एक साल बीत गया-- आंखो के आंसू सूख गए-- फिर भी ना जाने क्यू जवां बेटे की याद नही जाती। ना जाने हर बार क्यूं जिंदा होती है उसकी यादें ये हाल उस बुजुर्ग का है जिसने 13 सिंतम्बर सन 2008 की उस खौफनाक शाम को अपने जवान बेटे को गंवा दिया। दिन शानिवार. समय शाम के 5.30 मिनट ,और 24 मिनट में दिल्ली में पांच धमाके ।थर्रा गई दिल्ली,.... रुक गई सासें,....थम गया आसमा।27लोग हमेशा के लिए –हमेशा के लिए मौत के आगोश में चले गए। 127 घायल हुए.....इन धमाकों में किसी के सिर से बड़ो का साया हटा ....तो किसी के भाई की कलाई सूनी हुई.......किसी को कोख उजड़ी......हादसे के एक साल बीत जाने के बाद भी लोग उस काले दिन को याद कर आज सिहर उठते है।......जिस दिन उनकी दुनिया उजड़ी थी।पहला धमाका करोलबाग की गफ्फार मार्किट में हुआ। यहां बम एक आटों में रखा था। जिसमे एक के बाद एक दो धमाके हुए।दूसरा धमाका दिल्ली का दिल कहे जाने वाले क्नॉट प्लेस में बाराखम्बा मैट्रों स्टेशन के बाहर रखे कूड़ेदान में हुआ।और तीसरा धमाका दिल्ली सबसे पाश इलाका कहे जाने वाले ग्रैटर कैलाश की मार्किट में हुआ। यहां पर बम एक साइकिल के हैंडल में लटके लंच बाक्स में रखा था। दहशत गर्दों ने धमाका करने से पहले मीड़िया को एक मेल भी किया था। जिसमे धमाका करने की बात कि गई थी। लेकिन जब तक पुलिस उस मेल को समझ पाती । तब तक नापाक इरादे लिए आए आतकियों ने वारदात को अंजाम दे दिया था। देखते देखते चारों और काला धुआ....सिर्फ चीख पुकार सुनाई पड़ी रही थी।लोगों अपनी जान बचा कर भाग रहे थे।कुछ लोगों की आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई ...और जो इस धमाके में बच गये ....उन्हें मानों नई जिदंगी मिल गई।इस बम धमाके की जिम्मेदारी इड़ियन मुजाहिद्दीन ने ली।धमाकों की साजिश सरहद पार रची गई थी। साजिश रचने वालों में रियाज बट्टल,...आमिर रजा खान.......अबू अलकामा जैसे आतंकी शामिल थे। इनके 16 साथी अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है।हालाकि पुलिस ने इनको पकड़ने के लिए रखे इनाम को एक लाख से पांच लाख कर दिया है।पुलिस इन को पकड़ने के लिए छापेमारी करती रही। लेकिन उसके हाथ कुछ नही लगा।पुलिस को 19 सितम्बर सन 2008 को.............खुफिया जानकारी मिली की दिल्ली के जामिया इलाके के एक घर में कुछ आतकंवादी छिपे हुए है।मौके पर पहुची पुलिस से उनकी मुठभेड़ हो गई .....जिसमें इड़ियन मुजाहीद्दीन के दो आतकवादी आतिफ.,और मौ साजिद मारे गए। इस मुठभेंड़ ने दिल्ली पुलिस ही बल्कि पूरे मुल्क ने एक वीर सपूत मोहन चंद शर्मा को खो दिया। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 22 मई 2008 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से हूजी के आंतकवादी अदुर रहमान को गिरफ्तार किया। जिससे पूछताछ के बाद पता चला कि उसने जनकपुरी की एक मजिस्द में तीन किलो आरडीएक्स ..5 डेटोनेटर..1 टाईमर छिपा कर रखा हुआ है।इसने बताया कि सरहद पार बैठे नाटा ने राकी नाम के व्यक्ति को 7 किलों आरडीएक्स के साथ दिल्ली में दखिल हो चुका है ।लेकिन आज तक ना तो राकी का पता चला और ना ही आरडीएक्स ।यानी दिल्ली अभी भी बारुद के ढेर पर बैठी है। शायद आज भी खुद को दिल्ली में महफूज महसुस करना खुद के साथ बेमानी होगी।
12 सितंबर 2009
बम धमाके और आंसू
