23 अगस्त 2010

इज्जत के बदले इज्जत

इज्जत के नाम पर कत्लेआम और पंचायत के तुगलकी फरमान तो आपने सुने होगें.. लेकिन इज्जत की दुहाई देकर समाज के ठेकेदारों को किसी की इज्जत नीलाम करते हुए शायद ही आपने देखा हो....लेकिन आज हम आपको दिखाने जा रहे हैं इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली एक ऐसी ही वारदात जिसमें खून के बदले खून की तर्ज पर एक शख्स ने अपनी बेटी के आशिक को सबक सिखाने के लिए उसकी भाभी की इज्जत को कर दिया सरेआम नीलाम...वीओ वन..
गुनाह किसी और का और सजा किसी और को.. मनजीत कौर की कहानी कुछ ऐसी ही है... असल में पंजाब के गुरदासपुर के बटाला में रहने वाली मनजीत कौर के देवर को पडोस की ही एक लडकी से प्यार हो गया.. लेकिन इस प्यार की सजा मिली मंनजीत कौर को...
असल में मनजीत का देवर गगनदीव पड़ोस में रहने वाली अंजू नाम की एक लड़की से प्यार करता था....इस बात की भनक जैसे ही अंजू के पिता को लगी...वो आग बबूला हो उठा....उसने गगनदीप के प्यार को अपनी शान के खिलाफ समझा...लिहाजा उसने खून के बदले खून का तरीका अपनाते हुए...इज्जत के बदले इज्जत लेने का फैसला लिया....तैश में आकर वो गगनदीप के घर पहुंचा....घर पर गगनदीप तो न मिला लिहाजा उसने गगनदीप की भाभी मनजीत कौर को उसके घर से उठाया.. उसके साथ मारपीट की गई.. और जब इससे भी उसका मन नही भरा तो आरोप है कि उसने अपने घर की इज्जत की दुहाई देकर मनजीत को निर्वस्त्र कर मोहल्ले भर में घुमाया .. मनजीत का कहना है कि मौके पर लोग थे लेकिन सब तमाशबीन बने रहे .... किसी ने उसकी मदद नहीं की
आरोप है कि पूरे मोहल्ले के सामने मनजीत कौर की इज्जत को निलाम किया गया.. और इस वारदात का गवाह है पूरा मोहल्ला जो सब कुछ होते हुए देखता रहा लेकिन मदद को आगे न आय़ा ....मामले की जानकारी पुलिस को दी गई....लेकिन पुलिस इसे महज मारपीट का मामला बता रही है... और इस पूरे केस के पीछे गढ़ रही है एक अलग ही थ्योरी
हालांकि पुलिस ने इस मामले में मनजीत के साथ मारपीट का मामला दर्ज कर बलदेव नाम के एक युवक को गिरफ्तार कर लिया है.... मनजीत कौर के साथ हुई घटना के चश्मीदद तो हैं लेकिन उसकी मदद के लिए कोई भी तैयार नही है...ऐसे में अब सवाल ये है कि क्या मनजीत अपनी इज्जत के दुश्मनों को सजा दिला पायेगी....वो भी तब की जब पुलिस की थ्योरी अलग है और मनजीत के आरोपों को लेकर चश्मदीद भी उसके साथ नहीं....

