29 अक्तूबर 2012

100 महिलाओं को खाना चाहता था, ये दरिंदा

न्यूयॉर्क।। यहां पुलिस ने अपने ही महकमें के एक अधिकारी को बेहद संगीन इल्जाम में गिरफ्तार किया है। इस अधिकारी पुलिस आरोप है कि ये अपने एक साथी के साथ मिलकर 100 महिलाओं को पकाकर खाने की साजिश रच चुका था। हालांकि, उनके इस खतरनाक मंसूबों की जानकारी समय रहते हो गई। इस पुलिस अधिकारी को गिरफ्तार कर लिया गया है। अमेरिका की फेडरल अथॉरिटीज के अनुसार उन्हें इसकी जानकारी उसके कम्प्यूटर से मिली थी।गुरुवार को मैनहट्टन फेडरल कोर्ट में पेश किए गए  न्यूयॉर्क पुलिस में तैनात गिलबर्टो वल्ले को महिलाओं की किडनैपिंग कर उनके अंगों को ओवन में पकाकर खाने की प्लानिंग करने का आरोप लगाया गया है। गिलबर्टो पर आरोप है कि उन्होंने अपने एक साथी के साथ मिलकर पहले महिलाओं को क्लोरोफार्म सुंघाकर बेहोश करने के बाद अपने 28 साल पुराने किचन में ले जाकर पकाने की योजना बनाई है। इसके लिए इस शख्स ने अपने किचन में एक बड़ा सा ओवन रखा हुआ था। पुलिस सूत्रों के अनुसार, गिलबर्टो के साथी को नहीं पकड़ा जा सका है, क्योंकि उसकी शिनाख्त नहीं हो पाई है।शुक्र की बात यह है कि अब तक दोनों किसी महिला को नुकसान नहीं पहुंचा पाए। पुलिस सूत्रों के अनुसार, गिलबर्टो ने एफबीआई को उसके इस प्लान की जानकारी सितंबर में मिली थी। वह अपने होम कम्प्यूटर से इस प्लान पर कई माह तक ई-मेल्स व मैसेजेस के जरिए चर्चा की। इसके लिए उसने बाकायदा 100 महिलाओं का पूरा डाटाबेस तैयार कर रखा था, जिन्हें वह अपना शिकार बनाना चाहता था। इस डाटाबेस में उसके शिकारों के नाम, फोटोग्राफ्स और पर्सनल डीटेल लिखे गए थे। उन्होंने इनकी किडनैपिंग के लिए किसी और शख्स को पैसे देने की बात भी इस प्लानिंग में लिख रथी थी।

22 अगस्त 2012

पुलिस गिरफ्त में प्यार के परिंदे


मोहब्बत करने वाले दो दिल भले ही अपने प्यार को लाख छुपाएं..भले ही जमाने से हजार बार नजरें बचाएं..लेकिन जमाने को इसकी भनक लग ही जाती है..लेकिन आज हम आपके सामने एक ऐसी प्रेम कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं..जो वाकई में बेहद अजीब है..बिजनौर पुलिस गजराम नाम के युवक को उसकी प्रेमिका सोनी के साथ गिरफ्तार किया है। हैरत की बात तो ये रही कि दोनों को एक दूसरे से प्यार जेल की सलाखों के पीछे हुआ..और जल्द ही दोनों के लिए दूरियां दुखदायी हो गई..गजराम और सोनी ने एक होने का मन बना लिया..और बिजनौर जिला जेल की सलाखों से फरार हो गए..बिजनौर पुलिस के मुताबिक गजराम और सोनी पर 10-10 हजार रूपये का इनाम भी घोषित कर रखा था..लेकिन बीते तीन साल से दोनों का कोई सुराग नहीं मिला..लेकिन पुलिस को मिली एक गुप्त चिट्ठी ने दोनों को पुलिस के शिकंजे में ला खड़ा किया..पुलिस के मुताबिक जेल से फरार होने के बाद दोनों दिल्ली में रह रहे थे..और दोनों ने जेल से भागने के दो महीने बाद ही शादी कर ली थी..पुलिस के मुताबिक सोनी अपने पति की हत्या के इल्जाम में जेल में बंद थी..वहीं गजराम पर भी हत्या और अपहरण का इल्जाम लगा था..दोनों की मुलाकात जेल में ही हुई..और दोनों ने एक होने का फैसला कर लिया है..दोनों 28 मई 2009 को बीमारी का बहाना बनाकर अस्पताल में भर्ती हो गए,और फिर पुलिसकर्मियों को चकमा देकर फरार हो गए..जिसके बाद से पुलिस दोनों की तलाश में जुटी थी..

21 जुलाई 2012

श्मशान में मुर्दों से पनाह




मनोज कुमार|| नई दिल्ली
फोटो-वीके शर्मा
 वैसे तो पुलिस के लिए हर वारदात एक चुनौती होती है, और वक्त रहते वारदात को सुलझाना पुलिस की एक अहम कोशिश। वारदात जो देखने में तो काफी साधारण लगती हैं, लेकिन केस की गहराई में उतरने पर कई चौंकाने वाले सच सामने आते हैं। ऐसा ही एक सनसनीखेज और बेहद दिलचस्प केस बीते दिनों वेस्ट दिल्ली पुलिस की तफ्तीश में सामने आया, जब पुलिस ने एक शातिर बदमाश को धर दबोचा। बदमाश ने खुलासा किया कि वो खुद को पुलिस से बचाने के लिए मुर्दों का सहारा लिया करता था। ये शातिर वारदात के बाद श्मशान में रात गुजारता था। आखिर कौन था ये शातिर और कैसे श्मशान में रातें गुजारता था ? इस पूरी पड़ताल के लिए इस खास रिपोर्ट को पढिए। 
पश्चिमी दिल्ली में चोरी, लूटपाट की वारदात
दिल्ली के पश्चिमी जिले में जुलाई 2012 का महीना शुरू होते ही, अचानक वाहन चोरी, और चैन स्नेचिंग की वारदातों में इजाफा हुआ, एक के बाद एक अंजाम दी जा रही वारदातों को लेकर खुद पुलिस अधिकारी भी हैरान थे। वारदातों को सुलझाना पुलिस के लिए एक चुनौती बन चुका था। लिहाजा पुलिस ने एक विशेष जांच टीम का गठन किया और अपराधियों की गिरफ्तारी के लिए कोशिशें तेज कर दी। इस दौरान पुलिस ने उन सभी पूर्व अपराधियों की एक फहरिस्त तैयार की जो पहले किसी ना किसी वारदात में शामिल रहे थे और इन दिनों इलाके में मौजूद हैं। सभी से बारी बारी से पूछताछ और खुफिया जानकारी हासिल करने के बाद भी पुलिस को कामयाबी नहीं मिली। लेकिन इन तमाम वारदातों को जल्द सुलझाना पुलिस के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था।
आरोपी की गिरफ्तारी
वी. रंगनाथन, एडिशनल सीपी, पश्चिमी दिल्ली
दिनांक 11 जुलाई 2012, को पश्चिमी जिले की तिलक नगर थाना पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि वाहन चोरी, चेन स्नैचिंग की वारदात में शामिल रहा एक शख्स तिलक नगर थाना इलाके में मौजूद है। इस जानकारी के मिलते ही तिलक नगर थाना पुलिस सक्रिय हो गई। तिलक नगर थाने में तैनात हेड-कांस्टेबल दीप चंद, कांस्टेबल रेशम सिंह, धर्मवीर को थाना प्रभारी सुरेंद्र संधु के निर्देशानुसार सुभाष नगर पुलिस पिकेट पर चैकिंग के लिए तैनात किया गया, उस वक्त तकरीबन शाम से साढे चार बजे थे। इसी दौरान मुखबिर ने मोटरसाइकिल से आ रहे एक शख्स की तरफ इशारा किया, जब युवक को चैकिंग के लिए रोका गया, जब हेड कांस्टेबल दीप चंद ने युवक से बाइक से संबंधित कागजात की मांग की तो युवक सकपका गया। पुलिसकर्मी समझ गए कि वाकई मामला संदिग्ध है। पुलिस के सवालों में फंसता दिख, युवक ने मौके से फरार होने की नाकाम कोशिश की, युवक को बाइक से  भागता देख कांस्टेबल रेशम सिंह ने युवक का पीछा किया और कुछ ही दूरी पर उसे पकड़ लिया। जिसके बाद पुलिस टीम आरोपी को तिलक नगर थाना ले आई, और पूछताछ का सिलसिला शुरू किया।
दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में आरोपी हरप्रीत सिंह उर्फ हैप्पी
पुलिस की तहकीकात
आरोपी के बरामद की गई चोरी की बाइक
पुलिसिया पूछताछ में युवक की पहचान हरप्रीत सिंह उर्फ हैप्पी सिंह पुत्र सुखदेव सिंह पता मकान संख्या 18, गोपाल नगर, अशोक नगर दिल्ली के रूप में हुई। साथ ही इस बात का खुलासा भी हुआ कि जिस बाइक से हरप्रीत सिंह तिलक नगर इलाके में घूम रहा था उसे कुछ दिन पहले ही ख्याला थाना इलाके से चुराया गया था। इसके अलावा पुलिस की सख्ती के आगे हरप्रीत सिंह ने ये भी खुलासा किया कि बीते दिनों वेस्ट दिल्ली के कई इलाकों में हुई वाहन चोरी के केस में वो शामिल रहा है, पुलिस ने आरोपी की निशानदेही पर तीन मोटरसाइकिल (DL-9S-AK-1667 ), (DL-4S-ND -0823), DL-4S-NA-2264 ) को बरामद कर लिया, पुलिस को आरोपी के पास से एक देसी कट्टा भी बरामद हुआ, जिसका इस्तेमाल हैप्पी सिंह वारदात के वक्त करता था। हरप्रीत सिंह की गिरफ्तारी के साथ ही पुलिस ने वाहन चोरी की छह वारदातों को सुलझाने का दावा किया।
श्मशान में लेता था पनाह 
पुलिस के लिए चुनौती बन चुका हरप्रीत सिंह बेहद शातिर अपराधी था, पुलिस के मुताबिक आरोपी वाहन चोरी या फिर चेन स्नैचिंग की वारदात को अंजाम देकर श्मशान घाट में पनाह लेता था। वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी श्मशान घाट में जाकर सोया करता था, इसके पीछे वजह थी कि पुलिस उस तक ना पहुंच सके। पुलिस ने ये भी खुलासा किया कि आरोपी अघोरी बाबाओं का भक्त था और उसे लगता था कि श्मशान में वो सबसे ज्यादा महफूज है, जहां उस तक पुलिस नहीं पहुंच सकती। लेकिन पुलिस की आंख में धूल झोंककर इलाके में वारदात अंजाम देने वाले इस शातिर अपराधी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
 आरोपी के खिलाफ दर्ज केस
1.            FIR No. 31/12, U/S- 379 IPC,       थाना ख्याला, दिल्ली.
2.            FIR No. 7/12, U/S- 379/411 IPC,  थाना हरीनगर, दिल्ली
3.            FIR No. 237/11, U/S- 379 IPC,     थाना विकास पुरी, दिल्ली
4.            FIR No. 231/11, U/S- 379 IPC,     थाना राजौरी गार्डन, दिल्ली
5.            FIR No.452/10, U/S- 379 IPC,      थाना हरीनगर, दिल्ली.
6.            FIR No. 338/10, U/S- 379 IPC,     थाना हरीनगर, दिल्ली


गिरफ्तारी से सुलझाए गए केस

1.         FIR No.143/12 U/S 379 IPC   थाना ख्याला, दिल्ली.
2.         FIR No.248/12 U/S 379 IPC थाना तिलक नगर, दिल्ली
3.         FIR No.261/12 U/S 379 IPC थाना तिलक नगर, दिल्ली
4.         FIR No.269/12 U/S 25-54-59 Arms Act थाना तिलक नगर, दिल्ली
5.         FIR No.250/12 U/S 392/34 IPC थाना राजौरी गार्डन, दिल्ली

