हरिअन्नत हरि कथा अन्नता... मेरी हर कहानी से पहले ये आम हो चली है। आज हम पिछले पडाव से आगे है आज जब कार्यलय पहुंचा तो पता चला साहब कार्यमुक्त हो चुके है। बहुत से डब्बुक से मुंह पे मुस्कान थी क्योंकि चेहरे पर मुस्कान इंसानों की होती है। ऑफिस में घडियालों और गिरगिटों की कमी नही.. जिनसे मैनें भी कुछ आंसू और रंग उधार लिए हैं। ताकि उन्हें के आंसू और उन्हीं का रंग सूद समेत उन्हे वापिस कर सकूं। सोचना मैने बहुत पहले छोड दिया था। जब मेरे एक दोस्त ने मुझसे वास्तविक चरित्र के बारे में चर्चा की थी। लोगों का वास्तविक चरित्र जानने का अब जतन नही करना पडता। क्योंकि मेरे हिसाब से मानसिकता ही चरित्र का धोतक है। और लोग उठे भी अपनी वास्तविकता क्यों छोडे...... लोग छिछोरा कहेंगें ना जाने और कितनी ही उपमाएं देंगें.... साले गद्दी या कुर्सी थोडे ही दे देंगें। बेचने के लिए अपने आपको कब से मंडी में बैठा था ग्राहक नही आते थे इसके लिए मैं बेशर्म क्यों बनूं। मेरा तो अब भी वही वास्तविक चरित्र है। ..... एक कहानी याद आ गई.. बिहार सरकार में एक मंत्री था जो किसी जमाने में कोठे पर तबला बजाया करता था मंडी में ग्राहक मिले किस्मत ने पलटी मारी और मंत्री बन गया। एक दिन अपने घर पर कुछ बुद्धिजिवियों को दावत दी रंगारंग कार्यक्रम भी था लेकिन उसका वास्तविक चरित्र अब भी उसी तबलची का था। कार्यक्रम जैसे ही सुरूर पर पहुंचा खुद तबला लेकर बैठ गया... घर में बहु नाच रही थी बाद में लोगो को सफाई दी ये तो रोज इसी वक्त कत्थक की प्रेक्टिस करती है। लोगों के चेहरे पर अपना कलेंडर चिपकाने की कोशिश कर रहा था। कार्यालय में भी कुछ ऐसा ही चल रहा था। यहां महाभारत की ऐसी लडाई थी जिसमें दोनों योद्धा आमने सामने लडते..... और युद्ध के दौरान ही एक दुसरे को स्नेह लेप भी लगाते। साहब कहते है दुर्घटना वश बने पत्रकारों की संख्या काफी है। लेकिन दुर्घटना वश पत्रकार बनने की कोशिश करने वाले जब अपने आपको पत्रकार समझने लगते है तो उनका हाल बिलकुल उसी तबलची मंत्री जैसा होता है। और वो फ्रक से कहते है यही तो मेरा वास्तविक चरित्र है.................. माथे पर हाथ रखके उसको दिल कहते है और दिल पे हाथ रखके उसे दिमाग। जब ऐसे लोग अपना इशारा बदल देते है तो उस बेवकूफ वास्तविक चरित्र का दावा करने वाले को पता चल जाता है कि..... उसका तो वास्तविक चरित्र ही दोगला है.....
लेखक.. रविशंकर कुमार
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