भारतीय अर्थव्यवस्था पर हमला

सरहद पार बैठे देश के दुश्मन भारत को बर्बाद करने का कोई मौका नहीं चूकना चाहते... सामने आकर उन्होंने जब जब मुकाबला किया मुंह की खानी पड़ी लिहाजा वो नकली नोटों के जरिये भारत की अर्थव्यवस्था को खोखला करने में जुटे हैं... दिल्ली पुलिस ने एक बार फिर तीन लोगों को गिरफ्तार कर नकली नोटों की एक भारी खेप जब्त की है... पूछताछ में खुलासा हुआ है कि सरहद पार बैठे देश के दुश्मन पूरे देश में फैला चुके हैं नकली नोटों का जाल...लिहाजा जरुरत है कि आप और हम चोकन्ना हो जायें.. क्योंकि हमारी और आपकी चौकसी ही नकली नोटों के इस सिंडिकेट को जड़ से उखाड़ सकती है..
नकली नोटों की खेप
पुलिस के शिकंजे में
नकली नोटों के कारोबारी
सरहद पार से जारी है भारतीय अर्थव्यवस्था को खोखला करने की नापाक साजिश... और इसका सुबूत है दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के हत्थे चढे ये तीन शातिर... क्राइम ब्रांच ने रामप्रसाद, कृपाशंकर और विकास चौधरी नाम के इन तीन लोगों को नकली नोटों की एक भारी खेप के साथ गिरफ्तार किया है... पुलिस ने इनके कब्जे से आठ लाख नौ हजार के नकली नोट बरामद किए हैं...
नकली नोटों का कारोबार
जिसकी साजिश रची जाती है
सरहद पार
पूछताछ में खुलासा हुआ कि नकली नोटों की खेप इन तीनों लोगों के पास सरहद पार से बांग्लादेश के रास्ते वेस्ट बंगाल होते हुए इनके पास पहुंचती थी... जिसके बाद ये लोग देश के अलग अलग हिस्सों में नकली नोटों को सप्लाई कर देते .... इससे पहले भी ये लोग कई बार नकली नोटों को देश के कई हिस्सों में खपा चुके हैं.... लेकिन इस बार पुलिस की चौकसी के आगे इनकी साजिश नाकाम साबित हुई....और पुलिस ने इस गिरोह के गुर्गे रामप्रसाद को रोहिणी के जापानी पार्क के पास से गिरफ्तार किया... रामप्रसाद की निशानदेही पर बाकी के दो लोग भी पुलिस की गिरफ्त में आ गये....
सरहद पार से नकली नोटों का कारोबार नया नहीं है.. बल्कि देश की अर्थव्यव्था को खोखला करने के लिए सीमापार बैठे दुश्मनों का हमेशा से ही ये मंसूबा रहा है... राजधानी दिल्ली में ही पुलिस ने हाल ही में 41 हजार 6 सौ रूपये के नकली सिक्कों के साथ दो लोगों को गिरफ्तार किया था। भारतीय रिजर्व बैंक के तमाम सुरक्षा इंतजामों और जांच एजेंसियों की पैनी निगाहों के बावजूद जाली नोटों का कारोबार दिन-दुनी रात चौगुनी रफ्तार से फल-फूल रहा है। अगर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकडों पर गौर करें तो साल
2001 में पुलिस ने 5.3 करोड़ की नकली कैरेंसी जब्त की जबक साल 2005 में ये राशि बढ़कर हो गई 6.9 करोड़
2008 में पुलिस ने 21.45 करोड़ के नकली नोट जब्त किये
जबकि
2009 में ये आंकड़ा बढकर हो गया 22 करोड़
आंकड़े बता रहे हैं कि किस तरह सरहद पार से देश के दुश्मन नकली नोटों का कारोबार बढाने में जुटे हैं... जाली नोटों का कारोबार कानूनन अपराध है इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी, आपराधिक साजिश रचने, 489 ए,बी, सी और डी अपराध की जानकारी छुपाना, और धारा 420 के तहत कार्रवाई का प्रावधान है लेकिन जिस तरह से इस कारोबार में इजाफा हुआ है उससे साफ है कि इस प्रावधान का कोई खास असर नही हुआ है। ....
एक तरफ पुलिस अपना काम कर रही है....वो नकली नोटों के कारोबारियों पर बारीक निगाह बनाये हुए है...और जरा सा भी शक होते ही ऐसे कारोबारियों को उनके असल मुकाम तक पहुंचा दिया जाता है....ऐसे में जरुरत है हमारे भी चोकन्ना रहने और पुलिस का साथ निभाने की... हमारी चौकसी ही भारतीय अर्थव्यवस्था को खोखला करने वाले देश के दुश्मनों को जबाव दे सकती है

