21 जून 2009

मासूम का दर्द

वहशी दरिंदे मासूम सोनी को हवस का शिकार बनाते रहे--यहां तक की हवस में अंधे होकर वो उसकी मासूमित को भी भूल गए। लेकिन किसी ने भी सोनी की दर्द भरी दास्तां जानने की कोशिश नही की। उसका बचपन कितना दुख भरा था। शायद उनके लिए तो ये मासूम महज एक इस्तेमाल की चीज थी जिसे जब चाहे इस्तेमाल कर ले। सोनी की कहानी में जितना दर्द है उससे कहीं ज्यादा बेबसी और लाचारी है। हर मोड पर बेबस थी लाचार थी -- पहले पिता का साया उठा तो फिर माँ ने भी साथ छोड दिया। कभी अपने बेगाने हो गए तो कभी बेगानों ने ही धोखा दे दिया। पिता की मौत और माँ के साथ छोड देने के बाद सोनी सडक पर आ गई वो सडक किनारे बस स्टैड पर रहने लगी। लेकिन वहां से गुजरने वाले हर शख्स की नजर इस मासूम पर पडी लेकिन किसी का भी हाथ मदद के लिये आगे नही आया। एक दिन मदद का हाथ आया -- तो उसने सोनी की दुनिया ही बदल दी। जिस्म की हवस मिटाने के लिए कुछ दरिंदे सोनी को अपने साथ ले गए।फिर उसके साथ वो किया जिसके बारे में मासूम इस उम्र में जानती तक नही थी। और हर रोज सोनी किसी ना किसी की हवस का शिकार बनने लगी। एक दिन विक्की नाम के लडके का हाथ मदद के लिये आगे आया। सोनी को लगा शायद अब उसकी जिंदगी में नया मोड आने वाला है।वो नर्क से बाहर निकल जाएगी मगर ऐसा नही हुआ--- विक्की सोनी को अपने घर ले आया --उसे शादी के सपने दिखाने लगा -- और फिर हर रोज वहीं होने लगा जिससे बचकर सोनी उस घर में आई थी। विक्की उसे हर रोज अपनी हवस का शिकार बनाने लगा।हर दिन उसके जिस्म से अपनी हवस की भूख मिटाता-- मासूम सोनी बेबस थी वो कुछ ना कर सकी -- बस हर जुल्म को सहती रही। शायद सोनी इसे अपनी किस्मत मान लिया था। जिंदगी के हर मोड पर सोनी बेबस होते हुए भी अपने कदम बढाती रही--- लेकिन अब सवाल खुद का नही उसकी कोख से जन्मे बच्चे का भी है भला बिन ब्याही माँ होने के समाज के ताने के साथ वो जिये तो कैसे जिये।