लो तेंदुआ आ गया----
बाहरी दिल्ली के जिंदपुर गांव में कुछ दिन पहले अचानक एक तेंदुआ दिखने से इलाके में हडकंप मच गया। जैसे ही लोगो को तेंदुए के मिलने का पता चला हर कोई जंगल के इलाके में दौड पडा। दरअसल अलीपुर इलाके के जिंदपुर गांव के एक फार्म हाउस दुआ दिखा तो फार्म हाउस के मालिक ने खुद ही उसकी वीडियों फिल्म बना ली और फिर मामले की जानकारी तुरंत पुलिस को भी दे दी। हमेशा लेट लतीफी का आरोप झेलने वाली दिल्ली पुलिस ने भी पूरे मामले को पूरी गंभीरता से लिया। सूचना मिलने के चंद मिनटों बाद ही पुलिस मौके पर पहुंच गई माने तेंदुए को चुटकियों में पकड कर उसे सलाखों के पीछे पहुंचा देगी। पुलिस के पहुंचने पर हालांकि फार्म हाउस के मालिक ने राहत की सांस ली। लेकिन फार्म हाउस में तेंदुए की मौजूदगी को लेकर वो भी हैरान परेशान थे। चलो फिर क्या था हर कोई तेंदुए की वीडियों को देखने के लिए इतना बेताब मानो कभी तेंदुए को देखा ही नही हो। तेंदुए को देखने के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक तो खुद पुलिस के जवान ही थे। वीडियों देखने के बाद साफ हो गया कि जिस जानवर पर इतना घमासान मचा है वो सही में तेंदुआ है इस बात की तस्दीक वाइलड लाईफ विभाग ने भी कर दी। लेकिन अब जितना अहम तेंदुए को गिरफ्तार करना था उतना ही ये पता लगाना भी की आखिर इस इलाके में तेंदुआ आया तो आया कैसे। चलिए इस पर बात करने से पहले उस घमासान पर बात कर लेते है जब तेंदुए को लेकर मारामारी रही। राजधानी में तेंदुआ आ जाए और मीडिया को खबर ना हो ऐसा कैसे हो सकता है चंद घंटो में ही तेंदुए के मिलने की खबर मीडिया जगत में भी जंगल की आग की तरह फैल गई। दरअसल उस दिन मुझे दोपहर की शिफ्ट में आफिस पहुंचना था लेकिन बाइक पंचर हो जाने की वजह से मैं आफिस लेट हो रहा था इस दौरान में मित्र का फोन भी आ गया कि अलीपुर के जिंदपुर इलाके में एक तेंदुए को देखा गया है मैं ये सुनकर हैरान रह गया फिर भी खबरी खबर कनफर्म कर रहा था तो मामले को हल्के में लेना सही भी नही था। मैंने खबर को आफिस में बताने के बाद खुद बाइक से ही मौके पर पहुंच गया। कुछ देर बाद ही आफिस से गाडी और कैमरामैन भी पहुंच गया। तबतक दिल्ली पुलिस के करीब 50 जवान हथियारों से लैस होकर फार्म हाउस पर पहुंच गए मानो तेंदुए को यूं पकडा। खैर वन विभाग का इन्तजार किया गया और इस तरह दिन के तीन बज चुके थे। फिर शुरू हुआ तेंदुए का तालाशी अभियान वन विभाग, वाइलड लाइफ और दिल्ली पुलिस तीखी नजरों से तेंदुए को तालाश रहे थे। कोई दूर से कोई पास से अचानक तालाश रूकी कुछ पंजों के निशान पर आकर। आखिरकार अंधेरा हो गया तो सर्च आपरेशन को भी रोकना पडा। अगले दिन दोबारा से तालाश शुरू हुई लेकिन पंजो के अलावा नतीजा कुछ नही निकला। अधिकारी तो तालाश में लगे थे ही उनसे कहीं ज्यादा मौके पर मौजूद पत्रकारों की नजरे तेंदुए को तालाश रही थी भला चौबीस घंटे से एक ही तो विजुअल पर चैनल खबर को ठोक बजाकर चला रहे थे। अब कुछ नया भी तो चाहिए था भई आफिस भी तेंदुआ पकडे जाने की बाट जोह रहा था। हर घंटे बाद एक ही सवाल तेंदुआ मिला क्या। लगातार 48 घंटे तक पुलिस प्रशासन के साथ साथ पत्रकार महोदय भी तेंदुए की तालाश करते रहे लेकिन आखिरकार हाथ कुछ नही लगा। तो पत्रकारों को भी अपना बोरिया बिस्तरा समेटना पडा। अब तेंदुआ जितना बिकना था बिक चुका। अधिकतर न्यूज चैनलस् ने लाल गोला लगाकार दर्शको को दिखा ही दिया की देख लो यही है तेंदुआ। आखिरकार 48 घंटे तक चला तेंदुए और प्रशासन का ड्रामा था खूब मजेदार।
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