एक साल बीत गया-- आंखो के आंसू सूख गए-- फिर भी ना जाने क्यू जवां बेटे की याद नही जाती। ना जाने हर बार क्यूं जिंदा होती है उसकी यादें ये हाल उस बुजुर्ग का है जिसने 13 सिंतम्बर सन 2008 की उस खौफनाक शाम को अपने जवान बेटे को गंवा दिया। दिन शानिवार. समय शाम के 5.30 मिनट ,और 24 मिनट में दिल्ली में पांच धमाके ।थर्रा गई दिल्ली,.... रुक गई सासें,....थम गया आसमा।27लोग हमेशा के लिए –हमेशा के लिए मौत के आगोश में चले गए। 127 घायल हुए.....इन धमाकों में किसी के सिर से बड़ो का साया हटा ....तो किसी के भाई की कलाई सूनी हुई.......किसी को कोख उजड़ी......हादसे के एक साल बीत जाने के बाद भी लोग उस काले दिन को याद कर आज सिहर उठते है।......जिस दिन उनकी दुनिया उजड़ी थी।पहला धमाका करोलबाग की गफ्फार मार्किट में हुआ। यहां बम एक आटों में रखा था। जिसमे एक के बाद एक दो धमाके हुए।दूसरा धमाका दिल्ली का दिल कहे जाने वाले क्नॉट प्लेस में बाराखम्बा मैट्रों स्टेशन के बाहर रखे कूड़ेदान में हुआ।और तीसरा धमाका दिल्ली सबसे पाश इलाका कहे जाने वाले ग्रैटर कैलाश की मार्किट में हुआ। यहां पर बम एक साइकिल के हैंडल में लटके लंच बाक्स में रखा था। दहशत गर्दों ने धमाका करने से पहले मीड़िया को एक मेल भी किया था। जिसमे धमाका करने की बात कि गई थी। लेकिन जब तक पुलिस उस मेल को समझ पाती । तब तक नापाक इरादे लिए आए आतकियों ने वारदात को अंजाम दे दिया था। देखते देखते चारों और काला धुआ....सिर्फ चीख पुकार सुनाई पड़ी रही थी।लोगों अपनी जान बचा कर भाग रहे थे।कुछ लोगों की आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई ...और जो इस धमाके में बच गये ....उन्हें मानों नई जिदंगी मिल गई।इस बम धमाके की जिम्मेदारी इड़ियन मुजाहिद्दीन ने ली।धमाकों की साजिश सरहद पार रची गई थी। साजिश रचने वालों में रियाज बट्टल,...आमिर रजा खान.......अबू अलकामा जैसे आतंकी शामिल थे। इनके 16 साथी अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है।हालाकि पुलिस ने इनको पकड़ने के लिए रखे इनाम को एक लाख से पांच लाख कर दिया है।पुलिस इन को पकड़ने के लिए छापेमारी करती रही। लेकिन उसके हाथ कुछ नही लगा।पुलिस को 19 सितम्बर सन 2008 को.............खुफिया जानकारी मिली की दिल्ली के जामिया इलाके के एक घर में कुछ आतकंवादी छिपे हुए है।मौके पर पहुची पुलिस से उनकी मुठभेड़ हो गई .....जिसमें इड़ियन मुजाहीद्दीन के दो आतकवादी आतिफ.,और मौ साजिद मारे गए। इस मुठभेंड़ ने दिल्ली पुलिस ही बल्कि पूरे मुल्क ने एक वीर सपूत मोहन चंद शर्मा को खो दिया। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 22 मई 2008 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से हूजी के आंतकवादी अदुर रहमान को गिरफ्तार किया। जिससे पूछताछ के बाद पता चला कि उसने जनकपुरी की एक मजिस्द में तीन किलो आरडीएक्स ..5 डेटोनेटर..1 टाईमर छिपा कर रखा हुआ है।इसने बताया कि सरहद पार बैठे नाटा ने राकी नाम के व्यक्ति को 7 किलों आरडीएक्स के साथ दिल्ली में दखिल हो चुका है ।लेकिन आज तक ना तो राकी का पता चला और ना ही आरडीएक्स ।यानी दिल्ली अभी भी बारुद के ढेर पर बैठी है। शायद आज भी खुद को दिल्ली में महफूज महसुस करना खुद के साथ बेमानी होगी।
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