17 जुलाई 2012

रंजिश में दर्जी की हत्या, आरोपी फरार


मेरठ|| मंगलवार को मेरठ के इंचौली थाना इलाके में हुई गोलीबारी से पूरा इलाका दिल उठा..बाइक सवार तीन बदमाशों ने नंगला शेखू गांव में टेलर का काम करने वाले संजय नाम के शख्स को निशाना बनाया था..बदमाशों ने एक के बाद एक दनादन गोलियां दाग दी..संजय को तीन गोली लगी और उसकी मौके पर ही मौत हो गई..वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी मौके से फरार हो गया..वारदात से गुस्साये स्थानीय लोगों ने जमकर हंगामा किया..हालांकि मौके पर पहुंचे पुलिस के आलाधिकारियों ने लोगों को शांत कराया और मामले में उचित कार्रवाई का आश्ववासन दिया..पुलिस की माने तो इस हत्याकांड में शक्ति नाम के शख्स का हाथ हो सकता है..जिसकी पुलिस तलाश कर रही है..
पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है..पुलिसिया तफ्तीश में पता चला है कि कुछ साल पहले शक्ति नाम के युवक के पिता की हत्या कर दी गई थी..जिसमें संजय का नाम भी सामने आया था..हालांकि अदालत में चली कार्रवाई के बाद संजय को बरी कर दिया गया था..माना जा रही है कि इसी रंजिश के चलते संजय के कत्ल की वारदात को अंजाम दिया गया..
पुलिस इस हत्याकांड से जुड़े, हर पहलू की बारिकी से छानबीन कर रही है..वही पुलिस को इस हत्याकाड में संदिग्ध रहे शक्ति की भी तलाश है..जिसके बाद ही हत्या की वजह का पुख्ता तौर पर खुलासा हो सकेगा..

15 जुलाई 2012

धर्मपिता की शिकार बनी सबीना


विवेकानंद चौधरी /नई दिल्ली
किसी भी सभ्य समाज में बेटी व बहू को समान व सम्मानजनक दर्जा प्राप्त है। दोनों घर की इज्जत होती हैं और उन्हें लक्ष्मी का दर्जा दिया गया है। लेकिन कलियुग के इस दौर में सांस्कृतिक विरासत में मिली उनकी अस्मिता  कलंकित होती प्रतीत हो रही है। उसके लिए निःसंदेह छद्म वेष में समाज में छिपे निकृष्ट मानसिकता वाले वैसे तत्व जिम्मेदार हैं, जिनके लिए सामाजिक बंधन व मान-मर्यादा का कोई औचित्य नहीं है। विशेषकर, जब घर का कोई सदस्य घर की इज्जत पर धावा बोले, तो अपराध क्षमा योग्य नहीं रह जाता। हाल की एक घटना में पिता समान एक कामांध ससुर ने अपनी बहू को इसलिए मौत के घाट उतार दिया, क्योंकि बहू ने उसकी अंकशायिनी बनने से इंकार कर दिया था। पूरी कहानी जानने के लिए पढि़ये यह खास रिपोर्ट।
सबीना का कत्ल
दक्षिणी दिल्ली स्थित नेबसराय थाने की पुलिस को रात्रि करीब साढ़े नौ बजे सूचना मिली, ‘‘सलीम का मकान, एल-1 ब्लाक, संगम विहार में एक युवती का कत्ल हो गया है।’’ सूचना मिलने पर थाने के एसएचओ इंसपेक्टर जरनैल सिंह थोड़े ही समय बाद दल-बल के साथ मौके पर पहुंच गये। लाश रक्त-रंजित अवस्था में मकान के ग्राउंड फ्लोर स्थित एक कमरे में फर्श पर पड़ी थी। हत्या वहशियाना अंदाज में की गई थी। मृतका के पेट, सिर व सीने पर किसी तेजधार हथियार के करीब दर्जन भर जख्म थे। मौके पर मौजूद मो साबिर नामक एक युवक ने लाश की शिनाख्त अपनी पत्नी 25 वर्षीया सबीना के रूप में की। पूछताछ में पता चला की पेशे से पेंटर मो साबिर बतौर किराएदार करीब दो माह से पत्नी व बच्चों के साथ उस मकान में रह रहा था। जबकि उसका पिता 48 वर्षीय मो अरशद अली मकान के प्रथम तल पर अकेला रहता था। उसकी पत्नी उससे अलग रहती थी।
मो साबिर के परिवार में उसके व सबीना के अलावा, उनकी दो साल की एक बिटिया थी। सबीना एक घरेलू महिला थी। बकौल मो साबिर, वह उस दिन शाम करीब सात बजे एक रिश्तेदार के घर गया था, जहां से रात्रि करीब सवा नौ बजे घर लौटा। वह जब कमरे में पहुंचा, तो सबीना इस हाल में पड़ी थी। जबकि बिटिया बिस्तर पर बैठी सिसकियां भर रही थी। साबिर कुछ पल के लिए तो बिल्कुल जड़वत हो गया। फिर उसने किसी तरह अपने को संभाला। उसके बाद उसने फोन कर घटना की सूचना पुलिस कोे दी, तो मौके पर पुलिस पहुंची थी। मो साबिर के अनुसार, घर से कोई सामान गायब नहीं था। उसने किसी पर शक की से इंकार किया। उसकी हालिया या पुरानी कोई दुश्मनी भी किसी के साथ नहीं थी। ऐसे में इस मामले को हल करना पुलिस के लिए आसान काम नहीं था। बहरहाल इंस्पेक्टर जरनैल सिंह ने लाश और घटना-स्थल की सभी जरूरी औपचारिकतायें पूरी करने के बाद मो साबिर के बयान पर इस बाबत थाने में मुकदमा दर्ज कर लिया। जबकि शव को पोस्टमार्टम के लिए मुर्दाघर भेज दिया।
मिला कत्ल का सुराग
पूछताछ के दौरान मकान मालिक मो सलीम ने बताया कि उसने रात्रि करीब पौने नौ बजे साबिर के पिता अरशद अली को उसके कमरे से निकलकर बेतहाशा भागते देखा था। इस जानकारी के बाद पुलिस ने साबिर को टटोला, तो अरशद अली पर पुलिस का शक गहरा गया। साबिर के अनुसार, सबीना के प्रति उसके पिता की नीयत में खोट था। वह कई बार सबीना के साथ छेड़छाड़ कर चुका था। फिर पुलिस ने अरशद अली की खोज की, तो वह गायब मिला। इससे पुलिस का शक यकीन में बदल गया।
ससुर गिरफ्तार
पुलिस ने इलेक्ट्रिोनिक सर्विलांस की मदद से अरशद अली को उस समय धर-दबोचा, जब वह एक जानकार से फोन पर बात कर उससे मिलने उसके घर पहुंचा। थाने में लाकर जब उससे मनोवैज्ञानिक तरीके पूछताछ की गयी, तो उसने गुनाह कबूल कर लिया। बकौल अरशद अली, सबीना की हत्या उसने अकेले की थी। अपराध-स्वीकारोक्ति के साथ ही उसे गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने उसकी निशानदेही पर वारदात में इस्तेमाल चाकू बरामद कर लिया।
बहू के प्रति नीयत में खोट
शुरू से ही चरित्र का कमजोर अरशद अली अपनी हरकतों के कारण कई बार पिट चुका था। जानकार उसे अपने  घर आने देना पसंद नहीं करते थे। वह अपनी कमाई का अधिकांश हिस्सा रंगरेलियां मनाने में खर्च कर देता था। परिवार की चिंता उसे तनिक भी नहीं थी। उसकी इन्हीं हरकतों से तंग आकर पत्नी उससे अगल हो गयी थी। अब उसकी नजर सबीना पर थी। उसने अंकशायिनी बनाने की चाहत में उसे पहले बहलाया-फुसलाया। जब सबीना उसके बहकावे में नहीं आई, फिर धमकाया। बावजूद सबीना पर कोई असर नहीं पड़ा, तो उसने तीन-चार बार उसके साथ जबरन संबंध बनाने की कोशिश की। लेकिन सबीना के जबर्दस्त विरोध के कारण वह हर बार नापाक मंसूबे में नाकामयाब रहा। ऐसी बात नहीं थी कि साबिर इन बातों से अनजान था। सबीना उसे सारी बात बताती थी। लेकिन लोक-लाज के भय से वह पिता से उलझने के बजाए, उसे धमका कर रह जाता।
जब अरशद अली के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया, तो परेशानी से निजात पाने के लिए साबिर ने पिता से अलग रहने का मन बना लिया। उसने करीब दो माह पहले सलीम का मकान किराये पर ले लिया। लेकिन अरशद अली ने यहां भी सबीना का पीछा नहीं छोड़ा। करीब एक माह बाद वह भी उस मकान में रहने आ गया। उसने अलग कमरा लिया था। हालांकि अब साबिर व सबीना अरशद अली से कोई वास्ता नहीं रखते थे। लेकिन अरशद अली उनसे किसी न किसी बहाने अक्सर बातचीत करने की कोशिश करता। वह सबीना को अंकशायिनी बनाने की चाहत में बौरा गया था।
कत्ल को अंजाम
हर कोशिश के बाद भी अरशद अली को अपनी दाल गलती नजर नहीं आयी, तो उसके मन में सनक सवार हो गयी। उसे परिणाम की चिंता नहीं थी। अपने प्रति सबीना की बेरुखी अब उसके दिल में शूल की तरह चुभ रही थी। घटना के दिन शाम के समय अरशद अली कमरे पर था। वह साबिर के जाने के थोड़ी देर बाद मौका देखकर उसके कमरे में आ गया। उसे देखकर सबीना घबराई, तो उसने चाहत भरी नजरों से उसके चेहरे की तरफ देखा, ‘‘शायद तुम मेरे से नाराज हो। तभी मेरे से दूर रहती हो।’’ वह हौले से मुस्कराया, ‘‘बहू, मैं कोई गैर नहीं हूं, तुम्हारे पति का बाप हूं। जैसे तुम्हारे लिए साबिर है, वैसा ही मैं हूं। फिर मेरे से दूरी...।’’ सबीना खामोश रही। इतने में अरशद अली ने अंदर से कमरा बंद कर, सबीना को बाहूपांस में भर लिया, ‘‘बहू, आज इंकार मत करो...।’’ सबीना       कसमसाई, ‘‘मेरे पर रहम करो। मैं आपकी बहू हूं।’’ वह फफक पड़ी, ‘‘वरना मैं आत्महत्या कर लूंगी।’’ इस पर    अरशद ने प्यार का मरहम लगाते हुए उसे समझाया, ‘‘पागल मत बनो। मैं तुम्हें दुनिया की हर खुशी दूंगा, बस एक बार मेरी तमन्ना पूरी कर दो।’’ सबीना बिफर पड़ी, ‘‘बेहतर होगा कि तुम मुझे छोड़ दो। वरना शोर मचाकर पास-पड़ोस को एकत्र कर लूंगी।’’ उसने उसके बंधन से मुक्त होने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब रही। फिर सबीना आपा खो बैठी, ‘‘कमीने, तुम मुझे छोड़ते हो, या...।’’ उसने धमकाया, ‘‘बहुत हो गया। अब तुम्हें जेल भिजवाकर ही दम लूंगी।’’ इतना सुनते ही अरशद के चेहरे पर सहसा कुटिल मुस्कान उभर आई,‘‘कोई बात नहीं, जेल भेज देना।’’ उसने बंधन को मजबूत करते हुए उसकी आंखों में झांका, ‘‘मैं तुम्हारी खातिर जेल भी जाने को तैयार हूं।
सबीना ने अपना बायां पैर पूरी ताकत से उसके दोनों जांघों के बीच दे मारा, जिससे अरशद कराहते हुए फर्श पर गिर पड़ा। मौका देख सबीना बाहर जाने के लिए दरवाजे की तरफ लपकी, तो अरशद ने उसे पकड़ लिया। अब अरशद के चेहरे पर हैवानियत झलक रही थी। उसने पुन‘ उसके साथ मनमानी करने की कोशिश की। जब कामयाबी नहीं मिली, तो तैश में आकर उसने चाकू से सबीना के जिस्म पर कई प्रहार कर डाले, जिससंे सबीना   जख्मी हालत में फर्श पर गिर पड़ी। उसके बाद अरशद सावधानी पूर्वक वहां से निकल भागा। लेकिन संयोगवश सलीम की नजर उस पर पड़ गयी, जो पुलिस के लिए सुराग बन गया। अरशद अली पकड़ा गया।
फिलहाल अरशद अली दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है।
                                                                                   कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 


