13 जनवरी 2010

खूनी प्रेम कहानी

उस मासूम को नही मालूम था कि प्यार का मतलब क्या होता है, उसे तो ये भी नही मालूम था कि मोहब्बत किसे कहते है। फिर भी वो दो दिवानों की हर कदम पर मदद करता रहा। जब भी दोनों मिलते तो सबसे ज्यादा खुशी आठ साल के मासूम को होती। जब भी वो उन दिवानों के चेहरे पर हंसी देखता खुद भी मुस्कुरा देता... इस बात से बेखबर की एक दिन यही मुस्कुराहट उसकी मौत की वजह बन जाएगी। उसे दो दिवानों की मोहब्बत की बलि चढा दिया गया। आखिर किसने और क्यों किया एक मासूम का कत्ल ये एक ऐसी पहेली थी जिसने मुंम्बई पुलिस के भी पसीने छुडा दिये.. और जब हकीकत सामने आई तो हर कोई सन्न रह गया।
मुंम्बई पुलिस के खिलाफ ये गुस्सा एक मासूम के कत्ल के बाद बरस रहा है। आरोप लगा पुलिस की लापरवाही का है दरअसल आठ साल के शोएब खलीफा की हत्या कर दी गई है उसकी लाश गोराई की खाडी से बरामद हुई। शोएब की मौत की खबर के बाद परिजनों का गुस्सा पुलिस के खिलाफ फूट पडा। गुस्साए परिजनों ने पुलिस के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और लापरवाही का आरोप लगाया। परिजनों के मुताबिक पुलिस ने शुरूआती दौर में कोई कार्रवाई नही की जिसकी वजह से ही शोएब की हत्या कर दी गई और पुलिस कुछ ना कर सकी।
मुंबई के भयांदर इलाके का रहने वाला आठ साल का शोएब नो जनवरी को लापता हो गया तो घरवालों ने उसकी तलाश की लेकिन उसका कोई सुराग नही लगा। परिजनों ने मामले की जानकारी पुलिस को दी परिजनों ने आरोप लगया कि शोएब को अगवा किया गया है। पुलिस ने अपहरण का मामला दर्ज किया लेकिन मामले में कोई खास दिलचस्पी नही दिखाई। और फिर वही हुआ जिसका हर किसी को डर था शोएब का कत्ल कर दिया गया। शोएब की लाश मिलने के बाद पुलिस हरकत मे आई। लेकिन ऐसे में पुलिस के लिए कातिल तक पहुंचना बेहद मुश्किल था आखिर आठ साल के मासूम से किसी की क्या दुश्मनी हो सकती है। आखिर कोई क्यों शोएब की हत्या करेगा। पुलिस मामले की हर पहलु से जांच कर रही थी।
शोएब के कत्ल की तफ्तीश में लगी पुलिस के सामने सवाल कई थे लेकिन फिलहाल जवाब किसी का नही था। लेकिन तफ्तीश में जुटी पुलिस के सामने आई एक ऐसी प्रेम कहानी जिसने कर दिया शोएब के कातिल को बेनकाब। अबतक जो दास्तां आपने सुनी और देखी वो तो इस कहानी का एक पहलु है। इस कहानी का दुसरा पहलू भी है वो है एक प्रेम कहानी। दरअसल मुंबई के भयांदर इलाके में रहने वाले टाइफान कोली को पडोस की रहने वाली एक लडकी से प्यार हो गया। प्यार परवान चढा तो दो जंवा दिल एक हो गए। दोनों की मुलाकात कम ही होती। लेकिन भला दो प्रेमी दिल की बातों को कब तक दबा कर रखते। टाइफान कोली ने अपने दिल की बात प्रेमिका तक पहुंचाने के लिए आठ साल के शोएब का सहारा लिया। वो हर रोज अपनी प्रेमिका को प्यार भरा प्रेम पत्र लिखता। और शोएब उसे पहुंचाने का काम करता। इस बात से बेखबर की उस पत्र में आखिर लिखा क्या है। उसे एक चॉकलेट मिलती और वो खुश हो जाता। लेकिन दोनों का प्रेम पत्र का ये खेल ज्यादा दिन तक नही चल सका।
नो जनवरी को शोएब एक बार फिर कोली की प्रेमिका के घर पहुंचा और उसे प्यार भरा पत्र थमा दिया। इस बार ये पत्र कोली की प्रेमिका के परिजनों के हाथ लग गया। फिर क्या था मामले को लेकर घर में बखेडा खडा हो गया। घरवालों के डर से लडकी ने अब तक दिल मे छुपाए सारे राज उगल दिये। उसने घरवालो को बता दिया कि सारे लव लैटर शोएब ही उस तक पहुंचाता है।
. टाइफान का लव लैटर उसकी प्रेमिका के परिजनों के हाथ लगने से ना केवल दोनो की प्रेम कहानी में नया मोड आया बल्कि उस मासूम पर भी मुसीबतों का पहाड टूट पडा। और यहीं से लिखी गई एक मासूम के कत्ल की इबारत।
पुलिस के सामने जब ये प्रेम कहानी आई तो शोएब के कत्ल की धुंधली तस्वीर भी साफ होने लगी। जांच में लगी पुलिस को पता चला कि शोएब का नाम उसकी प्रेमिका के घरवालों को पता चलने के बाद टाइफान बोखला गया। उसे लगा कि शोएब पुछताछ में सबकुछ बता देगा। ऐसे में उसकी मुसीबतें बढ सकती है। और फिर उसके शैतानी दिमाग में आया एक खौफनाक ख्याल। राज खुल जाने के डर से कोली ने शोएब का अपहरण कर लिया और फिर बेरहमी से उसका कत्ल कर दिया। पुलिस से बचने के लिए उसने शोएब की हत्या कर शव को गोराई की खाडी में ठिकाने लगा दिया।
पुलिस को तफ्तीश में कोली पर शक हुआ तो उसे हिरासत में लेकर पुछताछ की गई। शुरूआत में खुद को बेकसुर बताने वाला कोली आखिरकार टूट गया। और अपना गुनाह कूबुल कर लिया। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने वारदात में इस्तेमाल हथियार भी बरामद कर लिया। पुलिस ने टाइफान कोली को अदालत में पेश किया गया जहां से उसे 15 जनवरी तक पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया।

