकाने की कोशिश करने लगी। दोनो की ये साजिश नाकाम हो गई। हंसता खेलता परिवार अब टूट गया है-- क्षमा को ना तो प्रवीण ही मिला और ना ही वो एक आदर्श पत्नी ही बन सकी। पुलिस ने हत्या के प्रयास का मामला दर्ज कर दोनो को जेल भेजने की तैयारी कर ली है।
15 जून 2009
मां की मुजरिम
राजधानी में फिर एक बार माँ बेटी के रिश्ते पर सवाल उठे है। एक बेटी ने जन्म देने वाली माँ को ऐसे जख्म दिए जिसके बारे मे किसी ने सोचा भी नही होगा। उस बेटी ने अपनी माँ को पूरे दो साल तक घर में बंधक बनाकर रखा-- वो भी दौलत की खातिर---वो दौलत की खातिर माँ के मायने ही भूल बैठी। माँ तुम सबसे प्यारी हो -- तुमने मुझे जन्म दिया--- मेरा ख्याल रखा -- मुझे अपने आंचल की छांव दी --एक बेटी के लिए माँ के मायने क्या होते है उससे ज्यादा कोई नही जानता--- मगर राजधानी दिल्ली में तो....एक और बेटी ने इस रिश्ते के मायने बदल दिए। दरअसल दिल्ली के पश्चिम विहार इलाके मे रहने वाली संतोष के साथ जो कुछ हुआ वो दिल दहला देने वाला है--- संतोष की बेटी नीलम पहले तो अपनी माँ को साथ रखने के बहाने ले गई और बाद में उसे प्रताडित करने लगी। वजह थी पैसो की चाह-- संतोष के नाम पश्चिम विहार में एक कोठी थी। नीलम ने धोखे से कुछ कागजात पर साईन करा लिए-करीब दो साल पहले नीलम.... अपनी माँ को, अपने ससुराल पंजाब के भटिंडा शहर ले गई। बाद में नीलम की पति की मौत हो जाती है। पति को खोने के बाद नीलम की दोस्ती राजीव नाम के एक युवक से हो जाती है। फिर शुरु होता है लालच का खेल...और दोनो मिलकर दे देते है संतोष को काली कोठरी की कैद। दो साल बीतने को हुआ तो उन्हें दिल्ली ले आए----- लेकिन इस बार इनकी किस्मत साथ ना दे पाई
संतोष को जब दिल्ली लाया गया तो इसका पता उसके बेटे को चल गया --- सितेन्दर ने मामले की जानकारी पश्चिम विहार थाना को दी--- और पुलिस की मदद से अपनी मां को इस कोठी से छुडाया। पुलिस ने बुजुर्ग संतोष की शिकायत दर्ज कर ली है। बुजुर्ग इतनी सहमी हुई है कि.....अभी भी बेटी के दिए दर्द को, भूल नही पाई है।
आखिर क्या हो गया है हमारे समाज को.....क्यों बदलने लगे हैं रिश्तें...ये कुछ ऐसा सवाल है जिनका जबाब हमीं को ढूंढना है। जिन्दगी के आखिरी पडाव पर पहुँची संतोष को अपनी ही संतान से ऐसा दर्द मिलेगा--- सुनकर ही दिल सहम जाता है।
संतोष को जब दिल्ली लाया गया तो इसका पता उसके बेटे को चल गया --- सितेन्दर ने मामले की जानकारी पश्चिम विहार थाना को दी--- और पुलिस की मदद से अपनी मां को इस कोठी से छुडाया। पुलिस ने बुजुर्ग संतोष की शिकायत दर्ज कर ली है। बुजुर्ग इतनी सहमी हुई है कि.....अभी भी बेटी के दिए दर्द को, भूल नही पाई है।
आखिर क्या हो गया है हमारे समाज को.....क्यों बदलने लगे हैं रिश्तें...ये कुछ ऐसा सवाल है जिनका जबाब हमीं को ढूंढना है। जिन्दगी के आखिरी पडाव पर पहुँची संतोष को अपनी ही संतान से ऐसा दर्द मिलेगा--- सुनकर ही दिल सहम जाता है।
कातिल बेटा
बाहरी दिल्ली के अलीपुर इलाके में हुई 65 साल के बुजुर्ग की हत्या की गुत्थी को दिल्ली पुलिस ने सुलझाने का दावा किया है। पुलिस ने इस मामले में बुजुर्ग के बेटे को उसके एक साथी के साथ गिरफ्तार किया है। 13 जून की सुबह रघुबीर की लाश घर से बरामद हुई थी।
सतीश दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में है। आरोप है पिता के कत्ल का --- उस पिता के कत्ल का जिसने इसे उंगली पकड चलना सिखाया --- जिंदगी के हर मोड पर बेटे का साथ दिया --- नई राह दिखाई --- मगर य़े भूल गया ---सारे रिश्तो को -- कर दिया बेरहमी से अपने ही पिता का---- कत्ल रंग लिए पिता के खून से हाथ --- बन गया पिता का मुजरिम ---- दरअसल 13 जून को दिल्ली के अलीपुर मे ऱघुवीर की लाश उसी के घर से बरामद हुई थी। किसी ने उसकी गला दबाकर हत्या कर दी थी। रघुबीर के शरीर पर कुछ चोट के निशान भी थे।पहली नजर में साफ था कि किसी ने ऱघुवीर का कत्ल कर दिया है। कमरे मे सारा सामान ठीक ठाक था यानि कत्ल का मकसद लूट-पाट नही था--- पुलिस को शक हो गया की हत्या में किसी जानकार का ही हाथ है। मगर कई सवाल भी थे आखिर रघुवीर के मौत से किसे फायदा होने वाला है।रघुवीर की पत्नी भी खुद हैरान थी।