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भारतीय अर्थव्यवस्था पर हमला

सरहद पार बैठे देश के दुश्मन भारत को बर्बाद करने का कोई मौका नहीं चूकना चाहते... सामने आकर उन्होंने जब जब मुकाबला किया मुंह की खानी पड़ी लिहाजा वो नकली नोटों के जरिये भारत की अर्थव्यवस्था को खोखला करने में जुटे हैं... दिल्ली पुलिस ने एक बार फिर तीन लोगों को गिरफ्तार कर नकली नोटों की एक भारी खेप जब्त की है... पूछताछ में खुलासा हुआ है कि सरहद पार बैठे देश के दुश्मन पूरे देश में फैला चुके हैं नकली नोटों का जाल...लिहाजा जरुरत है कि आप और हम चोकन्ना हो जायें.. क्योंकि हमारी और आपकी चौकसी ही नकली नोटों के इस सिंडिकेट को जड़ से उखाड़ सकती है..
नकली नोटों की खेप
पुलिस के शिकंजे में
नकली नोटों के कारोबारी
सरहद पार से जारी है भारतीय अर्थव्यवस्था को खोखला करने की नापाक साजिश... और इसका सुबूत है दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के हत्थे चढे ये तीन शातिर... क्राइम ब्रांच ने रामप्रसाद, कृपाशंकर और विकास चौधरी नाम के इन तीन लोगों को नकली नोटों की एक भारी खेप के साथ गिरफ्तार किया है... पुलिस ने इनके कब्जे से आठ लाख नौ हजार के नकली नोट बरामद किए हैं...
नकली नोटों का कारोबार
जिसकी साजिश रची जाती है
सरहद पार
पूछताछ में खुलासा हुआ कि नकली नोटों की खेप इन तीनों लोगों के पास सरहद पार से बांग्लादेश के रास्ते वेस्ट बंगाल होते हुए इनके पास पहुंचती थी... जिसके बाद ये लोग देश के अलग अलग हिस्सों में नकली नोटों को सप्लाई कर देते .... इससे पहले भी ये लोग कई बार नकली नोटों को देश के कई हिस्सों में खपा चुके हैं.... लेकिन इस बार पुलिस की चौकसी के आगे इनकी साजिश नाकाम साबित हुई....और पुलिस ने इस गिरोह के गुर्गे रामप्रसाद को रोहिणी के जापानी पार्क के पास से गिरफ्तार किया... रामप्रसाद की निशानदेही पर बाकी के दो लोग भी पुलिस की गिरफ्त में आ गये....
सरहद पार से नकली नोटों का कारोबार नया नहीं है.. बल्कि देश की अर्थव्यव्था को खोखला करने के लिए सीमापार बैठे दुश्मनों का हमेशा से ही ये मंसूबा रहा है... राजधानी दिल्ली में ही पुलिस ने हाल ही में 41 हजार 6 सौ रूपये के नकली सिक्कों के साथ दो लोगों को गिरफ्तार किया था। भारतीय रिजर्व बैंक के तमाम सुरक्षा इंतजामों और जांच एजेंसियों की पैनी निगाहों के बावजूद जाली नोटों का कारोबार दिन-दुनी रात चौगुनी रफ्तार से फल-फूल रहा है। अगर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकडों पर गौर करें तो साल
2001 में पुलिस ने 5.3 करोड़ की नकली कैरेंसी जब्त की जबक साल 2005 में ये राशि बढ़कर हो गई 6.9 करोड़
2008 में पुलिस ने 21.45 करोड़ के नकली नोट जब्त किये
जबकि
2009 में ये आंकड़ा बढकर हो गया 22 करोड़
आंकड़े बता रहे हैं कि किस तरह सरहद पार से देश के दुश्मन नकली नोटों का कारोबार बढाने में जुटे हैं... जाली नोटों का कारोबार कानूनन अपराध है इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी, आपराधिक साजिश रचने, 489 ए,बी, सी और डी अपराध की जानकारी छुपाना, और धारा 420 के तहत कार्रवाई का प्रावधान है लेकिन जिस तरह से इस कारोबार में इजाफा हुआ है उससे साफ है कि इस प्रावधान का कोई खास असर नही हुआ है। ....
एक तरफ पुलिस अपना काम कर रही है....वो नकली नोटों के कारोबारियों पर बारीक निगाह बनाये हुए है...और जरा सा भी शक होते ही ऐसे कारोबारियों को उनके असल मुकाम तक पहुंचा दिया जाता है....ऐसे में जरुरत है हमारे भी चोकन्ना रहने और पुलिस का साथ निभाने की... हमारी चौकसी ही भारतीय अर्थव्यवस्था को खोखला करने वाले देश के दुश्मनों को जबाव दे सकती है