‘जरायमपरी’ का राज


पुष्पा और सोनिया का रूप-लवण्य आकर्षक, लेकिन ताल्लुक साधारण परिवार से था। दोनों पड़ोसी व समान विचार-धारा की थीं। उनकी हसरतें बड़ी थी। उन्होंने ऐशो-आराम की जिंदगी की चाहत में वह रास्ता अख्तियार किया, जिसे जरायम कहते हैं। दोनों ने मात्र छह माह के अंदर बेहद शातिराना अंदाज में कई सनसनीखेज वारदातों को अंजाम देकर दिल्ली पुलिस की नींद हराम कर दी, लेकिन पुलिस की नजरों से बची रहीं। उनके निशाने पर थे मुख्य रूप से व्यवसायी वर्ग। वे शिकार को मिठास भरे स्वर व मोहक अदाओं से प्रभावित कर पहले विश्वास में लेतीं। फिर उसे बेहद चतुराई पूर्वक कोई नशीली चीज खिलाकर लूट लेतीं। वारदात के दौरान उनका पहनावा, बातचीत का अंदाज व चाल-ढ़ाल इस कदर मनमोहक और विश्वसनीय प्रतीत होता कि शिकार उन्हें पढी-लिखी, सुसंस्कृत और अच्छे घराने की समझ बैठने की भूल कर बैठता जिसका फायदा दोनों उठा लेतीं।  सबसे दीगर बात यह थी कि दोनों हर वारदात के बाद सीधा तीर्थयात्रा पर निकल जातीं। इसके पीछे मुख्य मकसद था कि उन पर प्रभु की कृपा बनी रहे, तो पुलिस की नजरों से बची रह सकें। धंधे में ‘जरायमपरी’ के नाम से मशहूर पुष्पा हाल ही में पुलिस के हत्थे चढ़ी, तो हुआ उनके गोरखधंधे का खुलासा। पूरी कहानी जानने के लिए घटना के अतीत में जाना होगा।
व्यवसायी बना लूट का शिकार
मैरेज ब्यूरो चलाने वाले मनमोहन सिंह वालिया का दफ्तर करोल बाग में बैंक स्ट्रीट पर है। दोपहर के वक्त वालिया दफ्तर में बैठे थे, तभी संभ्रांत सी दिखनेवाली दो युवतियां पहुंची, ‘‘शायद मैं गलत नहीं, तो यह वालिया साहब का दफ्तर है?’’ उनमें से एक ने हल्की मुस्कराहट के साथ उनके चेहरे की तरफ देखा। वालिया मुस्कराये, ‘‘जी हां, मेरा नाम वालिया है।’’ उन्होंने औपचारिकतावश उन्हें सामने पड़ी कुर्सियों पर बैठने का इशारा किया, तो दोनों युवतियां बैठ गईं। वालिया ने सवालिया निगाह से उनकी तरफ देखा, ‘‘जी कहिए, कैसे आना हुआ?’’ साथ ही उन्होंने यह भी पूछा, ‘‘मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं ?’’ इस पर एक युवती ने अपना परिचय मीना, निवासी मॉ़डल टाउन (दिल्ली) के रूप में दिया। जबकि दूसरी के बारे में बताया कि उसकी छोटी बहन रीना थी। मीना ने वालिया से कहा कि उन्हें भाई की शादी के लिए एक लड़की की तलाश है। तो वालिया ने कहा, ‘‘मैडम, मैं आप जैसों की सेवा के लिए बैठा हूं। आप रजिस्ट्रेशन करा लो।’’ उन्होंने भरोसा दिया, ‘‘मात्र पंद्रह दिनों के अंदर सुयोग्य लड़की तलाश दूंगा।’’मीना ने वालिया को दो सौ रुपया देकर रजिस्ट्रेशन करा दिया। बातचीत के दौरान वालिया को मीना का चेहरा तनिक जाना-पहचाना सा लगा। उन्होंने पूछ लिया, ‘‘मैडम, शायद पहले हम मिल चुके हैं, आपका चेहरा जाना-पहचाना सा लग रहा है।’’ तो मीना चैक पड़ी। उसने संभलते हुए सफाई दी, ‘‘हो सकता है, लेकिन मुझे घ्यान नहीं।’’ वह मजाक भरे स्वर में बोली, अधिकांश लोग ऐसा कहते हैं।   शायद मेरे हमशक्ल बहुतेरे हैं...। वालिया मुस्करा पड़े। तभी रीना ने अपने टिफिन बॉक्स से खीर निकालकर वालिया को दी। वालिया ने जब उनसे खीर खाने के लिए कहा, तो उन्होंने सोमवार का व्रत बताकर मना कर दिया। अब तक वालिया उनसे घुल-मिल गये थे। थोड़ी देर बाद युवतियां उन्हें काजू की बर्फी खिलाने अजमल खां रोड पर ले गईं, जहां वालिया को चक्कर आने लगे। उन्होंने यह बात युवतियों को बतायी, तो दोनों एक ऑटो करके उनके साथ दफ्तर आ गईं। दफ्तर में दाखिल होने के साथ ही वालिया अचेत हो गये। अगली सुबह करीब छह बजे उन्हें होश आया। वह अपने दफ्तर में फर्श पर पड़े हुए थे। जबकि दफ्तर में रखे एक लाख 35 हजार रुपये गायब थे। वालिया को सारा माजरा समझ में आ गया। उन्हें समझते देरी नहीं लगी कि दोनों युवतियों ने उन्हें नशीली खीर खिलाकर इस वारदात को अंजाम दिया है। उन्होंने फोन कर घटना की सूचना पुलिस को दी, तो थोड़े समय बाद करोल बाग थाने की पुलिस मौके पर पहुंच गई। पुलिस उन्हें लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉसेड ले गई जहां उनका इलाज चला। उन्होंने घटना की लिखित शिकायत करोल बाग थाने में दे दी।
पीडि़त को मिला सुराग, आरोपी पकड़ा
मामले में पुलिस की लापरवाही से परेशान मनमोहन सिंह वालिया को सप्ताह बाद सहसा ध्यान आया कि जिस युवती ने उन्हें मीना नाम बताया, वह करीब चार माह पहले महिंद्रा पार्क इलाके में मैरिज ब्यूरो चलाने वाली बेबी के साथ उनके दफ्तर में आई थी। वालिया, बेबी के पास पहुंच गये, लेकिन आपबीती उसे नहीं बताकर, उस युवती के बारे में उससे बातचीत की जो उसके साथ उनके दफ्तर में आई थी। उन्हें बेबी से पता चला कि उस युवती का नाम पुष्पा है, जो जहांगीरपुरी में रहती है। वालिया, पुष्पा के घर पहुंचे, तो वह तीर्थयात्रा पर गई मिली। पूछताछ में पता चला कि वह देर रात दिल्ली लौटेगी। इस जानकारी के बाद वालिया पुष्पा के घर के पास स्थित एक पार्क में सावधानी पूर्वक उसके इंतजार में बैठ गये। रात्रि में पुष्पा घर लौटी, तो वालिया ने पुलिस नियंत्रण कक्ष को फोन कर उसे पकड़वा दिया। पुष्पा ने वारदात में संलिप्त होने की बात कबूल कर ली। जबकि उसने वारदात में शामिल दूसरी युवती का असली नाम सोनिया बताया। बकौल पुष्पा, सोनिया जहांगीरपुरी में रहती थी। दोनों वारदात के बाद सीधा तीर्थयात्रा पर निकल गई थीं, जहां से साथ दिल्ली लौटी थीं। इस जानकारी के बाद वालिया पुलिस को साथ लेकर सोनिया के घर पहुंचे, तो उसके दरवाजे पर एक बड़ा सा ताला लगा हुआ था। सोनिया पुलिस के हाथ नहीं आई।
जरायम ने दिखाया वारदात का डगर
गिरोह की मास्टरमाइंड 35 वर्षीया पुष्पा थी। जबकि धंधे में उसकी शार्गिद 22 वर्षीया सोनिया हर वारदात में उसका साथ देती। दोनों अच्छी सहेलियां थी। उनके बीच सगी बहनों सा प्यार था। दोनों ने भौतिक सुख-सुविधा के लिए शार्ट-कट रास्ते से मनमाफिक पैसा कमाने की ललक में जरायम का पेशा अपनाया। वे धंधे में हर बार अलग नामों का इस्तेमाल करतीं। उन्हें साधारण परिवार में जन्म लेने का बेहद मलाल था। जबकि उनका मानना था कि अगला जन्म किसी ने नहीं देखा, इसलिए दोनों इस जन्म में ही सारी हसरतें पूरी कर लेना चाहती थीं। उनके अंदर एक  मुख्य खासियत थी, जो कोई एक बार मिल लेता, वह उनसे प्रभावित हो जाता। इसका फायदा शिकार फांसने में उन्हें मिलता।
वारदात का तरीका
गिरोह के निशाने पर मुख्य रूप से व्यवसायी वर्ग था। दोनों रूपसियां पहले शिकार को चिन्हित करतीं। फिर उपयुक्त अवसर देखकर किसी बहाने उसके दफ्तर में तब पहंुचती, जब वह अकेला होता। वे व्यवसायी को पहले   विश्वास में लेतीं। उसके बाद उसे खाने-पीने के किसी समान में कोई नशीली चीज खिलाकर अचेत कर देतीं। फिर वारदात को अंजाम देने के बाद सावधानी पूर्वक वहां से निकल जातीं। होश में आने पर शिकार को सारा माजरा समझ में आता, तो सिवाए पछतावा के उसके पास कुछ नहीं रहता।
जरायम के साथ ईश्वर में आस्था
पुष्पा और सोनिया जरायम के पेशे में जरूर थीं, लेकिन ईश्वर के प्रति उनकी अगाध आस्था थी। दोनों अक्सर साधु-संतो के प्रवचनों में शरीक होतीं, रोजाना पूजा-पाठ व  दान-पुण्य करतीं और हर वारदात के बाद सीधा तीर्थयात्रा पर निकल जातीं। पड़ोसी व जानकारों की नजरों में दोनों की छवि धार्मिक, परोपकारी, सभ्य व सुसंस्कृत युवतियों की थी। पुष्पा की गिरफ्तारी के बाद जब उनके असलियत सामने आई, तो जानकार भौचक्क रह गये।
टीवी से मिली वारदात की प्रेरणा
पुष्पा और सोनिया को वारदात की प्रेरणा एक टीवी चैनल पर प्रसारित अपराध के एक कार्यक्रम को देखकर मिली, जो किसी जहरखुरानी गिरोह से संबंधित था। उस कार्यक्रत को देखने के बाद उन्हें लगा कि शार्ट-कट रास्ते से जल्द अमीर बनने का यह सबसे सुरक्षित व आसान तरीका है, तो इसमें अन्य वारदात के मुकाबले जोखिम भी कम है। फिर दोनों ने नशीली चीज का इस्तेमाल कर वारदात की योजना बनाई।
सोनिया की तलाश तेज
पुष्पा सलाखों के पीछे, तो सोनिया अब तक पुलिस गिरफ्त से बाहर है। पुलिस ने उसकी तलाश में लगभग सभी संभावित जगहों पर दबिश दी, पर सफलता नहीं मिली। सोनिया का कोई सुराग नहीं मिला। उसकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने कोशिश तेज कर दी है।