पुलिस ने मामले की तफ्तीश तेजी से शुरू कर दी। पुलिस की जांच कुछ परिचित लोगो के इर्द गिर्द ही घुम रही थी। मगर सवाल अब भी बरकरार था -- कत्ल के मकसद का --- जैसे ही मकसद साफ हुआ तो कातिल भी बेनकाब हो गया। दिल्ली पुलिस के मुताबिक खुद रघुवीर के बेटे ने ही अपने पिता की हत्या की है। पुलिस का शक उस वक्त और गहरा हो गया हो गया जब रघुवीर की डायरी में कई बार बेटे के साफ झगडे का जिक्र था। सतीश ने वारदात को अंजाम देने के लिए अपने दो साथियों की मदद भी ली। जिनमें से पुलिस ने एक को गिरफ्तार कर लिया है जबकि दूसरा अभी फरार है।
पुलिस के मुताबिक 13 जून की रात सतीश ने अपने दो साथी के साथ मिलकर ऱघुवीर की गला दबाकर हत्या की थी।वजह थी पिता की अय्याशी --- दरअसल रघुवीर पिछले दो दशको से अपनी पत्नी से अलग रहता था। इसी दौरान उसके संबंध किसी और महिला से हो गए -- रघुवीर उसपर खुब पैसा लुटाता-- ये बात सतीश को नागवार गुजरी-- वो पिता की जिंदगी मे दखल देने लगा मगर रघुवीर नही माना तो सतीश ने पिता को खत्म करने की ठान ली -- उसने अपने साथियों को पैसा और शराब पिलाने की बात कहकर इस वारदात में शामिल होने के लिए तैयार कर लिया। फिर तीनो ने मिलकर रघुवीर की हत्या कर दी। सतीश ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की मगर वो खुद ही बयानों में उलझ गया और आखिरकार पुलिस के सामने टुट गया।
सतीश ने पिता को सही रास्ते पर लाने की लाख कोशिश की मगर अंत मे उसने जो रास्ता अख्तियार किया-- वो रास्ता अय्याश पिता को सही रास्ता तो नही दिखा सका--- बल्कि बेटे को ही सलाखों के पिछे लाकर खडा कर दिया।
सतीश दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में है। आरोप है पिता के कत्ल का --- उस पिता के कत्ल का जिसने इसे उंगली पकड चलना सिखाया --- जिंदगी के हर मोड पर बेटे का साथ दिया --- नई राह दिखाई --- मगर य़े भूल गया ---सारे रिश्तो को -- कर दिया बेरहमी से अपने ही पिता का---- कत्ल रंग लिए पिता के खून से हाथ --- बन गया पिता का मुजरिम ---- दरअसल 13 जून को दिल्ली के अलीपुर मे ऱघुवीर की लाश उसी के घर से बरामद हुई थी। किसी ने उसकी गला दबाकर हत्या कर दी थी। रघुबीर के शरीर पर कुछ चोट के निशान भी थे।पहली नजर में साफ था कि किसी ने ऱघुवीर का कत्ल कर दिया है। कमरे मे सारा सामान ठीक ठाक था यानि कत्ल का मकसद लूट-पाट नही था--- पुलिस को शक हो गया की हत्या में किसी जानकार का ही हाथ है। मगर कई सवाल भी थे आखिर रघुवीर के मौत से किसे फायदा होने वाला है।रघुवीर की पत्नी भी खुद हैरान थी।
पुलिस ने मामले की तफ्तीश तेजी से शुरू कर दी। पुलिस की जांच कुछ परिचित लोगो के इर्द गिर्द ही घुम रही थी। मगर सवाल अब भी बरकरार था -- कत्ल के मकसद का --- जैसे ही मकसद साफ हुआ तो कातिल भी बेनकाब हो गया। दिल्ली पुलिस के मुताबिक खुद रघुवीर के बेटे ने ही अपने पिता की हत्या की है। पुलिस का शक उस वक्त और गहरा हो गया हो गया जब रघुवीर की डायरी में कई बार बेटे के साफ झगडे का जिक्र था। सतीश ने वारदात को अंजाम देने के लिए अपने दो साथियों की मदद भी ली। जिनमें से पुलिस ने एक को गिरफ्तार कर लिया है जबकि दूसरा अभी फरार है।
पुलिस के मुताबिक 13 जून की रात सतीश ने अपने दो साथी के साथ मिलकर ऱघुवीर की गला दबाकर हत्या की थी।वजह थी पिता की अय्याशी --- दरअसल रघुवीर पिछले दो दशको से अपनी पत्नी से अलग रहता था। इसी दौरान उसके संबंध किसी और महिला से हो गए -- रघुवीर उसपर खुब पैसा लुटाता-- ये बात सतीश को नागवार गुजरी-- वो पिता की जिंदगी मे दखल देने लगा मगर रघुवीर नही माना तो सतीश ने पिता को खत्म करने की ठान ली -- उसने अपने साथियों को पैसा और शराब पिलाने की बात कहकर इस वारदात में शामिल होने के लिए तैयार कर लिया। फिर तीनो ने मिलकर रघुवीर की हत्या कर दी। सतीश ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की मगर वो खुद ही बयानों में उलझ गया और आखिरकार पुलिस के सामने टुट गया।
सतीश ने पिता को सही रास्ते पर लाने की लाख कोशिश की मगर अंत मे उसने जो रास्ता अख्तियार किया-- वो रास्ता अय्याश पिता को सही रास्ता तो नही दिखा सका--- बल्कि बेटे को ही सलाखों के पिछे लाकर खडा कर दिया।
03 अप्रैल 2009
अपनों की याद
कृष्ण सिंह का परिवार जवान बेटे की मौत को आज भी भूल नहीं पाया है उसे याद कर आज भी इनकी आँखे भर जाती है ..जवान बेटे की याद कृष्ण को रोज उस पेड़ की तरफ खीच ले जाती है जंहा बुध सिंह की लाश मिली थी ...बेटे की मौत के बाद तो उनकी दुनिया ही बदल गई है
कृष्ण सिंह 55 साल का वो इंसान जो पिछले दो साल से न्याय की उम्मीद में पुलिस के आला अधिकारियो के चक्कर लगा रहा है ...इसे उम्मीद है आज नहीं तो कल न्याय मिलेगा...जवान बेटे की याद कृष्ण को खुद बे खुद उस पेड़ की तरफ ले जाते है जो बुध सिंह की मौत का गवाह है .. भले ही बुध सिंह की मौत को दो साल हो गए हो लेकिन बेटे की मौत का दुःख इस परिवार में कम नहीं हुआ है अब यहाँ न खुशियाँ है न ही हंसी की गूंज ...भले की बुध सिंह की मौत को आज दो साल हो गए हो लेकिन जख्म अभी हरे है ..दो साल के अभिषेक को ये मालूम भी नहीं है........कि इसके सिर से पिता का साया हमेशा के लिए उठ चुका है.....इस बात से बेखबर इस मासूम की आंखे रह-रहकर अपने पिता को ढूंढती है.......और जब इसे उसके पिता कहीं नही दिखते तो ये उनकी तस्वीर उठा लेता है.....उन्हें प्यार करता है शायद इस उम्मीद में के आज नहीं तो कल आयंगे और इसे गोद में उठा लेंगे ...बुध सिंह हमेशा खुश रहता था परेशानी कभी उसके चहरे पर नहीं दिखी..बुद्ध सिंह की मां की मानें तो उनकी बेटा एक ज़िंदादिल इंसान था..और वो कभी आत्महत्या नहीं कर सकता इसकी मानें तो इनके बेटे को किसी से पैसे भी लेने थे...
कहते है उम्मीद पर दुनिया कायम है शायद इसी उम्मीद के सहारे क्रिशन सिंह न्याय की आस में है लेकिन सवाल ये भी है ..दो साल की तफ्तीश का नतीजा सिफर देने वाली दिल्ली पुलिस कभी इस परिवार को न्याय दिला पायेगी या फिर बुध सिंह की मौत बस एक राज की रह जायगी ?
कृष्ण सिंह 55 साल का वो इंसान जो पिछले दो साल से न्याय की उम्मीद में पुलिस के आला अधिकारियो के चक्कर लगा रहा है ...इसे उम्मीद है आज नहीं तो कल न्याय मिलेगा...जवान बेटे की याद कृष्ण को खुद बे खुद उस पेड़ की तरफ ले जाते है जो बुध सिंह की मौत का गवाह है .. भले ही बुध सिंह की मौत को दो साल हो गए हो लेकिन बेटे की मौत का दुःख इस परिवार में कम नहीं हुआ है अब यहाँ न खुशियाँ है न ही हंसी की गूंज ...भले की बुध सिंह की मौत को आज दो साल हो गए हो लेकिन जख्म अभी हरे है ..दो साल के अभिषेक को ये मालूम भी नहीं है........कि इसके सिर से पिता का साया हमेशा के लिए उठ चुका है.....इस बात से बेखबर इस मासूम की आंखे रह-रहकर अपने पिता को ढूंढती है.......और जब इसे उसके पिता कहीं नही दिखते तो ये उनकी तस्वीर उठा लेता है.....उन्हें प्यार करता है शायद इस उम्मीद में के आज नहीं तो कल आयंगे और इसे गोद में उठा लेंगे ...बुध सिंह हमेशा खुश रहता था परेशानी कभी उसके चहरे पर नहीं दिखी..बुद्ध सिंह की मां की मानें तो उनकी बेटा एक ज़िंदादिल इंसान था..और वो कभी आत्महत्या नहीं कर सकता इसकी मानें तो इनके बेटे को किसी से पैसे भी लेने थे...
कहते है उम्मीद पर दुनिया कायम है शायद इसी उम्मीद के सहारे क्रिशन सिंह न्याय की आस में है लेकिन सवाल ये भी है ..दो साल की तफ्तीश का नतीजा सिफर देने वाली दिल्ली पुलिस कभी इस परिवार को न्याय दिला पायेगी या फिर बुध सिंह की मौत बस एक राज की रह जायगी ?