06 जनवरी 2010

दिल्ली पुलिस की लुटेरों से हार्दिक अपील

दिल्ली के प्रिय लुटेरों
सादर प्रणाम
आप कैसे हैं..आशा है धंधा मजे में चल रहा होगा...आपकी कामयाबी के किस्से पूरे गृहमंत्रालय में गूंज रहे हैं..गृहमंत्री भी बेहद खुश हैं..आपकी ही वजह से लोग पुलिस को याद करते हैं...आप हैं तो हम भी बने हुए हैं। ये आपका ही बड़प्पन है कि अप ताबड़तोड़ वारदातें कर हमें धन्य करते आ रहे हैं। आपकी ही बदौलत सुरक्षा के नाम पर हमें बड़ा बजट मिलता है..उसी से हमारी होली दिवाली मनती है। वरना हमें मिलता ही क्या है। अभी नए थाने बनाए गए हैं, सब आपकी ही कृपा से हो पाया है। आप शांत बैठे रहते तो भला नए थानों की सुध किसे आती, आपने जब हमारे लिए इतना किया है तौ थोड़ा और कर दीजिए। आपका और हमारा तो चोली दामन का साथ है। उम्मीद है आप हमारी भावनाएं समझेंगे। माजरा ये है कि दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स होने वाले हैं। सरकार जल्दबाजी में आफत मोल ली है। सांसे फूली हुई है, लेकिन मना नहीं हो रही। पानी काफी गुजर चुका है। इसलिए खेल तो कराने ही होंगे। बाकी तो सब सेटिंग हो जाएगी। बस आपका सहयोग चाहिए। दरअसल गेम्स में भाग लेने फिरंगी भी आएंगे। उन्हें दिल्ली की संस्कृति के बारे में इतनी तमीज नहीं हैं कि वो आपको समझें। वो आएंगे तो निगाहें आसमान में होंगी..इसलिए एमसीडी सारे गड्ढे बंद करने में जुट गई है...वहां तो मामला संभल जाएगा, लेकिन बस थोड़ा आपकी ही तरफ से मुश्किलें आ रही हैं..यदि आप भी सहयोग करें तो हम भी फिरंगियों के सामने कॉलर उंचा कर चल सकेंगे। गृह मंत्रालय ने आपसे वार्ता करने का जिम्मा हमें ही सौंपा है। आपसे हमारी अच्छी जो पटती है। आप बस इतना कर दीजिए, कॉमनवेल्थ गेम्स होने तक अपनी बिरादरी के लोगों को संयम बरतने का सर्कुलर जारी कर दें। मसलन चोरी, छेड़छाड़, जेबतराशी, बलात्कार और लूटपाट जैसे काम-धंधों पर अगर कुछ दिनों के लिए विराम लग जाए तो...हमारी दोस्ती और गाढ़ी हो जाएगी। वैसे गृह मंत्रालय की ये योजना सूखी नहीं है..इसमें आपके हितों का पूरा ख्याल रखा गया है। अगर आप हमारे प्रस्ताव को मानते हैं तो आपको पूरे एक साल का एकमुश्त भत्ता दिया जाएगा। इस मामले में ट्रैफिक पुलिस को सक्रिय कर दिया गया है...धड़ाधड़ चालान किये जा रहे हैं। आप हमारी बात समझ रहे हैं ना..देसी लोग के साथ आप सबकुछ करते हैं..कभी हमने आपको रोका या टोका। लेकिन फिरंगियों की बात जरा अलग है..इन्हें जरा भी आंच आती है तो एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे खाली बैठे संगठन भी नींद से जाग उठते हैं। अंग्रेजों को अगर आपकी प्रतिभा से दो-चार होना पड़ा तो बात गृह मंत्रालय तक आएगी...बस इसी बात का हमे डर है..वैसे तो आप जानते ही हैं कि गेम्स की तैयारियों को लेकर सारे मंत्रालयों पर उंगलियां उठ रही हैं...हम नहीं चाहते, हम या हमारे मंत्रालय पर भी कोई उंगली उठाए। इसलिए हमे गुप्त रुप से आपको मनाने के लिए कहा गया है। हमे उम्मीद है कि आप कुछ वक्त के लिए अपना मिशन ड्रॉप कर हमे सहयोग देंगे। हम आपसे निजी रुप से वादा करते हैं गेम्स के बाद आपको अच्छा माहौल प्रदान किया जाएगा। आप अपनी मर्जी करना और गेम्स खत्म होने के बाद राहत की सांस लेते हुए लंबी तान के सो जाएंगे
आपकी अपनी
दिल्ली पुलिस