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जिंदा है वो-1

मौत जितनी दर्दनाक होती है उतनी ही खौफनाक भी.... कहते हैं कि मौत ने जिसे एक बार अपने आगोश में लिया उसका दोबारा जिंदा होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है... ऐसे में अगर कोई शख्स मरने के बाद दोबारा जिंदा लौट आए....तो उसे आप क्या कहेंगें... क्या ऐसा हो सकता है... जाहिर है यकीन करना थोडा मुश्किल है लेकिन हम आपको बता दें ऐसा हुआ है,... इस दुनिया में एक शख्स ऐसा भी है जो मरकर लौटा है जिंदा...ज़रा सोचिए उस शख्स के बारे में.. जिसे मौत ने अपने आगोश में ले लिया हो...जिसका वजूद ही इस दुनिया में ना हो.. हजारों लोगों की मौजूदगी में जिसे.. कब्रिस्तान में दफन कर दिया गया हो....जिसे हर कोई मुर्दा मान चुका हो... लेकिन वही शख्स जिंदा हो जाए.. वो आपसे बातें करें.... आपके बारे में सबकुछ जानता हो.. उसे आप क्या कहेंगें... अब तक का सबसे बड़ा चमत्कार या फिर आंखों का धोखा... जवाब देना थोडा मुश्किल है.. लेकिन नामुमकिन नही.. क्योंकि ऐसा हुआ है.. उसे हजारों लोगों की मौजूदगी में दफन किया गया लेकिन वो उन्हीं लोगों के सामने दोबारा लौट आया है.. यकीन ना आए तो इस नौजवान को देखिए.. लोगों की भीड़ से घिरा ये है मुस्तफा.. वही मुस्तफा जिसे सात साल पहले मरा समझकर लोगों ने दफना दिया था....लेकिन आज ये जिंदा है.. लोगों से बातें कर रहा है.. अपनी जिंदगी के हर राज आज भी इसे बखूबी याद है.. मुस्तफा की मौत की दास्तां अजीब है... मुरादाबाद के संभल में मुस्तफा अपने परिवार के साथ रहता था...एक दिन मुस्तफा के पूरे शरीर में अचानक दर्द होने लगा..घरवाले उसे अस्पताल लेकर गए। जहां डॉक्टरों ने बताया कि मुस्तफा को सांप ने काट लिया है....सांप के काटने की बात सुनकर परिजनों के पैरों तले से मानो जमीन खिसक गई... और फिर वही हुआ जिसका परिवार को डर था। कुछ देर बाद डॉक्टरों ने मुस्तफा को मृत घोषित कर दिया गया। ये सब आज से ठीक सात साल पहले हुआ था। चौदह साल के बेटे की मौत की खबर ने पूरे परिवार को तोडकर रख दिया....मुस्तफा की मौत के बाद उसके शव को कब्रिस्तान में दफना दिया गया।
सात साल बाद एक बार फिर मुस्तफा अपने परिवार के साथ है। भला एक परिवार इससे ज्यादा और क्या चाहेगा... मौत को मात देकर लौटे मुस्तफा के घर आने से परिवार के लोग खुश है...लेकिन अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर जिसे मरा समझकर लोगों ने दफना दिया...वो आखिर अब जिंदा कैसे लौटा...वो सात साल तक कहां रहा....उसकी जिंदगी कैसे और किन हालातों में बची...जी हां ये वो सनसनीखेज सवाल हैं जिसने मुस्तफा की कहानी को बना दिया है उत्तर प्रदेश की सबसे रहस्यमयी दास्तान...

