05 सितंबर 2010

ऐसी है लक्ष्मी सहगल

उम्र ढलती गई.. शरीर पर झुर्रियां पड गई..लेकिन हौंसले कमजोर नहीं हुए.. 87 साल की उम्र में भी वही जोश और जुनून बना रहा.. जो कभी जवानी में हुआ करता था.. जी हां हम बात कर रहे हैं.. डॉ. लक्ष्मी सहगल की..जिन्होंनें मजबूत इरादों के साथ हालात का न केवल डटकर सामना किया..बल्कि बुलंदियों को छुआ .. और सफलताओं के नये नये आयम खडे किए.. लक्ष्मी सहगल ने जहां विदेश में जाकर डॉक्टरी पेशे में खूब नाम कमाया वहीं द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आजाद हिन्द फौज में शामिल होकर सुभाष चन्द्र बोस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलीं.. आईये जानते है..लक्ष्मी सहगल के उन अनछुए पहलुओं को जिनसे हम आज तक हम अनजान रहे)
लक्ष्मी सहगल.. एक ऐसा नाम जिन्होंने भारत का नाम न केवल दुनिया में रोशन किया बल्कि हर दिन सफलताओं की नई मिसालें कायम कीं..... महिलाओं को अपने जोश और जुनून से प्रेरणा दी.. महिला होने पर गर्व का अहसास कराया..कुछ ऐसी ही शख्सियत हैं डॉ. लक्ष्मी सहगल.... लक्ष्मी जी 96 बरस की हो गई हैं.. लेकिन आज भी उनके जोश में कोई कमी नहीं.. लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्टूबर 1914 में मद्रास के जाने माने क्रिमिनल लॉयर डॉ. एस स्वामीनाथन के घर हुआ.. पिता लॉयर थे तो मां गृहणी.. तमिल परिवार में जन्मी लक्ष्मी बचपन से ही जुझारू रहीं.. कुछ नया करने की ललक हमेशा उनमें रही.. सेवा भावना मानों उनके मन-मस्तिष्क में कुट कुट कर भरी हो.. गरीबों की सेवा करने के उद्देश्य से लक्ष्मी स्वामीनाथन ने डॉक्टरी पेशे में आने का विचार किया.. इसके लिए लक्ष्मी ने कड़ी मेहनत कर पढाई पूरी की और उन दिनों मद्रास के मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया.. साल 1938 में लक्ष्मी की मेडिकल की पढाई पूरी हुई और उन्हें एमबीबीएस की डीग्री मिल गई.. दो साल तक सेवा भावना के साथ लक्ष्मी गरीबों की सेवा मे लगी रहीं.. लक्ष्मी गरीबों की हर संभव मदद करतीं.. उन्हें इसमें आत्म संतुस्टी मिलती...लोग उनके सेवा भाव को देखकर बड़े प्रभावित होते थे.... इसी दौरान लक्ष्मी को विदेश जाने का अवसर मिला.. 1940 में लक्ष्मी सिंगापुर चली गईं वहां भी उन्होंने अपने डॉक्टरी पेशे को जारी रखा.. सिंगापुर में उन्होंने एक क्लीनिक शुरू किया और वे भारतीयों की मदद करती रहीं.. खासकर उनकी जो गरीब तबके से ताल्लुक रखते थे.... लक्ष्मी मजदूर वर्ग का खास ख्याल रखती थीं.. द्वितीय विश्वयुद्ध के समय लक्ष्मी के जीवन में एक नया मोड आया.. राष्ट्रवादी आंदोलन से प्रभावित लक्ष्मी स्वामिनाथन डॉक्टरी पेशे से निकलकर आजाद हिंद फौज़ में शामिल हो गईं..
अब लक्ष्मी सिर्फ डॉक्टर ही नहीं बल्कि कैप्टन लक्ष्मी के नाम से भी लोगों के बीच जानी जाने लगीं ..सुभाष चंद्र बोस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सेना मे रहते हुए उन्होंने कई सराहनीय काम किये.. आजाद हिंद फौज में लक्ष्मी जी .. रानी रेजिमेंट की कैप्टन बनीं.. उनको बेहद मुश्किल जिम्मेदारी सौंपी गई थी.. उनके कंधों पर जिम्मेदारी थी फौज में महिलाओं को भर्ती होने के लिए प्रेरणा देना और उन्हें फौज में भर्ती कराना.. लक्ष्मी ने इस जिम्मेदारी को बखूबी अंजाम तक पहुंचाया....उनकी सुभाष चंद्र बोस के साथ ली गई ढेरों तस्वीरें आज भी उनकी पुरानी यादों को फिर से ताजा कर जाती हैं .. हालांकि उनका सुभाष चंद्र बोस के साथ बाहर निकलना कम ही होता था.. लक्ष्मी जी बताती हैं कि सुभाष जी की जान को हमेशा खतरा रहता था .. इसी वजह से वो सुरक्षा के मद्देनजर कोई लापरवाही नहीं बरतते थे.. 4 मार्च 1946 को आजाद हिंद फौज की हार के बाद ब्रिटिश सेना ने लक्ष्मी को गिरफ्तार कर किया हालांकि बाद में उन्हें रिहा भी कर दिया गया..
लक्ष्मी जी का कद हिन्दुस्तान के जुझारु लोगों में बढता जा रहा था.... उन दिनों घरवालों के कहने पर लक्ष्मी जी ने विवाह बंधन में बंधने का मन बनाया .. 1947 में लक्ष्मी ने कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह कर शादीशुदा जीवन की शुरुआत की.... लक्ष्मी स्वामीनाथन अब लक्ष्मी सहगल हो गईं.. लक्ष्मी सहगल ने हमेशा अमीरी गरीबी का विरोध किया...वो हमेशा सभी को एक समान नजरों से देखती .. शायद यही वजह थी कि सुभाष चंद्र बोस के आलोचक भी उनके मुरीद हो गए.. सेवा और सेना में अपनी हर संभव कोशिशों के बाद लक्ष्मी सहगल जी का 1971 में राजनीति की तरफ झुकाव हुआ.. लक्ष्मी सहगल को साल 1998 में पद्मविभूषण से सम्मानित भी किया गया.. लक्ष्मी सहगल हमेशा से मानती रही हैं कि व्यक्ति की कथनी और करनी एक होनी चाहिए.. साल 2001 में 87 साल की उम्र तक लक्ष्मी जी गरीबों की सेवा में लगी रहीं.. लेकिन अब जब वो 96 बरस की हो चुकी है तब भी उनके जुझारुपन और जोश में कोई कमी नहीं दिखती..
भले ही वक्त के साथ उम्र ढल रही हो.. नजरें कमजोर हो गई हों.. लेकिन उनकी पुरानी यादें आज भी न केवल उन्हें ताकत देती हैं बल्कि वो यादें हर नौजवान यूवक युवती के लिए एक मिसाल है... लक्ष्मी सहगल ने अपने जीवन में सफलताओं के इतनी मंजिलें कायम की हैं कि बताना और गिनाना मुश्किल है... हां अगर कुछ संभव है तो उनके जीवन से एक सीख लेना कि अगर हिम्मत और बुलंद हौंसले हो तो कोई भी मुकाम पाना मुश्किल नही होता..

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