08 अप्रैल 2010

शहीद होने का शौक नही

एक रात की कहानी है मै अपने दोस्तों के साथ नदी किनारे बैठ कर दुनिया के विषय में अपने दिमाग की दादागीरी दिखा रहा था...मेरे दोस्त भी मेरा साथ दे रहे थे...हम यू हीं दुनिया दारी की बातों को लेकर कभी भावुक हो जाते तो कभी आक्रोश भी आता..समझ में नही आ रहा था कि आखिर हम चर्चा क्या कर रहे है...खैर जैसे-जैसे रात जवान हो रही थी वैसे वैसे कुछ सोच का नशा और कुछ हल्की मदिरा का भी नशा बढ़ रहा था...चर्चा ने एकाएक रुख कर लिया...राजनीति और रणनीति को जहां एक ओर देखें तो नक्सलियों ने सकार की तमाम रणनीति की औकात दिखा दी है...क्या सिस्टम से बड़ा या यू कहें कि लोकतंत्र से बड़ी राजनीति है..सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए क्या देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया जा सकता है। भारत के गृहमंत्री नक्सलियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के पक्ष में शुरू से रहे.. मगर प्रधानमंत्री के सुर के आगे उनके सैन्य कार्रवाई की राग भैरवी एकाएक डिस्को में बदल गया। छत्तीसगढ़ में जो कुछ भी हुआ वो आप सब के सामने है। 76 सैनिकों की मौत चैनलों के लिए एक्सक्लूसिव ख़बर थी। यानी देश का सपूत शहीद हो गया और उसकी शहीदी को बेचने से पीछे नही हटे। यहां भी टीआरपी का दंश उनके दिमाग में अपनी मीनार खडी कर चुका था। कभी कभी सोचकर परेशान हो जाता हूं। कि ईश्वर ना करे... कभी इनके रिश्तेदारों के साथ अनहोनी हो जाए तो वहां टीआरपी को याद रखेंगें या भूल जाएंगे। खैर ये तो बहुत पहले ही बाहर को जिंदा रखने के लिए भीतर को मार चुके है। हम रास्ता भटक ना जाएं इसलिए फिर से बात नक्सलियों की। नक्सली जिस तरह से अपने पैर पसार चुके है। और मौत का तांडव करते है.. और सरकार को लगता है.. यहां बात मैं केन्द्र और राज्य दोनों की कर रहा हूं। चाहे जिसको जो लगे.. लेकिन जिस प्रकार का रवैया अपनाया जा रहा है। आने वाले समय में तालिबान जैसी हालत भारत में भी होगी। आप देखेंगें..कि पहले भी नक्सलियों से निपटेने के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई गई। फिर इसके लिए एक बजट भी बनाया गया लेकिन हुआ क्या ढाक के तीन पात कभी ये ट्रेन हाईजैक करते है... कभी जेल पर हमला करते है... ताजा मामला तो आपके सामने है और बाकि रोज पांच दस सुरक्षाकर्मियों का इनके हाथो मरना सरकार के लिए कोई बडी बात नही है। आखिर ये इसी देश के है ये अपने है... और अपने भी ऐसे जो अपने और देश के दुश्मन है। हां एक बात जरूर है सरकार के लिए बहुत बडा मुद्दा है। कश्मीर की समस्या.. पुर्वात्तर की समस्या और नक्सली जैसे मामले खत्म हो जाए। तो इनके लिए दिमागी कसरत न के बराबर रह जाएगी। जिस प्रकार से नक्सली वारदात को अंजाम देते है और सरकार जिस प्रकार का रैवया अपनाती है। हो सकता है आने वाले समय में कहें सलवा जुडुम की तरह कई और संगठनों का जन्म ना हो जाए। और फिर सरकार इन्हें भी अपना दुश्मन समझ ले। खैर ये दिमागी कसरत का काम राजनीति करने वाले और रणनीति बनाने वालों का है। मुझे शहीद बनने का कोई शौक नही। भाड़ में जाए नक्सली और भाड में जाए सरकार... माथा पच्ची की कोई आवश्यकता नही... रात की उम्र ढलने लगी है और मेरा सुरूर भी कम होने लगा है। पर मेरे दोस्तों की जुबान लडखडा रही है। इसलिए मैं सोचने की हालत में नही हूं।

लेखक....रविशंकर कुमार

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