                                                                                                               कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

08 जुलाई 2012

सास, बहू और कत्ल की साजिश


राजीव गुप्ता/मनोज कुमार|| इलाहाबाद


                         24 वर्षीय विकास केसरवानी उस दिन सो कर उठा, तो ना जाने किस फिक्र में था। चेहरे पर अजीब सी उदासी थी। पत्नी सुप्रिया केसरवानी चाय की प्याली लेकर पहुंची, तो पत्नी के साथ भी विकास का व्यवहार पहले जैसा नहीं था। दोनों के बीच हल्का विवाद भी हुआ, विकास के इस तरह के व्यवहार को देखकर मां शोभा केसरवानी ने सहसा विकास से पूछ लिया, बेटा क्या परेशानी है। मां के इस सवाल के जवाब में विकास ने ज्यादा कुछ नहीं कहा, मां ना जाने क्यों मन बेचैन है। रात को अजीब सा ख्याल दिमाग में घूम रहा था। 
शोभा केसरवानी का घर जहां हत्या की वारदात को अंजाम दिया गया
                                     शोभा ने विकास को समझाते हुए कहा तुम भी ना जाने क्या सोच बैठते हो बेटा, अरे रात को कोई बुरा ख्याल मन में आया भी होगा तो क्या वो सच हो जाएगा। चल, अब उठ और काम के लिए निकल। पहले ही तुझे देर हो रही है। मां की इस तरह के बातों ने विकास का मन काफी हद तक हल्का कर दिया और वो नहा-धोकर तैयार हो गया जिसके बाद विकास टैगोर टाउन, थाना जॉर्ज टाउन, इलाहाबाद स्थित अपने घर से बाइक लेकर क्लाईंट से मिलने चला गया। लेकिन अभी भी उसका मन शांत नहीं हुआ था। रह-रहकर विकास के जहन में कोई बुरा ख्याल आ रहा था। उसे किसी अनजाने डर की चिंता सता रही थी। जैसे ही विकास का काम क्लाईंट के पास से खत्म हुआ उसने  सीधे घर का रूख कर लिया। उसे मां की ना जाने आज क्यों कुछ ज्यादा ही चिंता हो रही थी।
                           विकास केसरवानी को मां से कुछ ज्यादा ही लगाव था। उसे लगा कि घर जा रहा हूं तो क्यों ना मां के लिए रास्ते से कुछ मिठाई ही खरीद लूं। इसी सोच के साथ उसने रास्ते से जलेबियां पैक करा लीं और फिर घर की तरफ अपनी बाइक से चल दिया।
दोपहर करीब साढे तीन बजे विकास घर के मेन गेट पर था। उसने डोरबेल बजाई लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं मिला। फिर विकास ने सुप्रिया और मां शोभा को कई बार आवाजें लगाकर दरवाजा खोलने को कहा। लेकिन, उसकी तमाम कोशिशें बेकार गई। विकास को लगा कि शायद दोपहर होने की वजह से मां की आंख लग गई होगी। लिहाजा उसे बार-बार डोर बेल बजाकर और आवाज लगाकर मां को परेशान नहीं करना चाहिए।  यही बात सोचकर विकास ने अपने फोन से सुप्रिया को कॉल किया। विकास को उस वक्त ज्यादा फिक्र होने लगी जब सुप्रिया ने फोन रिसीव नहीं किया।  ऐसी स्थिति में विकास का धैर्य जवाब देने लगा, उसे जहां सुप्रिया पर गुस्सा आ रहा था वहीं चेहरे पर चिंता की लकीरें भी उभर आई थीं। विकास ने सोचा कि फिलहाल किसी तरह घर में दाखिल हो ले बाकी तो बाद में देखा जाएगा। उसने किसी तरह मेन गेट का दरवाजा खोला और फिर डंडे के सहारे खिड़की को खोलकर घर की लॉबी में दाखिल हो गया। लॉबी का मंजर देखर विकास के मुंह से जोरदार चीख निकल गई, मां...............। 
                 लॉबी में बिस्तर पर शोभा केसरवानी की लाश खून में लथपथ पड़ी थी। विकास ने रोते हुए सुप्रिया को कई बार आवाजें लगाईं लेकिन वह बाहर निकल कर नहीं आई। वह बेडरूम की तरफ बढा तो सुप्रिया को बेहोश देखकर उसके होश फाख्ता हो गए। खुद को संभालते हुए पिता मदन लाल केसरवानी और बहन स्मिता को फोन कर घटना की जानकारी दी।
मृतक शोभा केसरवानी
अब तक आस-पास के लोगों को भी केसरवानी परिवार में किसी अनहोनी के घटित होने का आभास हो चुका था।  आसपास के लोग इक्ठ्ठा होना शुरू हो गए। इसी बीच सुप्रिया को होश आ गया। विकास मां को इलाबाबाद के स्वरूप रानी अस्पताल में लेकर पहुंचा लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी।
डॉक्टरों ने शोभा केसरवानी को मृत घोषित कर दिया। इसी बीच मामले की जानकारी किसी ने 100 नंबर पर फोन कर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी। क्योंकि मामला इलाहाबाद के बेहद पॉश इलाके का था, लिहाजा पुलिस ने भी बिना वक्त गंवाए घटनास्थल का रूख किया। मामले को गंभीरता से लेते हुए थाना प्रभारी इंस्पेक्टर धनंजय मिश्रा दल-बल के साथ मौके पर जा पहुंचे। लेकिन मौके पर पीडि़त के ना होने की स्थिति में इंस्पेक्टर ने सब-इंस्पेक्टर शंभुनाथ तिवारी को वहीं पर छोड़ दिया ताकि वारदात स्थल पर सुबूतों के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ ना की जा सके और खुद शोभा की स्थिति का जायजा लेने के लिए अस्पताल पहुंच गए।
वारदात के बारे में सुप्रिया का बयान
वारदात के वक्त घर में शोभा केसरवानी, बहू सुप्रिया केसरवानी व उसकी दूधमुंही पोती ही मौजूद थीं। पुलिस को वारदात के बारे में सुप्रिया ही पूरी जानकारी दे सकती थी। पुलिस टीम ने सुप्रिया के बयान लेने शुरू किये। उसने पुलिस को बताया कि दोपहर करीब एक बजकर तीस मिनट पर विकास किसी क्लाईंट से मिलने घर से निकले थे और उसके ससुर मदन लाल केसरवानी व ननद स्मिता पहले ही जा चुके थे। जब विकास घर से निकला तो वो बाहर मेन गेट को भूलवश खुला छोड़ गया था। जैसे ही विकास घर से निकला वह अपने बेडरूम में चली गई जिसके कुछ मिनट बाद ही उसे अपनी सास के चीखने की आवाज सुनाई दी।
विलाप करती आरोपी सुप्रिया केसरवानी
सास की चीख सुनकर जब वह बाहर निकली तो देखा कि तीन से चार की संख्या में नकाबपोश बदमाशों ने उसकी सास को काबू कर रखा है और लूटपाट के लिए लॉकर की चाबी की मांग कर रहे हैं। देखकर वो बुरी तरह डर गई। बदमाशों ने उसे अंदर रहने की धमकी दी, और ऐसा ना करने पर उसे और उसकी ढाई वर्षीय बच्ची को भी मारने की धमकी देने लगे।  डर के मारे सुप्रिया ने खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया। किन्तु जब उसे लगा कि बदमाश घर से जा चुके हैं तो उसने बाहर कमरे से बाहर निकलने की हिम्मत दिखाई, उस वक्त भी बदमाश घर में ही थे और मेन गेट की तरफ बढ रहे थे ये देख उसने शोर मचाना चाहा लेकिन बदमाशों ने उसे बुरी डरा दिया। बदमाशों से वो इतना डर गई कि उसने दरवाजे की सिटकनी लगा ली..लेकिन, लॉबी में सास को लहुलुहान देखकर जैसे ही वो अपने कमरे की तरफ बढ़ी बेहोश होकर गिर गई। सुप्रिया के इस बयान से पुलिस को शोभा के कत्ल की कहानी काफी हद तक सुलझी हुई नजर आने लगी, लगा कि मुमकिन है लूटपाट के इरादे से इस वारदात को बदमाशों ने अंजाम दिया हो। क्योंकि दोपहर के वक्त घर में शोभा और उसकी बहू ही मौजूद हांेगी, इसलिए दोपहर का वक्त चुना गया हो। पुलिस का ये अंदेशा इसलिए भी पुख्ता हो रहा था क्योंकि घर का सामान चारों तरफ बिखरा पड़ा था, जिससे लूटपाट की आशंका को बल मिल रहा था। पुलिस ने मामले की जानकारी आला अधिकारियों को दी, और इस संबंध में दफा 302 के तहत अपराध संख्या 172ध्12 में केस दर्ज कर लिया। 
पुलिस की तहकीकात
तफ्तीश करती पुलिस
पहली नजर में ही ये बात साफ हो चुकी थी कि 58 वर्षीय शोभा केसरवानी की हत्या की गई है। पुलिस ने केस दर्ज कर मामले को सुलझाने के लिए तेज-तर्रार पुलिसकर्मियों की टीम का गठन किया गया, जिसमें जॉर्ज टाउन थाना प्रभारी धनंजय मिश्रा, सब-इंस्पेक्टर शंभूनाथ तिवारी, संदीप तिवारी, बृजेश द्विवेदी, महिला पुलिसकर्मी- आरक्षी, सविता साहू व दीपा भदौरिया को शामिल किया गया। मामला एक हाईप्रोफाइल परिवार में हत्या का था। पुलिस के लिए इस केस को जल्द सुलझाना एक बड़ी चुनौती थी। तफ्तीश के दौरान पुलिस को मौके से लोहे का एक मूसल (मसाला कूटने वाला) बरामद हुआ जोकि खून से सना हुआ था। इसके अलावा घर का सारा सामान बिखरा हुआ था, लेकिन परिजनों से पूछताछ के बाद पुलिस को पता चला कि घर से कोई भी कीमती सामान गायब नहीं हुआ था।
जार्ज टाउन थाना, इलाहाबाद
विकास से पूछताछ करती पुलिस
जांच दल का माथा यहीं से ठनक गया। आखिर बदमाशों ने इस वारदात को अंजाम दिया तो उनका मंसूबा लूटपाट रहा होगा फिर बदमाश हत्या करने के बाद फरार हो गए। आखिर घर में लूटपाट क्यों नहीं की गई। अब जांच टीम को इस बात का अंदेशा हो रहा था कि हो ना हो शोभा केसरवानी के कत्ल में किसी जानकार का हाथ रहा है।
सास के कत्ल में सुप्रिया पर शक
शोभा केसरवानी की हत्या में शक की सुई उसके ही किसी अज्ञात जानकार के इर्द-गिर्द ही घूम रही थी क्योंकि वारदात की चश्मदीद गवाह सुप्रिया ही थी इसलिए पुलिस के शक की सुई सुप्रिया पर आकर टिक गई। सुप्रिया पर शक की कई वजहें थीं, मसलन बदमाशों को घर में रखा मूसल कैसे मिला जबकि मूसल घर में काफी अंदर रखा हुआ था और बदमाशों ने हत्या में मूसल का ही इस्तेमाल क्यों किया? शक की दूसरी वजह थी सुप्रिया के पास मोबाइल फोन था लेकिन उसने कमरे में बंद होने के बावजूद पुलिस या फिर विकास को फोन क्यों नहीं किया? माना कि बदमाशों के भय से वो मानसिक रूप से परेशान थी, लेकिन बदमाशों के जाने के बाद उसने क्यों नहीं फोन करके पति और ससुर आदि को सूचित किया? सुप्रिया पर शक की तीसरी वजह थी कि जिन बदमाशों का जिक्र उसने किया था, उन्हें किसी भी पड़ोसी ने घर के अंदर दाखिल होते या फिर जाते नहीं देखा था। शक की चैथी वजह थी खुद सुप्रिया का बयान। सुप्रिया ने बताया था कि बदमाशों ने उसकी सास को काबू कर रखा था तो उसने चीख-पुकार कर क्यों नहीं आस-पास के लोगों को सचेत करने की कोशिश की? इसके अलावा सुप्रिया ने कहा था कि बदमाशों की संख्या तीन से चार थी लेकिन पुलिस को मौके पर शोभा के बदमाशों से संघर्ष करने के कोई सुबूत नहीं मिले।
ये कुछ ऐसी वजहें थीं जो सुप्रिया को शक के घेरे में खड़ा कर रही थीं। ये बात शुरूआती दौर में ही पुलिस के सामने साफ हो चुकी थी। लेकिन पारिवारिक रिश्ते और घर के माहौल के मुताबिक पुलिस ने सुप्रिया के खिलाफ उस वक्त कोई भी कार्रवाई करने से परहेज किया। इसकी वजह थी कि सुप्रिया को पारिवारिक स्नेह का फायदा मिल सकता है। और पुलिस की कहानी पर फिलहाल कोई यकीन नहीं करेगा। लिहाजा पुलिस ने शोभा की तेहरवीं होने का इंतजार किया।
जार्ज टाउन थाना प्रभारी धनंजय मिश्रा
सुप्रिया की गिरफ्तारी
भले ही सुप्रिया पुलिस के सामने जो भी कहानी बयां करती आई हो, लेकिन उसके ही बयानों ने शोभा के कत्ल की गुत्थी को सुलझा दिया। इंस्पेक्टर धनंजय को पहले ही सुप्रिया पर कत्ल का शक हो चुका था। जब शोभा की तेहरवीं हुई, तो उसके बाद एक बार फिर नये सिरे से पुलिस ने सुप्रिया से सवालों का सिलसिला शुरू किया। पहले के बयान और अब के बयानों में काफी विरोधाभास नजर आ रहा था। जब जांच टीम ने मनोवैज्ञानिक तरीके से सुप्रिया से पूछताछ शुरू की तो उसे टूटने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। सुप्रिया ने पुलिस के सामने कुबूल किया कि शोभा की हत्या में उसका हाथ रहा है और उसी ने इस हत्याकांड को अंजाम तक पहुंचाया है। पुलिस ने बिना वक्त जाया किये सुप्रिया को गिरफ्तार कर लिया।
सास के कत्ल की वजह
सुप्रिया की गिरफ्तारी से पुलिस टीम ने शोभा केसरवानी की हत्या का मामला तो सुलझा लिया लेकिन हर किसी के जहन में ये सवाल कौंध रहा था कि आखिर इस हत्याकांड की वजह क्या थी? और, जवाब सिर्फ सुप्रिया के पास था। 24 वर्षीय सुप्रिया बी ए पास कर चुकी थी, और एक मध्यम परिवार की खुले विचारों वाली युवती थी। शादी के बाद से उसे कई पारिवारिक बंधनों में रहना पड़ रहा था। हालांकि विकास केसरवानी ने उसे फैशन डिजाईनिंग का कोर्स कराया था जिसके लिए वो अक्सर स्कूटी से ही जाया करती थी। घर की बहू का स्कूटी से जाना शोभा को पसंद नहीं था वह इस बात को लेकर कई बार टोका-टाकी कर चुकी थी इसके अलावा उसी साल 14 फरवरी को सुप्रिया ने स्थानीय नर्सिंग होम में एक बच्ची को जन्म दिया था, नर्सिंग होम से ही  22 फरवरी को सुप्रिया अपने मायके चली गई थी। जिसके बाद वो 25 अप्रैल 2012 को वापस ससुराल लौटकर आई। पुलिस के सामने सुप्रिया ने बयान दिया कि पहले ही उसकी सास उसके साथ कहा-सुनी करती थी, जब उसने बेटी को जन्म दिया तो उसपर तानों का सिलसिला शुरू हो गया। सुप्रिया के मुताबिक उसे लड़के को जन्म ना देने को लेकर शोभा केसरवानी अक्सर खूब ताने दिया करती थी। सास के तानों से सुप्रिया आजीज आ चुकी थी और सास को ठिकाने लगाने की साजिश रचने लगी थी। जब 7 मई, 2012 की दोपहर सुप्रिया को मौका मिला तो उसने अपनी सास शोभा केसरवानी का कत्ल कर डाला।
कैसे दिया साजिश को अंजाम ?
सास के कत्ल की साजिश पहले ही सुप्रिया के जहन में जन्म ले चुकी थी, उसे इंतजार था एक माकूल मौके का। जो उसे 7 मई की दोपहर मिला जब घर में शोभा और सुप्रिया ही मौजूद थीं। दोपहर के वक्त विकास के निकल जाने के बाद शोभा लॉबी में ही बिस्तर लगाकर कुछ वक्त के लिए लेट गई। जब सुप्रिया को लगा कि सास नींद में है तो उसने कमरे में रखा मूसल निकाला और सो रही सास के सिर पर दे मारा। मूसल का वार इतना जोरदार था कि शोभा के हलक से चीख तक नहीं निकल पाई और उसने दम तोड़ दिया। वारदात को अंजाम देने के बाद सुप्रिया ने घर का सारा सामान इधर-उधर बिखेर दिया ताकि लगे कि शोभा की हत्या लूटपाट के इरादे से की गई है।
पारिवारिक पृष्ठभूमि
चैबीस वर्षीय सुप्रिया केसरवानी पुत्री रमेश चंद्र केसरवानी, तिलहापुर मोड़, जिला कौशांबी की रहने वाली और दो भाई तथा दो बहनों में दूसरे नंबर की संतान है।  रमेशचंद्र का इलाके में ही बिल्डिंग मेटेरियल सप्लाई का काम है। सुप्रिया मध्यम परिवार से संबंध रखती थी। बीए तक पढी-लिखी सुप्रिया खुले विचारों की युवती थी उसे अपने काम में किसी की टोका-टाकी कतई पसंद नहीं थी।
वहीं विकास केसरवानी के पिता मदन लाल केसरवानी इलाहाबाद से 40 किमी. दूर लाल गोपलगंज के रहने वाले हैं लेकिन 10 वर्ष पहले ही टैगोर टाउन में आकर रहने लगे थे। घर में विकास इकलौता बेटा था जबकि उसकी दो बहनें है जिनमे बड़ी बहन की शादी हो चुकी है जबकि छोटी बहन प्राईवेट नौकरी करती है। विकास और सुप्रिया की शादी साल 2009 में हुई थी। शादी के बाद से ही सास शोभा के साथ सुप्रिया के संबंध कुछ खास मधूर नहीं थे जिसका अंजाम शादी के तीन साल बाद सामने आया जब सुप्रिया ने अपनी सास का कत्ल कर डाला। हालांकि जिस तरह से सुप्रिया ने मामले को लूटपाट के बाद कत्ल की शक्ल देने की भरसक कोशिश की, उसमें वो कामयाब ना हो पाई। जॉर्ज टाउन थाना पुलिस के तेज-तर्रार पुलिसवालों ने कातिल बहू को जल्द ही बेनकाब कर दिया। सुप्रिया पर हत्या का इल्जाम लगा है और इस वक्त वो नैनी सेंट्रल जेल में बंद है।