31 मार्च 2009
उम्मीद के दो साल
उम्मीद के दो साल
ये दांस्ता है उस माँ बाप की जो पिछले दो साल से एक उम्मीद के सहारे जिए जा रहे है की उनका बेटा तो अब नहीं लौट सकता मगर उन्हें न्याय तो मिलेगा ...लेकिन अब तो उन्हें वो उम्मीद की किरण भी ख़त्म होती दिख रही है ये आप बीती किसी दूर दराज के इलाके की नहीं बल्कि देश की राजधानी दिल्ली की है जंहा एक माँ बाप को इन्तजार है बस इस बात का की कोई उन्हें बता दे की उनके जवान बेटे की हत्या हुई या फिर उसने खुदकुशी की ....दरअसल एक नोजवान की मौत की ये गुत्थी हत्या और खुदकुशी के बीच पिछले दो सालो से यूंही झूल रही है ... बुध सिंह एक २४ साल का नोजवान ....दिल्ली के एक छोटे से गाँव में रहने वाला बुध सिंह ... हमेशा खुशमिजाज रहने वाला बुध सिंह इस नाम से दिल्ली के लोग भले ही अच्छी तरह वाकिफ न हो मगर पिछले दो साल से ये नाम दिल्ली पुलिस के लिए सरदर्द बना हुआ है ....बुध सिंह न तो कोई पेशेवर गुन्हेगार है न ही किसी का कातिल लेकिन फिर भी ये नाम दिल्ली पुलिस के लिए सरदर्द बना हुआ है ....बुध सिंह २४ साल का बुध सिंह तो वो इंसान है जो आज से दो साल पहले ही इस दुनिया से रुखसत हो चुका है .... एक अप्रेल
२००७ की सुबह कृष्ण सिंह के लिए गम के वो लम्हे लेकर आई जो दो साल बीतने के बाद भी ज्यों के त्यों है दरअसल उस दिन कृष्ण सिंह को खबर मिली की उनके बेटे ने खेत में एक पेड़ के सहारे फांसी लगा खुदकुशी कर ली है ...जब मौके पर जाकर देखा तो बुध सिंह की लाश पेड़ पर लटकी थी उसके सिने में एक गोली भी लगी थी ...पहली नजर में साफ़ था की ये खुदकुशी नहीं हत्या है ...पुलिस को मौका अ वारदात से कुछ सबूत भी मिले ..साफ था की किसी ने बुध सिंह की गोली मार हत्या कर उसके शव को पेड़ से लटका दिया है ...पुलिस ने भी मामले को जल्द सुलझने का आश्वासन दिया .....
पुलिस की जाँच इस मामले की तफ्तीश में लगी थी हर किसी को विशवास था की बुध सिंह के कातिलो से पर्दा जल्द की उठने वाला है मगर नो दिन बाद पुलिस का वो ब्यान आया जिस को सुनकर हर किसी के होश फाकता हो गये ...बुध सिंह की हत्या नहीं हुई थी बल्कि उसने खुदकुशी की है...इस बात पर किसी को यंकिन नहीं हो रहा था आखिर एक इंसान कैसे खुद को गोली मार पेड़ पर लटका सकता है या खुद को फांसी पर लटका गोली कैसे मार सकता है ...परिवार वालो और ताजपुर गाँव के लोगो ने इस बात को लेकर थाने पर हंगामा भी किया ..लेकिन जैसे जैसे दिन निकलते गए मौत की ये गुत्थी उतनी की उलझती चली गई ...
आखिरकार पुरे मामले की जाँच थाना पुलिस के बजाए क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई ...आज इस घटना को पुरे दो साल हो गए है ...साथ की पुलिस की तफ्तीश को भी.... मगर दो साल की इस तफ्तीश के बारे में आप सुनेगे तो चौंक जांयगे क्योंकि तफ्तीश का नतीजा सिफर है ...बुध सिंह की मौत की गुत्थी आज भी उसी मोड़ पर है जंहा से वो शुरू हुई थी बुध सिंह की मौत का राज जानने को उसका परिवार ही नहीं बल्कि ताजपुर कलां गाँव का हर बाशिंदा बेताब है... हर कोई जानना चाहता है की उस रोज क्या हुआ था कैसे हुई थी बुध सिंह की मौत ....
दो साल की तफ्तीश के बारे में जब आला अधिकारी से बात की गई तो उन्होंने न केवल दो साल बीतने के बाद खुद को इस मामले से अन्भिझ बताया बल्कि इस मामले पर सटीक जवाब देने के बजाये ...उलटा सवाल मिडिया पर की दाग दिया ...आप क्यों इस केस में इतनी दिलचश्पी ले रहे है ...
दिल्ली पुलिस के लिए भले की ये केस अहम् न हो लेकिन पिछले दो साल से न्याय की बाट जोह रहे उस माँ बाप को आज इन्तजार है की.कोई तो उन्हें बता दे के आखिर उनके जवान बेटे के साथ हुआ क्या था ...
ये दांस्ता है उस माँ बाप की जो पिछले दो साल से एक उम्मीद के सहारे जिए जा रहे है की उनका बेटा तो अब नहीं लौट सकता मगर उन्हें न्याय तो मिलेगा ...लेकिन अब तो उन्हें वो उम्मीद की किरण भी ख़त्म होती दिख रही है ये आप बीती किसी दूर दराज के इलाके की नहीं बल्कि देश की राजधानी दिल्ली की है जंहा एक माँ बाप को इन्तजार है बस इस बात का की कोई उन्हें बता दे की उनके जवान बेटे की हत्या हुई या फिर उसने खुदकुशी की ....दरअसल एक नोजवान की मौत की ये गुत्थी हत्या और खुदकुशी के बीच पिछले दो सालो से यूंही झूल रही है ... बुध सिंह एक २४ साल का नोजवान ....दिल्ली के एक छोटे से गाँव में रहने वाला बुध सिंह ... हमेशा खुशमिजाज रहने वाला बुध सिंह इस नाम से दिल्ली के लोग भले ही अच्छी तरह वाकिफ न हो मगर पिछले दो साल से ये नाम दिल्ली पुलिस के लिए सरदर्द बना हुआ है ....बुध सिंह न तो कोई पेशेवर गुन्हेगार है न ही किसी का कातिल लेकिन फिर भी ये नाम दिल्ली पुलिस के लिए सरदर्द बना हुआ है ....बुध सिंह २४ साल का बुध सिंह तो वो इंसान है जो आज से दो साल पहले ही इस दुनिया से रुखसत हो चुका है .... एक अप्रेल
२००७ की सुबह कृष्ण सिंह के लिए गम के वो लम्हे लेकर आई जो दो साल बीतने के बाद भी ज्यों के त्यों है दरअसल उस दिन कृष्ण सिंह को खबर मिली की उनके बेटे ने खेत में एक पेड़ के सहारे फांसी लगा खुदकुशी कर ली है ...जब मौके पर जाकर देखा तो बुध सिंह की लाश पेड़ पर लटकी थी उसके सिने में एक गोली भी लगी थी ...पहली नजर में साफ़ था की ये खुदकुशी नहीं हत्या है ...पुलिस को मौका अ वारदात से कुछ सबूत भी मिले ..साफ था की किसी ने बुध सिंह की गोली मार हत्या कर उसके शव को पेड़ से लटका दिया है ...पुलिस ने भी मामले को जल्द सुलझने का आश्वासन दिया .....