05 जनवरी 2010

कैसे करे भरोसा

फरीदाबाद में 27 दिसंबर को हुई एक हत्या के मामले को पुलिस ने सुलझा लिया है...इस सिलसिले में पुलिस ने मृतक के नौकर को गिरफ्तार किया है....पुलिस के मुताबिक नौकर ने ही रुपयों की लालच में अपने मालिक की हत्या की थी। पुलिस ने मोबाइल फोन से मिली लोकेशन के आधार पर नौकर अरूण को बिहार से गिरफ्तार किया।
फरीदाबाद पुलिस की गिरफ्त में खडा ये वही दगाबाज नौकर है जिस पर पैसों की चाहत का नशा इस कदर चढा कि अपने ही मालिक का कत्ल कर दिया। आखिर गुनाह के बाद ये कब तक बचता.. और ये दगाबाज भी चढ गया पुलिस के हत्थे। पुलिस ने अरूण नाम के इस शख्स को बिहार से गिऱफ्तार किया है। पुलिस के मुताबिक 27 दिसम्बर को फरीदाबाद के सेक्टर 16 में हुए सुनील गुप्ता का कत्ल अरुण ने ही किया था...दरअसल उस दिन सुनील घर से किसी काम के सिलसिले में निकला था, सुनील देर रात तक घर नही लौटा तो परिजनों को चिंता सताने लगी। सुनील का मोबाइल फोन भी स्वीच ऑफ आ रहा था, घबराए परिजनों ने मामले की जानकारी पुलिस को दी । जब पुलिस तलाश करते हुए सुनील के ऑफिस पहुंची तो आफिस को बन्द पाया...जब ऑफिस खोला गया तो उसके अन्दर सुनील की लाश प़डी हई थी। आफिस से कीमती सामान भी गायब था।
शुरूआती जांच में ये बात साफ साफ हो चुकी थी कि हत्या की वारदात को लूट के इरादे से अंजाम दिया गया है... जब पुलिस ने नौकर अरूण की तलाश की तो वो लापता था, बस यहीं से पुलिस का शक उस पर गहरा गया। पुलिस ने अरूण के मोबाइल फोन की ट्रेसिंग कर उसे बिहार से गिरफ्तार कर लिया। पुलिस के सामने अरूण ने अपना जुर्म भी कबूल कर लिया। अरूण के मुताबिक उसने शराब पी रखी थी, सुनील ने इसी बात से नाराज होकर उसे गाली दे दी तब क्या था अरुण गुस्से से भर उठा और सुनील का कत्ल कर दिया.... लेकिन अरूण का ये ब्यान पुलिस के गले नही उतर रहा । पुलिस को जांच में ये भी पता चला कि अरूण को कुछ दिन पहले ही काम पर रखा गया था और उसका वेरिफिकेशन भी नही कराया गया था।
लोग लापरवाही की वजह से नौकरों का वैरिफिकेशन नहीं करा पाते हैं...इसी वजह से नौकरों का काम आसान हो जाता है...इसके पुलिस का रवैया भी कम जिम्मेदार नहीं....पुलिस भी नौकरों की वैरिफिकेशन में लापरवाही बरतती है...अगर अरुण का वैरिफिकेशन हुआ होता तो हो सकता था वो वारदात को अंजाम देने से पहले सौ बार सोचता...और हो सकता था कि सुनील की जान बच जाती