जिंदा है वो-2

जिस मुस्तफा को सभी ने मरा समझा...जिसे सैकड़ों लोगों की भीड़ के बीच दफना दिया गया ....वो आखिर जिंदा कैसे लोट आया... ये कोई चमत्कार है या फिर धोखा.. यकीनन ये वो सवाल हैं जो मुस्तफा को जिंदा देखकर हर किसी के जहन में कौंध रहे थे....तो आईये हम आपको दिखाते हैं मुस्तफा की मौत और उसकी नई जिंदगी से जुड़े वो सनसनीखेज राज जिसने इस मामले को बना दिया है सूबे की सबसे रहस्यमयी दास्तान..वीओ वन.. मुरादाबाद के रहने वाले मुस्तफा के घर जुटी लोगों की ये भीड़... ये भीड़ मुस्तफा के घर लौटने के बाद जुटी है.. हर कोई खुश है कि सात साल बाद मुस्तफा जिंदा घर लौटा है... लेकिन इस खुशी के साथ साथ हर किसी के जहन ये सवाल भी कौध रहा है कि आखिर ये मुस्तफा की जिंदगी में चमत्कार कैसे हुआ.. आखिर कैसे मौत के बाद मुस्तफा जिंदा लौट आया... वो कौन सी शक्ति थी जिसने विज्ञान को पीछे छोड दिया... डॉक्टरों के दावे को झुठला दिया... मुस्तफा की नई जिंदगी से जुडे ऐसे ही ना जाने और कितने सवाल हैं.. लेकिन इस सभी सवालों का केवल एक ही जवाब है .. अहमद... जी हां अहमद.. यही वो शख्स है जिसके पास मुस्तफा की नई जिदंगी से जुड़े हर सवाल का जवाब है। दरअसल मुस्तफा की मौत के बाद उसे दफना दिया गया...मुस्तफा की मौत की जानकारी इलाके के कुछ सपेरों को लगी... उन सपेरों ने फौरन मुस्तफा की लाश को कब्रिस्तान निकाल लिया.... सपरों ने उससे बेजान जिस्म में जान डालने की कोशिश की...उनकी कोशिश रंग लाई....औऱ कुछ ही समय के बाद मुस्तफा के जिस्म में हलचल होने लगी...उसका बेजान जिस्म हरकत करने लगा... मुस्तफा को उन सपेरों ने नई जिंदगी दे दी... जिसके बाद मुस्तफा उन्हीं का होकर रह गया।
मुस्तफा सपेरों के साथ अपना नया जीवन बिताने लगा....वक्त बीतता गया...लेकिन अब से करीब दो साल पहले मुस्तफा की ने एक बार फिर करवट बदली....उसकी बुआ ने मुस्तफा के परिवार वालों को बताया कि उसने मुस्तफा को सपेरों के साथ घूमते हुआ देखा है...जो शख्स मर चुका हो वो भला किसी के साथ कैसे हो सकता है। कुछ पल के लिए परिवार को लगा कि ये मुस्तफा की बुआ का वहम है लेकिन अब दो साल बाद एक बार फिर मुस्तफा की बुआ ने मुस्तफा को देखने का दावा किया.. परिवार वालों ने अधूरे मन से उसकी बात मानी और एक बार मुस्तफा से मिलने का फैसला किया... परिवार बिना कोई उम्मीद किए ही महमूदपुर कस्बे के सपेरों से मिलने पहुंच गया... परिवार के लोगों ने जब मुस्तफा को सपेरों के बीच देखा तो उन्हें यकीन नही हुआ.. उन्हें लगा कि ये उसका कोई हमशक्ल है। लेकिन उसके जिस्म पर बने निशान परिवार को सोचने पर मजबूर कर रहे थे। जब घर के लोग सामने आए तो मुस्तफा ने भी उन्हें पहचाने में ज्यादा देर नहीं की...
मुस्तफा के घर लौटने की खुशी की लाइफ ज्यादा लंबी न थी क्योंकि सपेरों ने मुस्तफा के परिवार वालों के सामने शर्त रखी है कि वो ही मुस्तफा की नई जिंदगी के हकदार हैं...और मुस्तफा ताउम्र उन्हीं के साथ रहेगा...सपेरों ने मुस्तफा को दो दिन का वक्त दिया है कि वो अपने घरवालों के साथ रहे इसके बाद वो सपेरों की ही टोली में शामिल हो जाये... ऐसे में अब देखना ये है कि मुस्तफा जो सात साल बाद मौत के मुंह से निकलकर अपनों के बीच पहुंचा है क्या वो दोबारा सपेरों की टोली का ही हिस्सा हो जायेगा या फिर वो अपने ही परिवार के साथ अपनी आगे की जिंदगी बितायेगा...

