मायापुरी रेडिएशन मामले में दिल्ली पुलिस ने अहम खुलासा किया है। पुलिस जांच में पता चला है कि कोबाल्ट 60 दिल्ली यूनिवर्सिटी की केमिस्ट्री लेब से आया था। कोबाल्ट 60 को कबाड के तौर पर मायापुरी के एक स्क्रेप डीलर ने भारी मात्रा में कबाड के साथ ढेड लाख रूपये में खरीदा था।
मायापुरी में रेडिएशन से कहर बरपाने वाले कोबाल्ट 60 के सोर्स का आखिरकार पता चल ही गया। पुलिस जांच में पता चला है कि कोबाल्ट 60 दिल्ली यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ केमिस्ट्री की लैब से आया था। यूनिवर्सिटी ने साल 1970 में इसे गामा सेल के रूप मे ऑटोमिक एनर्जी कनाडा लिमिटेड से खरीदा था जिससे केमिस्ट्री के स्टूडेंट्स को गामा सैल और केमिकल के इफैक्ट के बारे में बताया जाता था। लेकिन साल 1985 में इसका प्रयोग बंद हुआ और गामा सैल को एक कमरे में बंद करके रख दिया गया। 0
26 फरवरी 2010 को इसे कबाड के साथ मायापुरी स्क्रेप मार्किट के स्क्रेप डीलर हरिचरण भोला ने ढेड लाख रूपये में खरीदा था। कबाड से आयरन अलग करने के बाद उसे गिरीराज गुप्ता को बेच दिया था। इस तरह से गामा सैल के रूप में कोबाल्ट 60 राजेन्द्र, दीपक जैन से होते हुए अमित जैन तक पहुंचा और लोग रेडिएशन का शिकार होते रहे। जांच में ये भी पता चला है कि गामा सैल ने राजेन्द्र के पास पहुंचने के बाद अपना असर दिखाना शुरू किया। गामा सैल सिलेंडर के आकार का था जिसका वजन 300 किलो था। जबकि उंचाई करीब तीन फीट। फिलहाल पुलिस ने संबंध में अलग से किसी के खिलाफ मामला दर्ज नही किया है। पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि गामा सैल बेचने की असल वजह क्या थी। इस केस में जितनी लापरवाही स्क्रेप डीलर की रही है जिसने मोटे मुनाफे के चक्कर में कई लोगों की जान को आफत में डाल दिया। वहीं डीयू प्रशासने की भी जिसने ये जानते हुए भी की कोबाल्ट 60 कितनी खतरनाक चीज है उसे कबाड में बेच दिया।
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