सुलझ गई गुत्थी

दिल्ली पुलिस ने अशोक विहार में हुई डेढ़ करोड़ रुपये की लूट के आरोप में तीन लोगों को गिरफ्तार किया है....पुलिस ने इनके पास से लूटे गए रकम में से 1 करोड़ 25 लाख रुपये भी बरामद कर लिये हैं....पुलिस के मुताबिक लूटकांड की सूत्रधार एक आरोपी की गर्लफ्रेंड है जिसकी दी गई जानकारी के बाद वारदात को अंजाम दिया गया....
19 दिन बाद ही सही आखिरकार दिल्ली पुलिस ने साल 2009 में हुई सबसे बडी डेढ़ करोड की लूट के मामले को सुलझा लिया। पुलिस ने इस मामले में विकास, हर्षित और प्रवीण गोयल नाम के तीन बदमाशों को गिरफ्तार किया है। इन्ही तीनों ने अपने एक और साथी के साथ मिलकर लूट को अंजाम दिया था। पुलिस ने इनके पास से लूटे गए एक करोड 25 लाख रूपये बरामद कर लिये है। साथ ही वारदात में इस्तेमाल हुए दो कारें और दो बाइक समेत हथियार भी बरामद हुआ है। पुलिस को जांच में पता चला कि ये लोग वारदात को अंजाम देने से पहले ही जौहरी की रेकी कर रहे थे। जौहरी के पास मोटी रकम होने की जानकारी इनके चौथे साथी की गर्लफ्रेन्ड़ ने दी थी। दरअसल जीतू नाम का वो शख्स एक दिन आईसीआईसीआई बैंक में काम कर रही अपनी गर्लफ्रेन्ड से मिलने गया था। वहीं से उसे पूर्ण चन्द के बारे में जानकारी मिली। बस फिर क्या था जीतू ने अपने इन साथियों के साथ मिलकर जौहरी को लूटने की साजिश रच डाली। पुलिस के मुताबिक वारदात का खाका गोगिया गैंग के सरगना दीपक गोगिया ने तैयार किया था।
पूर्ण चंद बंसल 16 दिसंबर की सुबह तकरीबन नौ बजे घर से दो बैग में रुपये लेकर बैंक जाने के लिए निकले थे...बैग में उस वक्त उनके पास एक करोड पचपन लाख रूपये थे। जैसे ही उन्होंने घर के बाहर खड़ी अपनी गाडी में बैग रखे, तो दो बाइक पर सवार चार बदमाशों ने उन पर पिस्टल सटा दी। जब तक पूर्णचंद कुछ समझ पाते बदमाश बैग लेकर फरार हो चुके थे। पूर्ण चंद का सदर बाजार और अशोक विहार में ज्वैलरी का कारोबार है , वे कई दिन की कलेक्शन इक्ठठा होने की वजह से बैंक में रुपये जमा कराने जा रहे थे। शुरूआती जांच में साफ हो चला था कि बदमाशों को जौहरी के बारे में पहले से ही जानकारी थी...
इन बदमाशों को गिरफ्तार कर पुलिस अपना पीठ थपथपाने में लगी है...लेकिन अभी भी ऐसे कई मामले हैं जिन्हें सुलझाना पुलिस के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है...वैसे तो पुलिस 2009 को 2008 के मुकाबले क्राइम के मामले में बेहतस साबित कर चुकी है..अब देखना ये है कि पुलिस 2010 को दिल्ली को अपराध से छुटकारा दिला पाती है या नहीं