08 अगस्त 2010

बेगुनाही की सजा

गुनाहगार को उसके किए की सजा मिले ये कोई नई बात नही। लेकिन उस शख्स को जेल में सलाखों के पीछे दिन गुजारे पडे जिसने कोई गुनाह किया ही ना हो तो उसे आप क्या कहेंगें। कुछ ऐसा ही हुआ है दिल्ली के एक बुजुर्ग के साथ। जिसे दस साल पहले झुठे केस में पंजाब पुलिस ने गिरफ्तार किया। अदालत ने उसे जेल भेजा और अब उसे न्याय मिला है। पंजाब की एक अदालत ने इस बुजुर्ग को बेगुनाह बताया है..लेकिन इन दस सालों में ना केवल उसे ढेरों मुसीबतों का सामना करना पडा बल्कि परिवार ने भी बहुत कुछ खो दिया।

नाम में क्या रखा है.. भला नाम तो महज एक पहचान है। लेकिन इसी नाम की वजह से अमरजीत सिंह ने चौदह दिन जेल में बिताए..पचासों बार कोर्ट के चक्कर लगाए और अपने नाम की वजह से ही खुद के परिवार को टूटते देखा है। दिल्ली के रोहिणी सेक्टर सोलह में रहने वाले अमरजीत की ये ऐसी कहानी है जिसमें उसपर पंजाब पुलिस ने दस साल पहले गुनाहगार होने का ऐसा तमगा लगाया है सबकुछ बर्बाद हो गया। पुलिस की कारसतानी ने ना उसे कोर्ट के चक्कर लगाने पडे बल्कि जेल की हवा भी खानी पडी। इन दस सालों में आखिर क्या कुछ सहना पडा इस परिवार को आप खुद सुन लिजिए।
अमरजीत के साथ पंजाब पुलिस की ज्यादती का सिलसिला शुरू हुआ था साल 2000 में जब पहली बार पुलिस अमरजीत सिंह गंभीर के ऑफिस पर पहुंची थी। उससे अमरजीत के बारे में पुछा गया और फिर इसका नाम अमरजीत होना ही इसकी मुसीबत की वजह बन गया। दरअसल पंजाब पुलिस को तलाश थी अमरजीत सिंह लांबा नाम के युवक की जिसकों गाडियों के फर्जी कागजात तैयार करने के आरोप में पुलिस को गिरफ्तार करना था। लेकिन पुलिस ने पंजाब के राजपुरा में दर्ज एफआईआर के आधार पर अमरजीत सिंह गंभीर को उठा लिया। पंजाब पुलिस कई बार अमरजीत के घर वक्त-बेवक्त पहुंची। आखिरकार पुलिस ने अमरजीत सिंह लांबा की जगह अमरजीत सिंह गंभीर को गिरफ्तार कर पंजाब की एक अदालत में पेश कर दिया। जहां से अदालत ने उसे तीन दिन की रिमांड पर भेजा और जब तक जमानत होती.. किसी के नाम पहुंचने से पहले ही उसे चौदह दिन के लिए जेल भेज दिया गया। अमरजीत सिंह अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए चिल्लाता रहा लेकिन किसी ने उसकी एक नाम सुनी।
