25 फ़रवरी 2010

पुलिस वाले का मर्डर

मुर्दा इंसान को पुलिस कैसे जिंदा करती है ये कोई इलाहाबाद पुलिस से सीखे। इलाहाबाद के घूरपुर थाने में हिरासत में लिए गए 4 आरोपियों को इतना पीटा गया कि उनमें से दो की वहीं मौत हो गई। बाकी दो की हालत भी खासी गंभीर है। और जब जवाब देने की बारी आई तो पुलिसवालों ने मरे हुए दोनों लोगों को जिंदा बताने की कोशिश की।
जब खुद की गर्दन फंस रही हो तो इंसान क्या कुछ नहीं करता। लेकिन अपनी गर्दन बचाने के लिए इलाहाबाद पुलिस ने जो कुछ किया उसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। इलाहाबाद के घूरपुर पुलिस थाने के नौ पुलिसकर्मियों ने दो मुर्दा इंसानों को जिंदा तक कर दिया। जी हां ये सौ फीसदी सच है। खुद को बचाने के लिए पुलिस वालों ने दोनों मुर्दों को सरकारी अस्पताल में ज़िंदा बता कर.... इलाज के नाम पर भर्ती कराने की कोशिश की। इस काम में नाकाम रहने के बाद भी घूरपुर के थानेदार अफसरों और मीडिया को गुमराह करने की कोशिश करते रहे। उनके मुताबिक़ एक दो नहीं, बल्कि चारों आरोपी शराब पिए हुए थे और शराब की वजह से ही दो की मौत हुई ...जबकि तीसरा अस्पताल में ज़िंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है। हालांकि अफसरों के पहुंचने पर पोल खुलती देख थाने के सारे लोग अस्पताल से फरार हो गए। थाने के 9 पुलिस वालों के खिलाफ ह्त्या का मुकदमा दर्ज कर उन्हें सस्पेंड कर दिया गया है। और मामले की सीबीसीआईडी जांच की सिफारिश भी कर दी गई है।
मृतको के परिजनों की मानें तो थानेदार से लेकर दरोगा और सिपाहियों ने मिल कर चार लोगों को पेड़ों में बांध कर कई घंटे बुरी तरह पीटा। पिटाई से संजय निषाद और अशोक की थाने में ही मौत हो गई जबकि मुकेश की हालत बेहद नाजुक है। चौथे घायल देवानंद की चीख-पुकार और उसके चेहरे पर बैठे डर को देख कर ही सारी कहानी समझी जा सकती है।
घूरपुर पुलिस पर आरोप ये भी है कि उसने जिस मामले में इन चारों को गिरफ्तार किया, उससे इनका कोई लेना-देना ही नहीं है। जिस बियर शॉप के पास थाने के एक सिपाही कमलेश पांडे पर फायर किया गया ... वहां ये लोग सिर्फ मौजूद भर थे। जबकि पुलिस इन लोगों को पीट कर इनसे जुर्म कबूल कराना चाहती थी। चाहे जो हो... लेकिन हिरासत में लेकर इस कदर पीटने का हक पुलिस को किसने दिया की किसी की मौत हो जाए।

कोई टिप्पणी नहीं: