22 मई 2012


 मैं आई हूं ससुराल लूटने


वी एन शांडिल्य

भारतीय संस्कृति में पत्नी को गृहलक्ष्मी का दर्जा दिया गया है। लेकिन जब वही गृहलक्ष्मी घर में डाका डाले, तो क्या कहेंगे? जाहिर सी बात है, उसे सबसे बड़ी लुटेरी कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हाल में इस तरह की एक घटना दिल्ली के कमला मार्केट इलाके में देखने को मिली, जब पूर्व प्रेमी के प्यार के जुनून में अंधी एक पत्नी अच्छी-खासी नकदी व जेवरात लेकर प्रेमी के साथ कहीं दूर नये आशियाने की तलाश में ससुराल से उस समय रफूचक्कर हो गयी, जब घर के सभी सदस्य गहरी नी्रद मे सोये थे। हांलाकि इस बाबत मामला दर्ज होने पर पुलिस ने कड़ी मशक्कत के बाद उन्हें तलाश लिया। लुटेरी दुल्हन से नकदी व जेवरातों की बरामदगी भी हो गयी। लेकिन अब सिवाए पाश्चाताप के, उस तथाकथित गृहलक्ष्मी के हाथ में कुछ नहीं। प्रेमी जेल की सलाखों के पीछे है, तो उसे ससुराल और मायके वालों ने घर में पनाह देने से साफ इनकार कर दिया। 