04 जनवरी 2010

वास्तविक चरित्र



हरिअन्नत हरि कथा अन्नता... मेरी हर कहानी से पहले ये आम हो चली है। आज हम पिछले पडाव से आगे है आज जब कार्यलय पहुंचा तो पता चला साहब कार्यमुक्त हो चुके है। बहुत से डब्बुक से मुंह पे मुस्कान थी क्योंकि चेहरे पर मुस्कान इंसानों की होती है। ऑफिस में घडियालों और गिरगिटों की कमी नही.. जिनसे मैनें भी कुछ आंसू और रंग उधार लिए हैं। ताकि उन्हें के आंसू और उन्हीं का रंग सूद समेत उन्हे वापिस कर सकूं। सोचना मैने बहुत पहले छोड दिया था। जब मेरे एक दोस्त ने मुझसे वास्तविक चरित्र के बारे में चर्चा की थी। लोगों का वास्तविक चरित्र जानने का अब जतन नही करना पडता। क्योंकि मेरे हिसाब से मानसिकता ही चरित्र का धोतक है। और लोग उठे भी अपनी वास्तविकता क्यों छोडे...... लोग छिछोरा कहेंगें ना जाने और कितनी ही उपमाएं देंगें.... साले गद्दी या कुर्सी थोडे ही दे देंगें। बेचने के लिए अपने आपको कब से मंडी में बैठा था ग्राहक नही आते थे इसके लिए मैं बेशर्म क्यों बनूं। मेरा तो अब भी वही वास्तविक चरित्र है। ..... एक कहानी याद आ गई.. बिहार सरकार में एक मंत्री था जो किसी जमाने में कोठे पर तबला बजाया करता था मंडी में ग्राहक मिले किस्मत ने पलटी मारी और मंत्री बन गया। एक दिन अपने घर पर कुछ बुद्धिजिवियों को दावत दी रंगारंग कार्यक्रम भी था लेकिन उसका वास्तविक चरित्र अब भी उसी तबलची का था। कार्यक्रम जैसे ही सुरूर पर पहुंचा खुद तबला लेकर बैठ गया... घर में बहु नाच रही थी बाद में लोगो को सफाई दी ये तो रोज इसी वक्त कत्थक की प्रेक्टिस करती है। लोगों के चेहरे पर अपना कलेंडर चिपकाने की कोशिश कर रहा था। कार्यालय में भी कुछ ऐसा ही चल रहा था। यहां महाभारत की ऐसी लडाई थी जिसमें दोनों योद्धा आमने सामने लडते..... और युद्ध के दौरान ही एक दुसरे को स्नेह लेप भी लगाते। साहब कहते है दुर्घटना वश बने पत्रकारों की संख्या काफी है। लेकिन दुर्घटना वश पत्रकार बनने की कोशिश करने वाले जब अपने आपको पत्रकार समझने लगते है तो उनका हाल बिलकुल उसी तबलची मंत्री जैसा होता है। और वो फ्रक से कहते है यही तो मेरा वास्तविक चरित्र है.................. माथे पर हाथ रखके उसको दिल कहते है और दिल पे हाथ रखके उसे दिमाग। जब ऐसे लोग अपना इशारा बदल देते है तो उस बेवकूफ वास्तविक चरित्र का दावा करने वाले को पता चल जाता है कि..... उसका तो वास्तविक चरित्र ही दोगला है.....
लेखक.. रविशंकर कुमार