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

22 मई 2012


 मैं आई हूं ससुराल लूटने


वी एन शांडिल्य

भारतीय संस्कृति में पत्नी को गृहलक्ष्मी का दर्जा दिया गया है। लेकिन जब वही गृहलक्ष्मी घर में डाका डाले, तो क्या कहेंगे? जाहिर सी बात है, उसे सबसे बड़ी लुटेरी कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हाल में इस तरह की एक घटना दिल्ली के कमला मार्केट इलाके में देखने को मिली, जब पूर्व प्रेमी के प्यार के जुनून में अंधी एक पत्नी अच्छी-खासी नकदी व जेवरात लेकर प्रेमी के साथ कहीं दूर नये आशियाने की तलाश में ससुराल से उस समय रफूचक्कर हो गयी, जब घर के सभी सदस्य गहरी नी्रद मे सोये थे। हांलाकि इस बाबत मामला दर्ज होने पर पुलिस ने कड़ी मशक्कत के बाद उन्हें तलाश लिया। लुटेरी दुल्हन से नकदी व जेवरातों की बरामदगी भी हो गयी। लेकिन अब सिवाए पाश्चाताप के, उस तथाकथित गृहलक्ष्मी के हाथ में कुछ नहीं। प्रेमी जेल की सलाखों के पीछे है, तो उसे ससुराल और मायके वालों ने घर में पनाह देने से साफ इनकार कर दिया। 