पुलिस की जाँच इस मामले की तफ्तीश में लगी थी हर किसी को विशवास था की बुध सिंह के कातिलो से पर्दा जल्द की उठने वाला है मगर नो दिन बाद पुलिस का वो ब्यान आया जिस को सुनकर हर किसी के होश फाकता हो गये ...बुध सिंह की हत्या नहीं हुई थी बल्कि उसने खुदकुशी की है...इस बात पर किसी को यंकिन नहीं हो रहा था आखिर एक इंसान कैसे खुद को गोली मार पेड़ पर लटका सकता है या खुद को फांसी पर लटका गोली कैसे मार सकता है ...परिवार वालो और ताजपुर गाँव के लोगो ने इस बात को लेकर थाने पर हंगामा भी किया ..लेकिन जैसे जैसे दिन निकलते गए मौत की ये गुत्थी उतनी की उलझती चली गई ...
आखिरकार पुरे मामले की जाँच थाना पुलिस के बजाए क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई ...आज इस घटना को पुरे दो साल हो गए है ...साथ की पुलिस की तफ्तीश को भी.... मगर दो साल की इस तफ्तीश के बारे में आप सुनेगे तो चौंक जांयगे क्योंकि तफ्तीश का नतीजा सिफर है ...बुध सिंह की मौत की गुत्थी आज भी उसी मोड़ पर है जंहा से वो शुरू हुई थी बुध सिंह की मौत का राज जानने को उसका परिवार ही नहीं बल्कि ताजपुर कलां गाँव का हर बाशिंदा बेताब है... हर कोई जानना चाहता है की उस रोज क्या हुआ था कैसे हुई थी बुध सिंह की मौत ....
दो साल की तफ्तीश के बारे में जब आला अधिकारी से बात की गई तो उन्होंने न केवल दो साल बीतने के बाद खुद को इस मामले से अन्भिझ बताया बल्कि इस मामले पर सटीक जवाब देने के बजाये ...उलटा सवाल मिडिया पर की दाग दिया ...आप क्यों इस केस में इतनी दिलचश्पी ले रहे है ...
दिल्ली पुलिस के लिए भले की ये केस अहम् न हो लेकिन पिछले दो साल से न्याय की बाट जोह रहे उस माँ बाप को आज इन्तजार है की.कोई तो उन्हें बता दे के आखिर उनके जवान बेटे के साथ हुआ क्या था ...
25 मार्च 2009
कातिल का कबूलनामा
वो दोनो बेहद करीबी दोस्त थे..एक दुसरे पर जान छिड़कते थे हर दुःख सुख में साथ होते मगर इस दोस्ती में दरार किया आई अपने ही दोस्त पर जान छिड़कने वाला बन गया खुद के दोस्त का कातिल ....उसने दिया अपने जुर्म का कबूलनामा हाँ मै ही हूँ अपने दोस्त का कातिल ..अगर मै उसे नहीं मारता तो मेरी जान ले लेता ...
दीपक अब इस दुनिया में नहीं है वो शिकार हो गया अपने ही दोस्त की दगाबाजी का ...दीपक और जितेंदर गहरे दोस्त थे कल शाम जितेंदर दीपक को उसके घर से बुलाकर अपने साथ ले गया ...लेकिन देर रात तक जब वह घर नहीं लौटा तो घर वालो ने पुलिस को खबर दी ...लेकिन आज सुबह १८ साल के दीपक की लाश बुराडी इलाके के ही एक खाली पड़े प्लाट में खून से सनी मिली ....शरीर पर तेज धर हथियार से वार किये गए थे ....आखिर कौन कर सकता था दीपक का कत्ल ये सवाल हर किसी के मन में उठ रहा था ...दीपक की तो किसी के साथ रंजिश भी नहीं थी ....
आखिर कौन है दीपक का कातिल जब इस राज से पर्दा उठा तो सब हैरान रह गए ..दीपक का कातिल कोई और नहीं बल्कि उसी का दोस्त जितेंदर था जिसने अपने एक और साथी के साथ मिलकर दीपक की बड़ी ही बेरहमी से हत्या कर दी थी ...इस दरअसल रात को दोनों ने शराब पि ...किसी बात को लेकर दोनों में कहासुनी हो गए तो जितेंदर ने अपने साथी के साथ मिलकर दीपक को मौत के घाट उतार दिया ...और फिर सुबह खुद ही ठाणे आकर खुद को पुलिस के हवाले कर दिया दोनों को अपने किये पर अब कोई पछतावा नहीं है ...
जितेंदर और उसका साथी कोई पेशेवर हत्यारे नहीं थे शायद यही बात और पकडे जाने के डर से ही दोनों ने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया ...इन दोनों की के गुनाह ने इन्हें अब जेल का रास्ता दिखा दिया ...लेकिन कोई दोस्त ज़रा सी बात पर कत्ल जसी वारदात को अंजाम दे सकता है ये बात सोचकर ही रूह काँप उठती है ....
