15 जून 2009

मां की मुजरिम

राजधानी में फिर एक बार माँ बेटी के रिश्ते पर सवाल उठे है। एक बेटी ने जन्म देने वाली माँ को ऐसे जख्म दिए जिसके बारे मे किसी ने सोचा भी नही होगा। उस बेटी ने अपनी माँ को पूरे दो साल तक घर में बंधक बनाकर रखा-- वो भी दौलत की खातिर---वो दौलत की खातिर माँ के मायने ही भूल बैठी। माँ तुम सबसे प्यारी हो -- तुमने मुझे जन्म दिया--- मेरा ख्याल रखा -- मुझे अपने आंचल की छांव दी --एक बेटी के लिए माँ के मायने क्या होते है उससे ज्यादा कोई नही जानता--- मगर राजधानी दिल्ली में तो....एक और बेटी ने इस रिश्ते के मायने बदल दिए। दरअसल दिल्ली के पश्चिम विहार इलाके मे रहने वाली संतोष के साथ जो कुछ हुआ वो दिल दहला देने वाला है--- संतोष की बेटी नीलम पहले तो अपनी माँ को साथ रखने के बहाने ले गई और बाद में उसे प्रताडित करने लगी। वजह थी पैसो की चाह-- संतोष के नाम पश्चिम विहार में एक कोठी थी। नीलम ने धोखे से कुछ कागजात पर साईन करा लिए-करीब दो साल पहले नीलम.... अपनी माँ को, अपने ससुराल पंजाब के भटिंडा शहर ले गई। बाद में नीलम की पति की मौत हो जाती है। पति को खोने के बाद नीलम की दोस्ती राजीव नाम के एक युवक से हो जाती है। फिर शुरु होता है लालच का खेल...और दोनो मिलकर दे देते है संतोष को काली कोठरी की कैद। दो साल बीतने को हुआ तो उन्हें दिल्ली ले आए----- लेकिन इस बार इनकी किस्मत साथ ना दे पाई
संतोष को जब दिल्ली लाया गया तो इसका पता उसके बेटे को चल गया --- सितेन्दर ने मामले की जानकारी पश्चिम विहार थाना को दी--- और पुलिस की मदद से अपनी मां को इस कोठी से छुडाया। पुलिस ने बुजुर्ग संतोष की शिकायत दर्ज कर ली है। बुजुर्ग इतनी सहमी हुई है कि.....अभी भी बेटी के दिए दर्द को, भूल नही पाई है।
आखिर क्या हो गया है हमारे समाज को.....क्यों बदलने लगे हैं रिश्तें...ये कुछ ऐसा सवाल है जिनका जबाब हमीं को ढूंढना है। जिन्दगी के आखिरी पडाव पर पहुँची संतोष को अपनी ही संतान से ऐसा दर्द मिलेगा--- सुनकर ही दिल सहम जाता है।