रहस्यमय ढ़ंग से लापता
मूल रूप से बिहार के रहने वाले उमेश प्रसाद सिंह सरकारी सेवा में थे। उन्हें रहने के लिए मध्य दिल्ली के कमला मार्केट थाना क्षेत्र स्थित मिंटो रोड काॅम्पलेक्स में सरकारी फ्लैट नंबर ए-106 आवंटित हो रखा था, जहां वे सपरिवार रहते थे। लड़का जितेन्द्र कुमार सिंह पेशे से इलेक्ट्रिोनिक इंजीनियर था, लेकिन अब तक उसकी शादी नहीं हो रखी थी। एक रिश्तेदार की सलाह पर उमेश सिंह ने जितेन्द्र की शादी झारखंड के जमशेदपुर शहर स्थित टेल्को काॅलोनी में रहने वाली दिव्या (परिवर्वित नाम) के साथ तय कर दी। स्नातक तक पढ़ाई कर रखी दिव्या का ताल्लुक एक मध्यमवर्गीय परिवार से था। शादी बड़ी धूमधाम से जमशेदपुर में हुई। शादी के छठे दिन नव दंपत्ति जमशेदपुर से दिल्ली आ गये। उसी रात घर पर उनकी शादी की रिसेप्शन पार्टी थी। समारोह मध्य रात्रि तक चला।
उसके बाद घर के सभी सदस्य सो गये। तड़के करीब चार बजे जितेन्द्र की अचानक नींद खुली, तो साथ सो रही दिव्या को घर से नदारद देखकर वह चैक पड़ा। उसने दिव्या के मोबाइल पर फोन किया, तो स्विच आॅफ मिला। परिजनों के साथ मिलकर आसपास काफी ढ़ूंढ़ा। पर कामयाबी नहीं मिली। दिव्या का गायब होना रहस्यमय बना रहा।
हालांकि जितेन्द्र व परिजन यह मान चुके थे, कि दिव्या को घर से जबरन उठाकर नहीं ले जाया गया। उसकी कई वजहें थी। पहली, जितेन्द्र ने सोने से पूर्व घर के मुख्य गेट का दरवाजा स्वयं अच्छी तरह बंद किया था, जिसे परिवार के किसी सदस्य ने नहीं खोला। लेकिन दरवाजा खुला पड़ा था। जाहिर सी बात थी कि दिव्या ने दरवाजा खोला होगा। दूसरी, मुख्य गेट के अलावा घर में दाखिल होने अन्य कोई जरिया नहीं था। तीसरी, जितेन्द्र को साथ सो रही दिव्या के गायब होने की भनक तक नहीं लगी। और चैथी, घर से करीब 40 हजार रुपये नकद रकम व कीमती जेवरात गायब थे। ऐसे में दिव्या चुपके से स्वेच्छा पूर्वक ससुराल से चंपत हुई इससे किसी को इनकार नहीं था। लेकिन उसने यह कदम क्यों उठाया? इस सवाल का जवाब फिलहाल सभी की समझ से परे था।
अपहरण का मुकदमा
परिजनों ने लोक-लाज के भय से पड़ोसियों व रिश्तेदारों को घटना की भनक नहीं लगने दी। लेकिन वे अपने स्तर पर सावधानी पूर्वक दिव्या की तलाश में लगे रहे। वह मायके भी नहीं पहुंची थी। जितेन्द्र ने इस बाबत ससुराल में फोन कर पता कर लिया। जबकि उसका मोबाइल फोन अब तक बंद था। हर संभावित प्रयत्न के बाद भी निराशा हाथ लगने पर आखिर में जितेन्द्र ने पुलिस का सहयोग लेना आवश्यक समझा। फिर वह कमला मार्केट थाने पहुंचा। उसने थाने के एसएचओ इंस्पेक्टर प्रमोद जोशी को पूरी बात बताते हुए आशंका जाहिर की कि किसी ने बहला-फुसलाकर उसकी पत्नी का अपहरण कर लिया है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए इंस्पेक्टर जोशी ने जितेन्द्र के बयान पर उसी समय इस बाबत थाने में अज्ञात अपहर्ता के खिलाफ मुकदमा अपराध संख्या 31/2012 पर धारा 365 भादवि के तहत दर्ज कर लिया। मामले की जांच के लिए मध्य दिल्ली के एडिशनल डीसीपी राजेश देव ने कमला मार्केट थाने के एसएचओ प्रमोद जोशी के नेतृत्व में एक विशेष टीम का गठन किया। टीम में सब-इंस्पेक्टर जयपाल सिंह, कांस्टेबल किरणपाल और महिला कांस्टेबल सुनीता शामिल थीं।
मामला प्रेम-प्रसंग से जुड़ा प्रतीत
घटना की लगभग सभी संभावित पहलूओं पर सूक्ष्मता पूर्वक जांच करने के बाद पुलिस टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची कि शायद मामला प्रेम-प्रसंग से जुड़ा है। जबकि पूछताछ में मायके व ससुराल वालों ने ऐसी संभावना से इनकार किया। उनकी नजर में शांत प्रवृत्ति की दिव्या एक सुलझी हुई लड़की थी। उसके प्रेम-प्रसंग किसी के साथ नहीं थे। लेकिन इंस्पेक्टर जोशी को किसी की भी यह दलील हजम नहीं हुई।
प्रेमी मुन्ना के साथ दिव्या
इंस्पेक्टर जोशी ने घटना के दिन से एक माह पूर्व तक की दिव्या के मोबाइल फोन की काॅल डिटेल्स निकलवाकर गहन पड़ताल की तो एक संदिग्ध मोबाइल नंबर पर उनका ध्यान ठहर गया। विगत एक माह के दौरान दिव्या व संदिग्ध मोबाइल नंबर के बीच रोजाना तीन से चार बार लंबी बातें हुई थीं। जबकि दिव्या के मोबाइल पर अंतिम काॅल संदिग्ध मोबाइल नंबर से था।
अब इंस्पेक्टर जोशी ने दोनों मोबाइल फोन के लोकेशन की जांच की। पता चला कि दोनों के मोबाइल फोन का अंतिम लोकेशन घटना की सुबह सात बजे से सुबह करीब दस बजे तक एक साथ गुड़गांव (हरियाणा) का था। उसके बाद से दोनों मोबाइल फोन बंद थे। इससे साफ हो गया कि दिव्या ससुराल से चंपत होने के बाद गुड़गांव निकल गयी थी।
अब ऐेसी संभावना नजर आयी कि घटना में सदिग्ध मोबाइल नंबर के धारक का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हाथ हो सकता है। साथ ही, संदिग्ध मोबाइल नंबर के धारक से दिव्या के अंतरंग संबंध रहे हों, इस संभावना में दम था।
कैसे मिला सुराग
जांच के दौरान पता चला कि संदिग्ध मोबाइल नंबर का धारक मुन्ना प्रसाद, पुत्र मैनेजर प्रसाद, निवासी मकान नंबर के-3/81, टेल्को काॅलोनी जमशेदपुर (झारखंड) पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर है। वह गुड़गांव स्थित एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत था। उसका पुश्तैनी घर दिव्या के मायके के पड़ोस में था।
उपर्युक्त जानकारी के बाद पुलिस टीम ने मुन्ना के परिजनों पर दबाव बनाया, तो मुन्ना दिव्या के साथ पुलिस के सामने हाजिर हो गया। चूंकि थाने में दिव्या के अपहरण का मामला दर्ज था, इसलिए पुलिस ने दिव्या की बरामदगी की। जबकि उसके अपहरण के आरोप में मुन्ना को गिरफ्तार कर लिया। दिव्या ससुराल से जो नकदी व जेवरात ले गई थी उसकी बरामदगी हो गई।
वारदात की वजह 
दिव्या और मुन्ना आपस में प्रेम करते थे। उनका इरादा शादी करने का था। लेकिन दिव्या के परिजनों ने उसकी शादी जबरन जितेंद्र के साथ कर दी। शादी के बाद दिव्या उपयुक्त अवसर की तलाश में थी। घर से निकल भागने की। वह हर हालत में मुन्ना के साथ शादी की डोर में बंधने को बेताब थी। उसे मौका तब मिला जब रिसेप्शन पार्टी के बाद दिन के थके-हारे ससुराल के सारे सदस्य गहरी नींद में थे। वह तड़के करीब पौने चार बजे ससुराल से निकल भागी। वहां से सीधा गुड़गांव मुन्ना के घर पहुंची जहां दोनों बतौर पति-पत्नी साथ रहने लगे।
लेकिन पुलिस टीम के दबाव पर उनका साथ अधिक दिनों तक नहीं रहा। वे दोनों पुलिस के हाथ आ गए। बहरहाल, दिव्या निर्मल छाया में है, तो उसका प्रेमी मुन्ना दिल्ली की तिहाड़ जेल में।


17 अप्रैल 2012

परिवार खाने लगा खूबसूरत लड़कियों का जिस्म


ब्राजील पुलिस ने जॉर्ज बेल्त्राव नाम के 55 वर्षीय युवक को उसकी पत्नी 51 वर्षीय इसाबेल पाईरस और 25 साल की महिला मित्र ब्रूना डी सिल्वा को दो लड़कियों की हत्या और उनके जिस्म के टूकड़ों को खाने के आरोप में गिरफ्तार किया है। आरोप है कि दो लड़कियों को मार डालने के बाद इन लोगों ने उनके जिस्म के खूबसूरत अंगों को बारी-बारी से काटा भी और फिर घर के चूल्हे पर पकाकर उनके मांस को न सिर्फ अपनी डाइनिंग टेबल पर सजाया बल्कि उन्हें अपना निवाला भी बनाया है..मुमकीन है इन बातों पर एतबार करना थोड़ा मुश्किल हो..लेकिन ये बात सौ फीसदी सच है..आरोप है कि इन लोगों ने लड़कियों के जिस्म के खूबसूरत अंगों को फ्राइ कर बड़े ही चाव से खाया..और तो और लाश की बोटी-बोटी काटने और खाने के बाद बचे-कुचे हिस्से को इन्होंने अपने घर के पास ही दफन भी कर दिया...ब्राजील के गरानहुन्स में ये तीनों पिछले कई सालों से 5 साल के बच्चे के साथ एक ही छत के नीचे रहते थे..और बेल्त्राव का ब्राजील में ही होटल का कारोबार था..जहां खासकर फास्ट फूड पिज्जा,बर्गर आदि खाने पीने का सामान मिलता...इसी से इनकी रोजी रोटी चलती थी...कुल मिलाकर सब- कुछ ठीक-ठाक चल रहा था...और हंसी-खुशी इनकी जिंदगी कट रही थी लेकिन जल्द अमीर बनने की चाहत में जिंदगी एक अजीब मोड पर जा पहुंची..असल में तीनों ब्राजील की सेक्ट नामक संस्था से जुड़ गए...इस संस्था से जुड़े लोग नास्तिक होते है.. और इनका उपरवाले पर भरोसा नहीं होता ...साथ ही ये संस्था ब्राजील में बढती पॉपुलेशन पर लगाम लगाने के लिए भी योजना चला रही थी...बताया जाता है कि वहीं एक रोज इन्हें एक जादुई आवाज सुनाई दी..किसी ने इनसे कहा कि अगर वो अपने इलाके में रहने वाली लडकियों के खूबसूरत अंगों को काटकर खाए तो इनकी तकदीर बदल सकती है...और ताउम्र उनकी जिंदगी में कोई शैतानी साया दस्तक नहीं देगा...एक बार को तो इन्हें इस पर यकीन न हुआ लेकिन चूंकि ये बात इनके दिलो दिमाग पर हावी हो चुकी थी..लिहाजा इन्होंने एक सोची समझी साजिश के तहत लड़कियों को अपने जाल में फंसाना शुरू कर दिया...जॉर्ज बेल्त्राव निग्रोमौन्त,उसकी पत्नी इसाबेल पाईरस और उसकी रखैल ब्रूना डा सिल्वा..तीनों ने मिलकर न सिर्फ दोनों लड़कियों का कत्ल कर दिया बल्कि शैतानी साए से बचने के लिए उनके खूबसूरत अंगों को पकाकर खाया और खिलाया भी..लाश के बचे हुए हिस्से को इन लोगों ने घर के आंगन में ही दफन कर दिया..ताकि इनके गुनाह से कभी पर्दा ना उठ सके..इन लोगों ने सोचा था कि शायद इनकी असलियत कभी जमाने के सामने नहीं आ पाएगी लेकिन कहते हैं कि गुनहगार चाहे कितना भी शातिर क्यों न हो कोई न कोई सुराग छोड़ ही जाता है जो उसे सलाखों के पीछे पहुंचा देता है..असल में इनसे गलती ये हो गई कि इन लोगों ने जिन लड़कियों का कत्ल किया था लालचवश उन लड़कियों का एटीएम और क्रेडिट कार्ड भी अपने पास रख लिया...बाद में उन एटीएम कार्डस और क्रेडिट कार्डस से खरीदारी भी शुरू कर दी...बस यही बात इनके गले की फांस बन गई और ये लोग पहुंच गए कानून के शिकंजे में..मरने वाली लड़कियों के क्रेडिट कार्ड से खरीददारी की गई थी, जब पुलिस ने दुकानदार की मदद से मिले हुलिए के बिनाह पर इनमे से एक महिला को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई तो फिर न सिर्फ उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया...बल्कि इस वारदात में शामिल बाकी बचे दो लोगों का नाम भी पुलिस का बता दिया...पुलिस की माने तो अभी और 10 से ज्यादा लड़कियां संदिग्ध हालातों में लापता हैं और उन्हें शक है कि उनकी हत्या करने के पीछे भी इन्हीं लोगों का हाथ हो सकता है..फिलहाल पुलिस ने तीनों के खिलाफ अपहरण, हत्या और सबूत छिपाने सहित कई संगीन धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया है...पुलिस को यकीन है कि आने वाले कुछ दिनों में दस लापता लड़कियां के बारे में भी पुख्ता जानकारी मिल जाएगी..