हैरानी की बात थी कि जिस योगेश नाम के शख्स ने अमरजीत सिंह को धोखाधडी के मामले में अपना सहयोगी बताया था उसने खुद पुलिस को बताया कि ये वो अमरजीत सिंह नही हो जोकि उसका साथी रहा है। फिर भी पुलिस ने इस केस में कोई लापरवाही दिखाई और अमरजीत सिंह गंभीर को ही अदालत में पेश कर दिया। अमरजीत सिंह को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए पंजाब की अदालत में पचासों बार चक्कर लगाने पडे। आखिरकार अदालत ने माना है अमरजीत सिंह गंभीर बेकसुर है और उसे गलत फंसाया गया था। लेकिन उसका नाम ही अमरजीत की परेशानी का सबब बना। अब अमरजीत सिंह पंजाब पुलिस के उन अफसरों पर कानूनी कार्रवाई चाहते है जिनकी वजह से उसे दस साल तक यातनाएं झेलनी पडी।

बेगुनाही की सजा-2

अमरजीत सिंह के साथ हुई ज्यादती की कहानी यहीं खत्म नही होती.. दस सालों में उसने थाने और अदालत के चक्कर तो लगाए ही बल्कि परिवार का दर्द भी सहना पडा। पिता पर लगे संगीन इल्जामों को बेटी सह ना सकी। जब भी पुलिस वाले घर पहुंचते और अमरजीत सिंह से पुछताछ करते बेटी को अजीब सा डर सताने लगता।
सामने छ सात पुलिस वाले.. एक तरफ एक बुजुर्ग जरा सोचिए उस परिवार पर क्या बितेगी। खासकर उस शख्स की बेटी पर जिसकी शादी होने वाली हो और पिता पुलिस से घिरा हो। कुछ ऐसा ही होता था जब भी पंजाब पुलिस अमरजीत सिंह के घर पहुंची पूरा परिवार सहम उठता। बीस साल की रविन्द्र कौर पिता को पुलिस वालों से घिरा देख परेशान हो जाती..आंसूओं का सैलाब बहने लगता। वो अंदर ही अंदर परेशान रहने लगी। एक दिन अचानकर वो बीमार हो गई। अस्पताल में ईलाज के लिए भर्ती कराया गया तो पता चला कि रविन्द्र को ब्रेन हैमरेज हो गया है।
एक पिता के लिए खुद को बेगुनाह साबित करने से जरूरी बेटी को बचाना था शायद इसी लिए अमरजीत ने पुलिस के सामने पेश होने से पहले बेटी का इलाज कराना जरूरी समझा। लेकिन किस्मत ने साथ नही दिया..रविन्द्र कौर कौमा में चली गई और फिर ठीक दस दिन बाद उसकी मौत हो गई।लेकिन यहां भी पुलिस का एक अजीब ही चेहरा सामने आया। जब अमरजीत ने पटियाला सीआईए अधिकारी के सामने ना पहुंचने की वजह बेटी की मौत बताई तो पुलिस वालो ने इसे एक बहाना बताया।
अमरजीत सिंह की कहानी पहली नही है बल्कि ऐसे और भी ना जाने कितने लोग है जिन्हें बेगुनाही सी सजा दी गई है।