रहस्यमय ढ़ंग से लापता
मूल रूप से बिहार के रहने वाले उमेश प्रसाद सिंह सरकारी सेवा में थे। उन्हें रहने के लिए मध्य दिल्ली के कमला मार्केट थाना क्षेत्र स्थित मिंटो रोड काॅम्पलेक्स में सरकारी फ्लैट नंबर ए-106 आवंटित हो रखा था, जहां वे सपरिवार रहते थे। लड़का जितेन्द्र कुमार सिंह पेशे से इलेक्ट्रिोनिक इंजीनियर था, लेकिन अब तक उसकी शादी नहीं हो रखी थी। एक रिश्तेदार की सलाह पर उमेश सिंह ने जितेन्द्र की शादी झारखंड के जमशेदपुर शहर स्थित टेल्को काॅलोनी में रहने वाली दिव्या (परिवर्वित नाम) के साथ तय कर दी। स्नातक तक पढ़ाई कर रखी दिव्या का ताल्लुक एक मध्यमवर्गीय परिवार से था। शादी बड़ी धूमधाम से जमशेदपुर में हुई। शादी के छठे दिन नव दंपत्ति जमशेदपुर से दिल्ली आ गये। उसी रात घर पर उनकी शादी की रिसेप्शन पार्टी थी। समारोह मध्य रात्रि तक चला।
उसके बाद घर के सभी सदस्य सो गये। तड़के करीब चार बजे जितेन्द्र की अचानक नींद खुली, तो साथ सो रही दिव्या को घर से नदारद देखकर वह चैक पड़ा। उसने दिव्या के मोबाइल पर फोन किया, तो स्विच आॅफ मिला। परिजनों के साथ मिलकर आसपास काफी ढ़ूंढ़ा। पर कामयाबी नहीं मिली। दिव्या का गायब होना रहस्यमय बना रहा।
हालांकि जितेन्द्र व परिजन यह मान चुके थे, कि दिव्या को घर से जबरन उठाकर नहीं ले जाया गया। उसकी कई वजहें थी। पहली, जितेन्द्र ने सोने से पूर्व घर के मुख्य गेट का दरवाजा स्वयं अच्छी तरह बंद किया था, जिसे परिवार के किसी सदस्य ने नहीं खोला। लेकिन दरवाजा खुला पड़ा था। जाहिर सी बात थी कि दिव्या ने दरवाजा खोला होगा। दूसरी, मुख्य गेट के अलावा घर में दाखिल होने अन्य कोई जरिया नहीं था। तीसरी, जितेन्द्र को साथ सो रही दिव्या के गायब होने की भनक तक नहीं लगी। और चैथी, घर से करीब 40 हजार रुपये नकद रकम व कीमती जेवरात गायब थे। ऐसे में दिव्या चुपके से स्वेच्छा पूर्वक ससुराल से चंपत हुई इससे किसी को इनकार नहीं था। लेकिन उसने यह कदम क्यों उठाया? इस सवाल का जवाब फिलहाल सभी की समझ से परे था।
अपहरण का मुकदमा
परिजनों ने लोक-लाज के भय से पड़ोसियों व रिश्तेदारों को घटना की भनक नहीं लगने दी। लेकिन वे अपने स्तर पर सावधानी पूर्वक दिव्या की तलाश में लगे रहे। वह मायके भी नहीं पहुंची थी। जितेन्द्र ने इस बाबत ससुराल में फोन कर पता कर लिया। जबकि उसका मोबाइल फोन अब तक बंद था। हर संभावित प्रयत्न के बाद भी निराशा हाथ लगने पर आखिर में जितेन्द्र ने पुलिस का सहयोग लेना आवश्यक समझा। फिर वह कमला मार्केट थाने पहुंचा। उसने थाने के एसएचओ इंस्पेक्टर प्रमोद जोशी को पूरी बात बताते हुए आशंका जाहिर की कि किसी ने बहला-फुसलाकर उसकी पत्नी का अपहरण कर लिया है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए इंस्पेक्टर जोशी ने जितेन्द्र के बयान पर उसी समय इस बाबत थाने में अज्ञात अपहर्ता के खिलाफ मुकदमा अपराध संख्या 31/2012 पर धारा 365 भादवि के तहत दर्ज कर लिया। मामले की जांच के लिए मध्य दिल्ली के एडिशनल डीसीपी राजेश देव ने कमला मार्केट थाने के एसएचओ प्रमोद जोशी के नेतृत्व में एक विशेष टीम का गठन किया। टीम में सब-इंस्पेक्टर जयपाल सिंह, कांस्टेबल किरणपाल और महिला कांस्टेबल सुनीता शामिल थीं।
मामला प्रेम-प्रसंग से जुड़ा प्रतीत
घटना की लगभग सभी संभावित पहलूओं पर सूक्ष्मता पूर्वक जांच करने के बाद पुलिस टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची कि शायद मामला प्रेम-प्रसंग से जुड़ा है। जबकि पूछताछ में मायके व ससुराल वालों ने ऐसी संभावना से इनकार किया। उनकी नजर में शांत प्रवृत्ति की दिव्या एक सुलझी हुई लड़की थी। उसके प्रेम-प्रसंग किसी के साथ नहीं थे। लेकिन इंस्पेक्टर जोशी को किसी की भी यह दलील हजम नहीं हुई।
प्रेमी मुन्ना के साथ दिव्या
इंस्पेक्टर जोशी ने घटना के दिन से एक माह पूर्व तक की दिव्या के मोबाइल फोन की काॅल डिटेल्स निकलवाकर गहन पड़ताल की तो एक संदिग्ध मोबाइल नंबर पर उनका ध्यान ठहर गया। विगत एक माह के दौरान दिव्या व संदिग्ध मोबाइल नंबर के बीच रोजाना तीन से चार बार लंबी बातें हुई थीं। जबकि दिव्या के मोबाइल पर अंतिम काॅल संदिग्ध मोबाइल नंबर से था।
अब इंस्पेक्टर जोशी ने दोनों मोबाइल फोन के लोकेशन की जांच की। पता चला कि दोनों के मोबाइल फोन का अंतिम लोकेशन घटना की सुबह सात बजे से सुबह करीब दस बजे तक एक साथ गुड़गांव (हरियाणा) का था। उसके बाद से दोनों मोबाइल फोन बंद थे। इससे साफ हो गया कि दिव्या ससुराल से चंपत होने के बाद गुड़गांव निकल गयी थी।
अब ऐेसी संभावना नजर आयी कि घटना में सदिग्ध मोबाइल नंबर के धारक का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हाथ हो सकता है। साथ ही, संदिग्ध मोबाइल नंबर के धारक से दिव्या के अंतरंग संबंध रहे हों, इस संभावना में दम था।
कैसे मिला सुराग
जांच के दौरान पता चला कि संदिग्ध मोबाइल नंबर का धारक मुन्ना प्रसाद, पुत्र मैनेजर प्रसाद, निवासी मकान नंबर के-3/81, टेल्को काॅलोनी जमशेदपुर (झारखंड) पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर है। वह गुड़गांव स्थित एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत था। उसका पुश्तैनी घर दिव्या के मायके के पड़ोस में था।
उपर्युक्त जानकारी के बाद पुलिस टीम ने मुन्ना के परिजनों पर दबाव बनाया, तो मुन्ना दिव्या के साथ पुलिस के सामने हाजिर हो गया। चूंकि थाने में दिव्या के अपहरण का मामला दर्ज था, इसलिए पुलिस ने दिव्या की बरामदगी की। जबकि उसके अपहरण के आरोप में मुन्ना को गिरफ्तार कर लिया। दिव्या ससुराल से जो नकदी व जेवरात ले गई थी उसकी बरामदगी हो गई।
वारदात की वजह 
दिव्या और मुन्ना आपस में प्रेम करते थे। उनका इरादा शादी करने का था। लेकिन दिव्या के परिजनों ने उसकी शादी जबरन जितेंद्र के साथ कर दी। शादी के बाद दिव्या उपयुक्त अवसर की तलाश में थी। घर से निकल भागने की। वह हर हालत में मुन्ना के साथ शादी की डोर में बंधने को बेताब थी। उसे मौका तब मिला जब रिसेप्शन पार्टी के बाद दिन के थके-हारे ससुराल के सारे सदस्य गहरी नींद में थे। वह तड़के करीब पौने चार बजे ससुराल से निकल भागी। वहां से सीधा गुड़गांव मुन्ना के घर पहुंची जहां दोनों बतौर पति-पत्नी साथ रहने लगे।
लेकिन पुलिस टीम के दबाव पर उनका साथ अधिक दिनों तक नहीं रहा। वे दोनों पुलिस के हाथ आ गए। बहरहाल, दिव्या निर्मल छाया में है, तो उसका प्रेमी मुन्ना दिल्ली की तिहाड़ जेल में।