31 जनवरी 2012

शराबी पति बना काल, ली पत्नी की जान

गाजियाबाद के कविनगर थाना पुलिस ने देवीलाल नाम के शख्स को कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार किया है..इंसान से शैतान बने देवीलाल ने कत्ल भी किया तो अपनी बीवी का..पांच बच्चों के इस बाप ने अपने परिवार को अपने ही हाथों बर्बाद कर डाला..वारदात मंगलवार सुबह की है..जब कविनगर इलाके में रहने वाले लोगों की आंख खुली तो उनका सामना दिन की सबसे बुरी ख़बर से हुआ..देवीलाल ने अपनी 33 वर्षीय पत्नी रेखा की ईंट से पीट-पीटकर हत्या कर दी थी..
वारदात की ख़बर मिलने के बाद पुलिस मौके पर पहुंची और आरोपी देवीलाल को गिरफ्तार कर लिया..पुलिसिया पूछताछ में खुलासा हुआ कि देवीलाल की शादी रेखा से करीब आठ साल पहले हुई थी..रेखा से देवीलाल को पांच बच्चे थे..जिनमें एक दो महीने का बच्चा भी शामिल है..लेकिन बुरी आदतों की वजह से देवीलाल शराब का आदी हो गया था..मंगलवार सुबह जब देवीलाल ने शराब के लिए रेखा से रूपयों की मांग की तो दोनों में झगड़ा हो गया..आरोप है कि शराब के लिए पैसे ना मिलने से तिलमिलाए देवीलाल ने ईंट से अपनी बीवी पर जानलेवा वार कर दिया..जिससे रेखा की मौके पर ही मौत हो गई..
पुलिसिया तहकीकात में पता चला है कि देवीलाल मूलरूप से अलीगढ का रहने वाला है और गाजियाबाद के कविनगर में अपने पांच बच्चों और बीवी के साथ किराये के मकान में रह रहा था..रेखा देवीलाल की दूसरी पत्नी थी..जबकि देवीलाल की पहली पत्नी की मौत हो चुकी है..आरोप है कि पहली पत्नी का आरोप भी देवीलाल पर ही लगा था..हालांकि पुलिस इस सिलसिले में भी तहकीकात कर रही है..
बीवी का कातिल देवीलाल पुलिस के शिकंजे में है..जाहिर तौर पर कानून उसे उसके किये की सजा देगा..लेकिन बीवी को बेरहम मौत देकर देवीलाल ने जो गुनाह किया..उसकी वजह से ना केवल देवीलाल सलाखों के पीछे सजा काटेगा..बल्कि उसके गुनाह की सजा उसके मासूम बच्चों को भी भुगतनी पड़ेगी..