दीपक अब इस दुनिया में नहीं है वो शिकार हो गया अपने ही दोस्त की दगाबाजी का ...दीपक और जितेंदर गहरे दोस्त थे कल शाम जितेंदर दीपक को उसके घर से बुलाकर अपने साथ ले गया ...लेकिन देर रात तक जब वह घर नहीं लौटा तो घर वालो ने पुलिस को खबर दी ...लेकिन आज सुबह १८ साल के दीपक की लाश बुराडी इलाके के ही एक खाली पड़े प्लाट में खून से सनी मिली ....शरीर पर तेज धर हथियार से वार किये गए थे ....आखिर कौन कर सकता था दीपक का कत्ल ये सवाल हर किसी के मन में उठ रहा था ...दीपक की तो किसी के साथ रंजिश भी नहीं थी ....
आखिर कौन है दीपक का कातिल जब इस राज से पर्दा उठा तो सब हैरान रह गए ..दीपक का कातिल कोई और नहीं बल्कि उसी का दोस्त जितेंदर था जिसने अपने एक और साथी के साथ मिलकर दीपक की बड़ी ही बेरहमी से हत्या कर दी थी ...इस दरअसल रात को दोनों ने शराब पि ...किसी बात को लेकर दोनों में कहासुनी हो गए तो जितेंदर ने अपने साथी के साथ मिलकर दीपक को मौत के घाट उतार दिया ...और फिर सुबह खुद ही ठाणे आकर खुद को पुलिस के हवाले कर दिया दोनों को अपने किये पर अब कोई पछतावा नहीं है ...
जितेंदर और उसका साथी कोई पेशेवर हत्यारे नहीं थे शायद यही बात और पकडे जाने के डर से ही दोनों ने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया ...इन दोनों की के गुनाह ने इन्हें अब जेल का रास्ता दिखा दिया ...लेकिन कोई दोस्त ज़रा सी बात पर कत्ल जसी वारदात को अंजाम दे सकता है ये बात सोचकर ही रूह काँप उठती है ....
13 मार्च 2009
खून की होली , दोस्त का कत्ल
उसने खेली खून की होली
होली का तोयोहर था हर कोई रंग से खेलने की तयारी में था मगर उसके मन में कुछ और ही चल रहा था उसने होली तो खेली मगर गुलाल से नहीं बल्कि खून से...उसने खेली खून की होली ...उसे अपने किये पर कोई पछतावा नहीं है बल्कि उसे फ़िक्र है तो अपने मासूम बच्चो की ...वो बन चूका है पुलिस का महमान
इस शख्स को गौर से देखिये इसके चहरे पर न तो कोई शिकन है न ही पछतावे का मलाल ...लेकिन इसने दिया है एक खौफनाक वारदात को अंजाम ..दिल्ली के नरेला में रहने वाले धर्मदास ने अपने ही साथी का बड़ी ही बेरहमी से कतल कर दिया ...रिंकू की धर्मदास की पत्नी के साथ नाजायज रिश्ते थे जिसका पता उसे लग चुका था मगर इस कड़वी सच्चाई के साथ वो किसी तरह जी रहा था मगर ११ मार्च को इसके सब्र का बाँध टूट गया और धरमदास ने रिंकू का कत्ल कर दिया ...रिंकू का चेहरा बुरी तरह से कुचला हुआ था उसकी पहचान कर पाना बहेद मुश्किल था ..लेकिन किसी तरह पुलिस ने पहचान की तो कत्ल के राज से भी पर्दा उठ गया ..
धर्मदास को अपने किये का कोई पछतावा नहीं है बल्कि उसे तो अपने मासूम बच्चो की चिंता है ...पहले तो वो खुद की पत्नी को ही ख़त्म करना चाहता था मगर उसके बच्चो के प्यार ने उसे रिंकू के कत्ल के लिए मजबूर कर की ..आप खुद सुनिए एक कातिल का कबूलनामा ...
वी ओ ३...दोस्त की दगाबाजी और बीवी की बेवफाई ने आखिरकार धर्मदास को गुनेहगार बना दिया ...लेकिन ये धर्मदास की मोहब्बत ही थी की उसने बीवी और अपने बच्चो के लिए अपने दोस्त का ही कत्ल कर दिया ...
होली का तोयोहर था हर कोई रंग से खेलने की तयारी में था मगर उसके मन में कुछ और ही चल रहा था उसने होली तो खेली मगर गुलाल से नहीं बल्कि खून से...उसने खेली खून की होली ...उसे अपने किये पर कोई पछतावा नहीं है बल्कि उसे फ़िक्र है तो अपने मासूम बच्चो की ...वो बन चूका है पुलिस का महमान
इस शख्स को गौर से देखिये इसके चहरे पर न तो कोई शिकन है न ही पछतावे का मलाल ...लेकिन इसने दिया है एक खौफनाक वारदात को अंजाम ..दिल्ली के नरेला में रहने वाले धर्मदास ने अपने ही साथी का बड़ी ही बेरहमी से कतल कर दिया ...रिंकू की धर्मदास की पत्नी के साथ नाजायज रिश्ते थे जिसका पता उसे लग चुका था मगर इस कड़वी सच्चाई के साथ वो किसी तरह जी रहा था मगर ११ मार्च को इसके सब्र का बाँध टूट गया और धरमदास ने रिंकू का कत्ल कर दिया ...रिंकू का चेहरा बुरी तरह से कुचला हुआ था उसकी पहचान कर पाना बहेद मुश्किल था ..लेकिन किसी तरह पुलिस ने पहचान की तो कत्ल के राज से भी पर्दा उठ गया ..
धर्मदास को अपने किये का कोई पछतावा नहीं है बल्कि उसे तो अपने मासूम बच्चो की चिंता है ...पहले तो वो खुद की पत्नी को ही ख़त्म करना चाहता था मगर उसके बच्चो के प्यार ने उसे रिंकू के कत्ल के लिए मजबूर कर की ..आप खुद सुनिए एक कातिल का कबूलनामा ...
वी ओ ३...दोस्त की दगाबाजी और बीवी की बेवफाई ने आखिरकार धर्मदास को गुनेहगार बना दिया ...लेकिन ये धर्मदास की मोहब्बत ही थी की उसने बीवी और अपने बच्चो के लिए अपने दोस्त का ही कत्ल कर दिया ...
01 मार्च 2009
ये कैसी पत्रकारिता
मै खुद एक पत्रकार हूँ और एक राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल के लिए काम कर रहा हूँ...लेकिन कई बार आज की पत्रकारिता को लेकर खुद को सवालों के घेरे में पाता सोचता हूँ ये कैसी पत्रकारिता है ...कल (२८ फरवरी 2009) की एक घटना ने मुझे झकझोर कर रख दिया ....दुनिया को आईना देखाने वाले पत्रकार आखिर किस और जा रहे है ...दरअसल कल दिल्ली के एक छोटे से इलाके नरेला के होलम्बी से मुझे खबर मिली की एक टीचर ने दूसरी कक्षा में पढने वाले एलिक का मुह काला कर उससे घुमाया है ..इस तरह की हरकत कोई टीचर करे मुझे यकीं नहीं हो रहा था मगर खबरी इसे कन्फ़र्म कर रहे थे ...जाहिर सी बात थी मुझे खबर के लिए तुंरत निकलना था लेकिन उससे पहले मैंने सिथिति का जायजा लेना बेहतर समझा पता चला की टीचर ने एक सेकेच पेन से एलिक के चहरे पर एक निशान बना दिया था ..जब बच्चा घर पहुचा तो उसके पिता ये सब देखकर आग बबूला हो गए फिर क्या था ..मोह्दिये जी ने इस बात की जानकारी पुलिस या स्कुल को देने के बजाये मीडिया कर्मियों की घंटी बजानी शुरू कर दी .....यंहा मेरे विवेक से ये खबर नहीं हो सकती थी अगर एक टीचर ने गलती वश या फिर मजाक में ये सब कर भी दिया तो क्या बात हो गई ....हमने अपने एक दुसरे पत्रकार साथियो इस बारे में सलाह मशविरा किया ...सभी ने निचेये किया वो खबर को कवर नहीं कर रहे है ....वास्तव में खबर थी भी नही ...ये खबर पत्रकारों में आग की तरह फैलती जा रही थी ... जिले के सभी पत्रकार इस खबर को ड्राप कर चुके थे ...लेकिन उस्सी दिन रात के समय जैसे ही मैंने आपना टी वी ओं किया तो वही खबर मेरे सामने थी वो भी बड़े धमाके के साथ ...टीचर की काली करतूत ..बेरहम टीचर ...ये कैसी सजा कुछ इस्सी तरह के शब्दों का इस्तेमाल हो रहा था ...ये कहबर किसी एक चैनल पर नहीं बल्कि एम् एच वन न्यूज़ , सहारा समय एन सी आर , एन डी टी वी (मेट्रो नेशन ) पर दिखाई जा रही थी....बस अब तो ऑफिस से फोन आने वाला है काफी डांट पड़ेगी तुम कान्हा थे तुम्हारे इलाके से इतनी बड़ी खबर आ रही है तुम क्या कर रहे थे ...हुआ भी ऐसा ही कुछ दी देर ऑफिस से बॉस का फोन आया मनोज ये क्या खबर है मैंने सर को बताया सर खबर तो है मगर इसमें कुछ नहीं है ...क्या कह रहे हो सर ये खबर मेरे पास काफी समय से थी मगर टीचर ज़रा सा पेन चला दिया था वो भी गलती से बच्चे के पिता ने इस पर घमासान मचा दिया और मीडिया कर्मियों को फोन करना शुरू कर दिया ....मेरी टीचर से बात हुई है उनका भी यही कहना है की ये सब उन्होंने जानबूझकर नहीं किया है बल्कि ये गलती से हो गया है ...किसी तरह से मेरा पीछ छूटा ..चैन की सांस ली ...मैंने तुंरत चंनेलो को बदलना शुरू किया पता चला की ये खबर हमारे किसी जानकार ने नहीं बल्कि कुछ दुसरे रिपोर्टरों ने की थी इसके तुंरत बाद मेरे मन में सवाल उठा की आखिर ये कैसे पत्रकारिता है जन्हा हम लोग सामाजिक दाईतावो को भूलते जा रहे है आखिर क्यों ..माँ बाप जितना दर्जा रखने वाले टीचर को क्या इतना भी हक़ नहीं की वो अपने छात्र को डांट सके .... इस तरह की खबर dikhanaa kitnaa सही है ......