03 जनवरी 2010

लापरवाही की इंतहा


आगज ऐसा हो तो फिर अंदाज कैसा होगा अंदाजा लगाना ज्यादा मुश्किल नही है। नए साल का आगाज दिल्ली पुलिस ने जैसा किया है उससे तो कुछ ऐसा ही लगता है कि आने वाले समय में पुलिस के हालात और भी बदतर होने वाले है। क्या कमिश्नर साहब कुछ ही घंटे में आपके दावे फुस हो गए अब क्या कहेंगें। आखिर कैसे करेंगें सुरक्षित होने का दावा। दिल्ली पुलिस नए साल में इतनी लापरवाह होगी किसी ने सपने में भी नही सोचा होगा। राजधानी के लोग भले ही पिछले साल बाइकर गैंग और चोरों की करामात से दो चार होते रहे लेकिन कम से कम आतंकी वारदात से पुलिस के निपटने को लेकर तो कुछ राहत महसुस की। लेकिन नए साल में तो पुलिस की सारी कोशिशें ही बेकार साबित हो गई। एक दो नही बल्कि पूरे तीन आतंकी दिल्ली पुलिस को चकमा देकर चलते बने। घटना एक जनवरी 2010 की है यानि नए साल का पहला दिन। लेकिन नए साल के पहले दिन ही दिल्ली पुलिस के चेहरे पर नाकामी की कालिख पुत गई। लापहरवाही की इंतहा तो तब हो गई जब सब-इंस्पेक्टर महोदय को आतंकियों ने चकमा दिया वो 100 न. पर फोन करने के बजाय खुद ही दो घंटे तक फरार तीनों आतंकियों को तलाशने में लगा रहा। क्या ये इतनी छोटी सी घटना थी कि सब-इंस्पेक्टर साहब खुद ही तीनों को गिरफ्तार करने का मादा रखते थे। लेकिन क्या कहें जनाब ये दिल्ली पुलिस है यहां कुछ भी हो सकता है ये पुलिस कुछ भी कर सकती है। 48 घंटे से ज्यादा का वक्त हो चुका है लेकिन पाकिस्तान के मेहमानों का दिल्ली पुलिस कोई सुराग नही लगा पाई है। आखिर इसे क्या कहा जाए... पुलिस ने मामले को पूरी तरह से दफन करने में भी कोई कोर कसर नही छोडी थी। दरअसल अब्दुल रज्जाक, मोहम्मद सादिक और रफाकत अली को साल 2000 में आतंकी हमला करने के आरोप गिरफ्तार किया गया था। इनके पास बाकायदा 7 किलो आरडीएक्स और करीब 50 किलो हेरोइन बरामद हुई थी। इन तीनों की सजा हाल ही में पूरी हुई थी और इन्हें वापस पाकिस्तान भेजा जाना था। लेकिन उससे पहले ही ये तीनो पुलिस को चकमा देकर फरार हो गए। पुलिस के मुताबिक इन तीनों को पाकिस्तान भेजने के लिए दिल्ली के लामपुर बार्डर पर बने डिपोर्टेशन सेंटर में रखा गया था। शुक्रवार को इन्होंने अपनी आंख में तकलीफ होने की बात कही थी। दिल्ली पुलिस के मुखिया वाई एस डडवाल साहब ने लम्बे चौडे आंकडे पेश कर राजधानी में अपराध कम होने का दावा किया था लेकिन जिस तरह से पुलिस की लापहरवाही की इंतहा हुई है उससे साफ है कि पुलिस की लापहरवाही किस कदर रही है। हालांकि मामले की गंभीरता को देखते हुई इसकी जांच स्पेशल सेल को सौंप दी गई है वहीं गृहमंत्रालय ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर सात दिन में जवाब मांगा है। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात है कि इतनी बडी घटना होने के बाद भी पुलिस के अधिकारियों का रूख कुछ बेफ्रिक सा ही दिखा। पुलिस प्रवक्ता का शुरूआती जांच में जो ब्यान आया उसने सबके पसीने छुडा दिये। पुलिस प्रवक्ता का कहना था कि आतंकियों की जिम्मेदारी पुलिस की नही बल्कि एफआरआरओ की थी लेकिन दुसरी तरफ से जो आवाज आई वो भी कम चौंकाने वाली नही थी। एफआरआरओ ने मामले की जिम्मेदारी स्पेशल ब्रांच की बताकर मामले को टालने की कोशिश की। चलिये अब तक जो कुछ हुआ वो परेशान करने वाला है लेकिन डडवाल साहब कम से कम अब तो सचेत हो जाएये। कॉमनवेल्थ गेम्स होने में अब कुछ ही महीने बाकि है और इस तरह से अगर आपके जवान चोर सिपाही का खेल खेलते रहेगें तो दिल्ली की सुरक्षा को किसके भरोसे छोडकर आप सुरक्षित होने का दावा करेंगें। वहीं अब तीन विदेशी मेहमानों को जल्द ही उनके सही ठिकाने का बंदोबस्त भी कर लिजिए वरना कहीं चोर सिपाही का ये खेल दिल्ली पुलिस को महंगा ना पड जाए।