25 जनवरी 2012

बीवी की बेहयायी रास न आई

दक्षिण अफ्रीका के एक प्रमुख व्यवसायिक घराने से ताल्लुक रखने वाली निरंजनी काफी पढ़ी-लिखी, सरल, सहृदयी और बेपनाह हुस्न की मलिका थी। निःसंदेह उसकी शादी कोई बड़े नौकरशाह से अथवा किसी नामचीन अमीर घराने में होती। लेकिन उसने एक भारतीय नागरिक सुमित हांडा से प्रेम-विवाह किया, जिसकी हैसियत उसके परिवार के सामने कुछ भी नहीं थी। वह निरंजनी के पिता के फार्म में एक साधारण कर्मचारी था। शादी के बाद निरंजनी के परिजनों ने सुमित से घरजमाई बनने की पेशकश की, पर उसने साफ मना कर दिया। दोनों बेहद स्वाभिमानी और कर्मठ थे। उन्हें न कोई परेशानी थी, न किसी चीज का अभाव। इकलौता लड़का निर्वाण उनके प्यार की निशानी थी। उन्होंने शादी के करीब ढ़ाई वर्ष बाद दिल्ली को अपना नया आशियाना बनाया, जहां उन्हें अच्छी तनख्वाह पर मनलायक नौकरी मिल गयी। इसी बीच एक दिन अप्रत्याशित घटना घटी, जब सुमित हांडा स्थानीय थाने में पहुंचा और उसने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी निरंजनी घर से लाखों रुपये के जेवरात व नकदी लेकर फरार हो गयी है। फिर पुलिस ने घटना की एक-एक कड़ी को जोड़ते हुए मामले का खुलासा किया, तो सभी भौंचक रह गये। निरंजनी घर से फरार नहीं हुई, उसका कत्ल कर उसके शव को ठिकाने लगा दिया गया था। हैरत की बात यह थी गुनाहगार कोई और नहीं, सुमित हांडा था। हत्या अबैध संबंध की परिणति थी। पूरी कहानी जानने के लिए घटना के अतीत में जाना होगा।
निरंजनी की गुमशुदगी दर्ज
2 नवम्बर, 2011 की सुबह करीब नौ बजे 31 वर्षीय एक युवक सुमित हांडा दक्षिणी पूर्वी दिल्ली स्थित पुल प्रह्लादपुर थाने पहुंचा। उसने थाने के एसएचओ इंसपेक्टर हरिश्चंद्र को बताया, सर, 30 अक्टूबर की शाम करीब छह बजे मेरी पत्नी निरंजनी ने मुझे धोखे से चाय में नींद की दवा पिला दी और लाखों की नकदी व गहने लेकर अपने किसी प्रेमी के साथ फरार हो गयी। मैने अपने स्तर से उसकी काफी तलाश की, पर वह नहीं मिली। कृपया उसकी गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज कर लें। यह सुनकर इंसपेक्टर हरिश्चंद्र हैरत में पड़ गये, ‘सिर्फ गुमशुदगी रिपोर्ट...। उन्होंने सरसरी निगाह से उसके चेहरे की तरफ देखा, बंधु, मामला तो चोरी का है। फिर सिर्फ गुमशुदगी रिपोर्ट... उनका सवाल था, ऐसा क्यों? इसपर युवक ने सफाई दी, सर, मै निरंजनी से बहुत प्यार करता हूं। इसलिए नहीं चाहता कि उसपर कोई परेशानी आये। यह बात अलग है कि उसने मेरे प्यार का यह सिला दिया। लेकिन मैं गलती मान लेने पर उसे माफ कर दूंगा। तो इंसपेक्टर हरिश्चंद्र ने सुमित के बयान पर थाने में निरंजनी की गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज कर ली।
मामले पर क्राइम ब्रांच की नजर
इस घटना की भनक कहीं से क्राइम ब्रांच(स्पेशल यूनिट) के सब इंस्पेक्टर रितेश कुमार को लग गयी। एस आई रितेश का माथा ठनका-‘पत्नी लाखों की नकदी व गहने लेकर फरार और रिपोर्ट गुमशुदगी की। जरूर कोई गड़बड़ है, जिसकी कानूनी लीपापोती करने की कोशिश की जा रही है।’ एस आई रितेश ने चालाकी से सुमित और निरंजनी के मोबाइल नंबर ले लिए। फिर सनलाइट कालोनी स्थित क्राइम ब्रांच के दफ्तर में आकर एस आई रितेश ने अपने इंसपेक्टर अनिल दुरेजा से इस बारे में चर्चा की, तो दुरेजा को रितेश की बातो में दम नजर आया। दुरेजा ने आला अघिकारियों से इजाजत लेकर अपने निर्देशन तथा सब इंसपेक्टर रितेश कुमार के नेतृत्व में एक विशेष टीम का गठन कर सावधानी पूर्वक मामले की पड़ताल शुरू कर दी।
कैसे मिला कत्ल का सुराग?
पुलिस टीम ने जांच के दौरान सबसे पहला काम यह किया कि दोनों मोबाइल नंबरों की लोकेशन और काल डिटेल निकलवा ली। उससे जानकारी मिली कि निरंजनी का फोन 29 अक्टूबर की रात 9 बजे से बंद था। बंद होने की उसकी लोकेशन घर के इलाके की थी। जबकि सुमित के फोन की लोकेशन 30 अक्टूबर की शाम करीब पांच बजे तक घर के इलाके की थी। उसके बाद उसके फोन की लोकेशन दिल्ली से राई(सोनीपत, हरियाणा) तक थी। मध्य रात्री के बाद पुनः उसके फोन की लोकेशन घर के इलाके की थी। सुमित ने इंसपेक्टर हरिश्चंद्र को बताया था, कि 30 अक्टूबर की शाम करीब छह बजे चाय पीने के थोड़ी देर बाद वह अचेत हो गया। उसे अगले दिन सुबह करीब पांच बजे होश आया, तो निरंजनी घर से फरार थी। जबकि घर में रखे लाखों की नकदी व गहने गायब थे। ऐसे में उस रात उसके फोन की लोकेशन घर के इलाके में होनी चाहिए, पर ऐसा नहीं था। यह रहस्य की बात थी। इसी बीच छह नवम्बर को सुमित पुश्तैनी घर आगरा चला गया, तो उसपर संदेह गहरा गया। पुलिस टीम का मानना था कि फिलहाल सुमित की प्राथमिकता निरंजनी की तलाश होना चाहिए था, न कि घर जाने की चिन्ता। अब पुलिस टीम उससे पूछताछ का मन बना बना चूकी थी। सुुुमित 10 नवम्बर को दिल्ली लौटा, तो 11 नवम्बर को क्राइम ब्रांच की टीम ने उसे पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया। मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ करने पर सुमित जल्द टूट गया। उसने खुलासा किया कि निरंजनी अब इस संसार में नहीं है, क्योंकि उसने 29 अक्टूबर की शाम घर में उसकी हत्या कर उसके शव को राई(सोनीपत, हरियाणा) के जंगल में ले जाकर जला दिया था। इस अपराध स्वीकारोक्ति के साथ ही पुलिस ने सुमित को गिरफ्तार कर, उसके खिलाफ पुल प्रह्लादपुर थाने निरंजनी की हत्या का मुकदमा अपराध संख्या 342/11 पर धारा 302, 201 भा. द. वि के तहत दर्ज कर लिया। अगले दिन यानी 12 नवम्बर को क्राइम ब्रांच की टीम ने सुमित को दिल्ली की साकेत कोर्ट में पेश कर, उसे सात दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया। रिमांड अवधि में सुमित ने पुलिस को राई के जंगल से निरंजनी के जले हुए शव के अवशेष बरामद करा दिये। साथ ही उसकी निशानदेही पर वारदात में इस्तमाल सामानों की भी बरामदगी हो गयी।
दंपत्ति की पृष्ठभूमि
मकान नंबर 50, ईएमआई इन्कलेव, आगरा(उत्तरप्रदेश) में सपरिवार रहने वाले श्रीराम हांडा के तीन संतानों में सुमित हांडा बड़ा था। उससे छोटा भाई अमित आगरा से एमटेक्् कर रहा था। जबकि बहन प्रीती छोटी थी। अमित और प्रीती अविवाहित थे। श्रीराम हांडा का सेना में राशन सप्लाई का काम था। अब वह समाजिक कार्यां में लगे थे। सुमित की मां कमलेश हांडा एक घरेलू महिला थी। सुमित ने 12वीं कक्षा तक पढ़ाई आर्मी स्कूल, आगरा से की। उसके बाद बीएससी(बैचलर आॅफ साइंस) आगरा कालेज, आगरा से किया। वर्ष 2000 में वह दिल्ली आ गया। दिल्ली में उसने वल्र्ड ट्रेड सेंटर से छह माह का ट्रेवल एजेंसी की ट्रेनिंग ली। वर्ष 2001 में उसे करोलबाग स्थित एक ट्रेवल एजेंसी में काम मिल गया। उसी दौरान उसने दो साल का फ्रेंच कोर्स कर लिया। वर्ष 2003 में उसे कंपनी की तरफ से बतौर मार्केटिंग मैनेजर थाईलैंड भेजा गया, जहां वह मात्र सात माह रहा। फिर नौकरी छोड़कर भारत आ गया। दरअसल थाईलैंड उसके स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं था। दिल्ली आकर उसने एक दूसरी नामचीन ट्रेवल कंपनी ज्वाइन कर ली, जहां तनख्वाह मनलायक था। तभी उसकी मुलाकात दक्षिण अफ्रिका के एक प्रमुख व्यवसायी रामा पिल्लै से हुई, जो तब व्यवसाय के सिलसिले में भारत आए हुए थे। रामा पिल्लै का साडि़यों का आयात-निर्यात का व्यवसाय था। उसके अलावा उनकी दक्षिण अफ्रिका के डरबन शहर में भारतीय साडि़यों की एक थोक दुकान थी। मूलतः हैदराबाद शहर(भारत) के रहने वाले रामा पिल्लै ने करीब 40 वर्ष पूर्व दक्षिण अफ्रिका की नागरिकता ले ली थी। वे सपरिवार डरबन शहर में रहते थे। पहली मुलाकात में ही रामा पिल्लै को सुमित अपने काम का आदमी लगा। इसलिए उन्होंने उससे पूछ लिया, ‘‘मेरे पास काम करोगे?’’ तो सुमित ने फौरन हामी भर दी। इसपर रामा पिल्लै ने उसे भरोसा दिया, ‘‘तुम्हें जल्द डरबन बुला लेंगे।’’ उसके बाद सुमित फोन व अन्य माध्यमों से लगातार रामा पिल्लै के संपर्क में रहा। वर्ष 2005 मे रामा पिल्लै ने सुमित को डरबन बुला लिया और उसे अपनी दुकान में सेल्स एक्सक्यूटिव की नौकरी दे दी। रामा पिल्लै के दो संतान थे। लड़की निरंजनी बड़ी थी, जो कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद टूर एंड ट्रेवल्स का कोर्स कर रखी थी। फिलहाल वह एक नामी कंपनी में आॅफिस असिस्टेंट के पद पर कार्यरत थी। निरंजनी से छोटा भाई लिंगेश्वर डेंटिस्ट का कोर्स कर रहा था। जबकि रामा पिल्लै की पत्नी चारुमाला एक घरेलू महिला थी। डरबन में पहले से सुमित का एक दोस्त लक्ष्मण रहता था, जो सुमित के साथ दिल्ली में एक ट्रेवल एजेंसी में काम कर रखा था। हैदराबाद शहर का रहने वाला लक्ष्मण डरबन में एक ट्रेवल कंपनी में अच्छे पद पर था। वह एक किराए के मकान में अकेला रहता था, क्योंकि उसकी शादी नहीं हो रखी थी। लक्ष्मण ने सुमित से साथ रहने की पहल की, तो सुमित उसी के साथ रहने लगा।
मुलाकात, प्यार, शादी और बच्चा
रामा पिल्लै के पास काम के दौरान सुमित की मुलाकात निरंजनी से हुई। जल्द ही दोनों एक-दूसरे के बेहद करीब आ गये और उनके बीच प्यार का सिलसिला चल पड़ा। फिर उन्होंने शादी का निर्णय ले लिया। निरंजनी के परिजनों को इस शादी पर कोई आपत्ति नहीं थी। 5 फरवरी, 2007 को उनकी शादी हो गयी। शादी के बाद सुमित ने रामा पिल्लै का काम छोड़कर दूसरी कंपनी ज्वाइन कर ली। डरबन शहर में स्थित उस कंपनी का नाम ‘सेरेमपेडीटी टूर’ था। लक्ष्मण, सुमित और निरंजनी के साथ रहता था। शादी के बाद अक्टूबर,2009 में दोनों भारत आए, जहां से दोनों दिसंबर में पुनः डरबन लौट गये। अक्टूबर, 2010 में उन्हे एक लड़का हुआ, जिसका नाम निर्वाण रखा।
रिश्ते में खटास
पति सुमित हांडा के साथ निरंजनी
साथ रहने के दौरान निरंजनी के अवैध संबंध लक्ष्मण के साथ बन गये थे। एक दिन सुमित ने उन दोनों को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया। तो उसने निरंजनी को सही रास्ते पर लाने की बहुत कोशिश की, पर निरंजनी के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया। उसका लक्ष्मण से रिश्ता पूर्ववत रहा। परिणाम यह हुआ कि उनके रिश्ते में खटास आ गयी। सुमित अपने इकलौटे बेटे से बहुत प्यार करता था, इसलिए वह बेटे की खातिर निरंजनी को छोड़ने के पक्ष में भी नहीं था। वह नहीं चाहता था कि उसका बेटा मां से मरहूम हो जाए। जबकि निरंजनी पर सख्ती इस भय से नहीं करता, क्योंकि वह उसे धमकी दे डालती, ‘‘तुम जानते हो कि मैं लाॅ ग्रेजुएट हूं। यदि तुमने परेशान किया, तो मैं तुम्हें जेल भिजवा दूंगी।’’ निरंजनी ने साफ कर दिया था कि लक्ष्मण उनके साथ ही रहेगा। अब निरंजनी को सुमित का तनिक भी भय नहीं था। फिर सुमित ने निरंजनी का लक्ष्मण से पीछा छुड़ाने के ख्याल से भारत लौटने का निर्णय ले लिया। हांलाकि निरंजनी भारत जाने के पक्ष में नहीं थी, पर सुमित ने उसे धमकी दी, ‘‘यदि तुमने साथ जाने से इंकार किया, तो मैं तुम्हारी असलियत परिजनों और रिश्तेदारों को बता दूंगा।’’ तो वह घबड़ाकर साथ भारत जाने को राजी हो गई। फिर दोनों जुलाई, 2011 में भारत आ गये। कुछ माह पुश्तैनी घर आगरा में रहे। उसके बाद वे अक्टूबर,2011 में दिल्ली आ गये। दिल्ली आते ही सुमित को राजौरी गार्डेन स्थित एक टेªवल कंपनी में आकर्षक सैलरी पर बिजनेस डेवलमेंट मैनेजर की नौकरी मिल गई। निरंजनी ने भी मालवीय नगर स्थित एक टेªवल कंपनी में काम पकड़ लिया। दोनो किराये पर फ्लैट नंबर 104, ब्लाक एफ 5, पुल प्रहलादपुर में रहते थे। इकलौटे बेटे की देखरेख के लिए सुमित ने छोटी बहन प्रीती को पास बुला लिया था।
हत्या की वजह
निरंजनी और लक्ष्मण फोन और अन्य माध्यमों से अब भी एक-दूसरे के संपर्क में थे। ज्यादातर दोनों विडियो कान्फ्रेंशिंग जरिए लाइव चैटिंग करते। यह बात सुमित को पता था, पर वह इसे लगातार नजरअंदाज करता रहा। दरअसल वह घर में कलेश के पक्ष में नहीं था। परिणाम यह हुआ कि निरंजनी को बल मिल गया। अब वह उसके सामने भी लक्ष्मण से चैटिंग कर लेती। धैर्य की भी कोई सीमा सीमा होती है। जब निरंजनी की बेहयायी हद पार कर गयी, तो सुमित ने निरंजनी के साथ सख्ती से पेश आने का फैसला कर लिया। इस दिशा में पहला काम किया, उसने 23 अक्टूबर को छोटी बहन और बेटे को आगरा भेज दिया। दरअसल वह उनके सामने निरंजनी के साथ कोई बखेड़ा नहीं चाहता था, क्योंकि उन बच्चों पर गलत असर पड़ सकता था। वहीं, इधर विगत कुछ दिनों से निरंजनी लगातार सुमित पर दवाब डाल रही थी कि वह उसे डरबन छोड़ आए। जबकि सुमित किसी न किसी बहाने टालमटोल कर दे रहा था। इस कारण निरंजनी, सुमित से नाराज थी। निरंजनी को डरबन नहीं भेजने के पीछे सुमित की दो मुख्य वजह थी। पहली, जनवरी में सुमित के छोटे भाई की शादी होनी थी। और दूसरी, सुमित को आशंका थी कि डरबन जाने के बाद निरंजनी पुनः भारत नहीं आएगी। वह लक्ष्मण से शादी कर लेगी, ऐसा भी उसका मानना था। बात 29 अक्टूबर,2011 की है। उस दिन शाम के समय सुमित घर पहुंचा, तो घर का दरवाजा सिर्फ भिडका हुआ था। अतः वह आसानी से अंदर आ गया। शायद निरंजनी भूलवश अंदर से दरवाजा बंद करना भूल गयी होगी, ऐसा उसे लगा। अंदर आने पर बेडरुम में उसकी नजर गयी, तो वह चैक पड़ा। सुमित के आने से बेखबर निरंजनी बेडरुम मे लेपटाॅप पर किसी से लाइव चैटिंग कर रही थी। वह बिल्कुल नग्नावस्था में थी। वेबकैम आॅन था और लेपटाॅप के स्क्रीन पर लक्ष्मण का चेहरा साफ नजर आ रहा था। स्पीकर भी खुला हुआ था। दोनों एक-दूसरे से अश्लील बातें कर रहे थे। यह दृश्य देखते ही सुमित का धैर्य जवाब दे गया। उसे अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रहा। वह रसोई की तरफ बढ़ गया।
कैसे दिया कत्ल को अंजाम ?
रसोई से सुमित चाकू ले आया और उससे निरंजनी के जिस्म पर तबतक प्रहार करते रहा, जबतक वह लहूलुहान अवस्था में अचेत होकर फर्श पर गिर नहीं पड़ी। उसके बाद उसने लेपटाॅप की चार्जजिंग लीड से गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी। फिर शव को बाथरुम में रख दिया और घर की अच्छी तरह साफ-सफाई कर दी। अगले दिन यानि 30 अक्टूबर की सुबह वह मार्केट से एक ट्राली बैग और एक हैंड बैग खरीद लाया। घर आने पर उसने ट्राली बैग में निरंजनी का शव रख दिया। जबकि हैंड बैग में खून लगे कपड़े और हत्या में इस्तमाल सामान रखे। अब उसे लाश को ठिकाने लगाना था, सहसा उसे शुभाशीष का ध्यान आया, जो दफ्तर में उसके साथ काम करता था। रोहिणी इलाके में रहने वाले शुभाशीष के पास सफेद कलर की एक मारुति,800 कार थी। फिर सुमित ने फोन कर शुभाशीष से कहा, ’’अपनी कार लेकर आ जाओ। मुझे अपने चचेरे भाई से मिलने जाना जरूरी है।’’ तो शाम करीब पांच बजे शुभाशीष कार लेकर सुमित के घर आ गया। सुमित ने दोनों बैग कार की पिछली डिक्की में रखे। उसके बाद दोनों कार में राई, सोनीपत की तरफ बढ़ गये। राई इलाके में श्यामपुर गांव के पास एक पेट्रोल पम्प नजर आने पर सुमित ने कार वहां रुकवा ली। फिर उसने दोनों बैग उतारे और शुभाशीष को यह कहकर वापस भेज दिया कि यहां से उसका भाई ले जाएगा। उसने भाई को फोन कर दिया है। शुभाशीष जब कार लेकर चला गया, तो सुमित पेट्रोल पम्प पर पहुंचा, जहां से उसने एक कैन में दो लीटर पेट्रोल लिए। फिर वह दोनों बैग और कैन लेकर पैदल ही करीब दो सौ मीटर दूर जंगल में आ गया, जहां चारों तरफ सन्नाटा था। वहां उसने दानों बैग को एक-दूसरे के उपर रखा और उसमें पेट्रोल छीड़ककर आग लगा दी। उस जगह वह करीब दो घंटे रहा, जबतक लाश जल नहीं गयी। फिर एक ट्रक से लिफ्ट लेकर सिंधु बोर्डर पहुंचा, जहां से एक टीएसआर में कश्मीरी गेट बस अड्डा आ गया। उसके बाद वहां से बस पकड़कर पुल प्रहलादपुर अपने घर आ गया। अगले दिन उसने बाथरुम के टाइल्स बदलवा दिया, क्योंकि लाश रखने के कारण उसमें खून लग गये थे।
                                पत्नी की बेहयाई के चलते एक शरीफ इंसान कातिल बन गया। पत्नी का कत्ल कर उसके शव को जला डालने वाले सुमित नामक व्यक्ति को अंत तक भरोसा था कि शायद उसकी पत्नी सही राह पर आ जाएगी। लेकिन, बेशर्मी की हदें पार कर चुकी पत्नी निरंजनी अपने पति की इसी कमजोरी को अपना हथियार बनाए हुए थी।