07 अप्रैल 2010

शहादत पर भारी ग्लैमर

बडी विडम्बना है कि आज लिखते हुए.. ना दिल काम कर रहा है.. ना ही दिमाग। रात करीब एक बजे ऑफिस से घर पहुंचा। नींद आ नही रही थी सब एक ही सवाल खाए जा रहा था। आखिर ये हो क्या रहा है। ये जानकार बेहद दुख हुआ कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के जवानों को निशाना बनाया। रास्ते में माइन्स बिछा कर 75 जवानों की जिदंगी लील ली। ये घटना ना केवल न्यूज चैनलों और समाचार पत्रों के लिए एक खबर थी। बल्कि देश के हर शख्स को झकझोर देने वाली घटना थी। मीडिया ने भी इसे पूरी गंभीरता से लिया। चैनलों पर बडी बडी ब्रेकिंग न्यूज दिखी। रिपोर्टर्स के लाईव दिखे। एक तरह से सभी न्यूज चैनल शहीद हुए जवानों के प्रति पूरी तरह सम्पर्ति थे। लेकिन इससे कहीं ज्यादा दुख इस बात का हुआ कि शाम ढलने से पहले ही ये घटना न्यूज चैनलों के लिए किसी काम की ना रही। ग्लैमर की चकाचौंध में सबकुछ बेमारी हो गया। दरअसल एक तरह नक्सली हमले में शहीद हुए 75 जवानों की घटना थी तो दुसरी तरफ शोएब सानिया की शादी को लेकर दिल्ली पहुंचे शोएब के जीजा इमरान जफर। 75 शहीद जवानों के सामने एक इमरान जफर भारी पड गए। शाम करीब पांच बजे के बाद शायद ही किसी न्यूज चैनल पर नक्सली हमले की खबर दिखी हो। क्योंकि सभी न्यूज चैनल के लिए इमरान साहब की तबज्जो 75 शहीद जवानों से कहीं ज्यादा जो थी। इमरान जफर के दिल्ली पहुंचने की तस्दीक तो शोएब के वकील एक दिन पहले ही कर चुके थे सो मीडिया वालों का जमावडा होना लाजमी था। एक न्यूज चैनल से कई कई पत्रकार महोदय मौजूद थे। कुल मिलाकर सभी न्यूज चैनलों ने इमरान जफर की प्रैसवार्ता को ओबी वेन लगार खूब कैश किया। सवाल ये है कि क्या चैनल के लिए टीआरपी ही सबकुछ है। क्या एक अरब से ज्यादा आबादी वाले इस देश में कोई शहीद जवानों के बारे में जानने को बेताब नही था जो सभी चैनलों ने इमरान को दर्शकों के सामने परोसा दिया। शायद ये वक्त की मार और मीडिया का एक नया रूप है जो वक्त के साथ सबके सामने आया है। जरूरत है इसे जानने, पहचानने और समझने की।
जयहिंद

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