15 फ़रवरी 2009
आशियाने को आबादी का इन्तजार
आशियाने को आबादी का इन्तजार
एक ओर २७ साल से २५ हज़ार लोगों को आशियाने का इंतजार दूसरी ओर हजारों आशियानों को आबादी का इंतजार----रोहिणी आवासीय योजना १९८१ का यही हाल है---अब इन २५ हज़ार आवेदकों को ही नहीं बल्कि रोहाणी में आबादी की आस में बैठे जनता को भी लगाने लगा है की कहीं उस समय भी कोई ऐसा है घोटाल तो नहीं हुआ---? अब वे हजारों आवेदक जहाँ १९८१ स्कीम की भी सीबीआई जाँच की मांग कर रहे है
ये है ७५ साल के बी-एल मित्तल--- ये २५ हज़ार लोगों में से है जो रोहिणी आवासीय योजना १९८१ के पंजीकर्त आवेदक है---जो पिछाले २६ सालों से फाईलों का ये पुलिंदा उठाये डी-डी-ऐ के उस भरोसे पर जिन्दा थे की उन्हें डी-डी-ऐ अपना वडा पुरा करेगी और उन्हें आशियाना दे देगी---लेकिन डी-डी-ऐ में हुए मोजूदा घोटाले से इन्हे भी लगाने लगा है की कहीं उस समय भी कोई घोटाला तो नहीं हुया----एक और मित्तल जैसे २५ हज़ार लोग आशियानों के आस में जी रहे है तो दूसरी ओर सेक्टर २५ रोहिणी में इन फ्लाटों को देखिये जो पिछले २६ सालों से आबादी की में इतने बुडे हो चले है के कब गिर जाए कहा नहीं जा सकता---ये फ्लेट भी केवल भ्रस्ताचार की भेट नहीं चढ़ गए बल्कि डी-डी-ऐ आफिसरों की मनमानी के कारन जो ५ प्रतिशत वास्तविक खरीदार है वे भी यहं फ्लेट लेकत पछता रहे है---यहाँ आबादी न होने का कारन बिजली पानी और परिवहन के कमी को रोना रोया जाता है---जिसके चलते यहाँ कोई आना नहीं चाहता----येही हाल हजारों प्लाटों का है---इनकी खरीद फरोख्त दर्जों बार हुई ----लेकिन रहने को कोए तयार नहीं---ऐसे में सवाल उठाना भी वाजिब है जब मांग ही नहीं है तो फिर इनके दाम असाम्मान क्यों छू रहे है----प्रोपर्टी कारोबारी भी रोहिन के इस सबसे बेहतरीन योजना कही जाने वाले स्कीम के फैलिओर का कारन भार्स्ताचार ही मानतें है----आर-डब्लू ऐ तो इसे कोर्ट में ले जाने की योजना बना रही है---- सन १९८१ की इस यजन के अनुसार पॉँच सेक्टर में रोहिणी आवासीय योजना १९८१ को २० सालों में पुरा हो जाना था---लेकिन आज २७ साल बीत जाने के बाद भी इसके केवल २ सेक्टर भी पुरी नहीं बसे---लिहाज़ा ऐसे में यदि इस योजना को भी संदेह की नजर से देखा जाए और इसकी भी सीबीआई जांच की मांग उठे तो यह स्वभाविक है है---
एक ओर २७ साल से २५ हज़ार लोगों को आशियाने का इंतजार दूसरी ओर हजारों आशियानों को आबादी का इंतजार----रोहिणी आवासीय योजना १९८१ का यही हाल है---अब इन २५ हज़ार आवेदकों को ही नहीं बल्कि रोहाणी में आबादी की आस में बैठे जनता को भी लगाने लगा है की कहीं उस समय भी कोई ऐसा है घोटाल तो नहीं हुआ---? अब वे हजारों आवेदक जहाँ १९८१ स्कीम की भी सीबीआई जाँच की मांग कर रहे है
ये है ७५ साल के बी-एल मित्तल--- ये २५ हज़ार लोगों में से है जो रोहिणी आवासीय योजना १९८१ के पंजीकर्त आवेदक है---जो पिछाले २६ सालों से फाईलों का ये पुलिंदा उठाये डी-डी-ऐ के उस भरोसे पर जिन्दा थे की उन्हें डी-डी-ऐ अपना वडा पुरा करेगी और उन्हें आशियाना दे देगी---लेकिन डी-डी-ऐ में हुए मोजूदा घोटाले से इन्हे भी लगाने लगा है की कहीं उस समय भी कोई घोटाला तो नहीं हुया----एक और मित्तल जैसे २५ हज़ार लोग आशियानों के आस में जी रहे है तो दूसरी ओर सेक्टर २५ रोहिणी में इन फ्लाटों को देखिये जो पिछले २६ सालों से आबादी की में इतने बुडे हो चले है के कब गिर जाए कहा नहीं जा सकता---ये फ्लेट भी केवल भ्रस्ताचार की भेट नहीं चढ़ गए बल्कि डी-डी-ऐ आफिसरों की मनमानी के कारन जो ५ प्रतिशत वास्तविक खरीदार है वे भी यहं फ्लेट लेकत पछता रहे है---यहाँ आबादी न होने का कारन बिजली पानी और परिवहन के कमी को रोना रोया जाता है---जिसके चलते यहाँ कोई आना नहीं चाहता----येही हाल हजारों प्लाटों का है---इनकी खरीद फरोख्त दर्जों बार हुई ----लेकिन रहने को कोए तयार नहीं---ऐसे में सवाल उठाना भी वाजिब है जब मांग ही नहीं है तो फिर इनके दाम असाम्मान क्यों छू रहे है----प्रोपर्टी कारोबारी भी रोहिन के इस सबसे बेहतरीन योजना कही जाने वाले स्कीम के फैलिओर का कारन भार्स्ताचार ही मानतें है----आर-डब्लू ऐ तो इसे कोर्ट में ले जाने की योजना बना रही है---- सन १९८१ की इस यजन के अनुसार पॉँच सेक्टर में रोहिणी आवासीय योजना १९८१ को २० सालों में पुरा हो जाना था---लेकिन आज २७ साल बीत जाने के बाद भी इसके केवल २ सेक्टर भी पुरी नहीं बसे---लिहाज़ा ऐसे में यदि इस योजना को भी संदेह की नजर से देखा जाए और इसकी भी सीबीआई जांच की मांग उठे तो यह स्वभाविक है है---
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